मनोज श्रीवास्तव/लखनऊ। पुराना लखनऊ लक्ष्मण टीले के पास बसा हुआ था। अब ‘लक्ष्मण टीला’ का नाम पूरी तरह मिटा दिया गया है।
यह स्थान अब ‘टीले वाली मस्जिद’ के नाम से जाना जा रहा है।’ लखनऊ की संस्कृति के साथ यह जबरदस्ती हुई है। यह दावा लखनऊ के पूर्व बीजेपी सांसद लालजी टंडन ने अपनी किताब ‘अनकहा लखनऊ’ में किया है। पार्षद से लेकर सदस्य विधानपरिषद/विधानसभा, कैबिनेट मंत्री, दो बार सांसदी दो राज्यों में बतौर राज्य पाल तक का सामाजिक एवं सियासी सफर पूरा करने वाले लालजी टंडन किताब में लिखते हैं कि लखनऊ के पौराणिक इतिहास को नकार ‘नवाबी कल्चर’ में कैद करने की कुचेष्टा के कारण यह हुआ। लक्ष्मण टीले पर शेष गुफा थी जहां बड़ा मेला लगता था। खिलजी के वक्त यह गुफा ध्वस्त की गई। बार-बार इसे ध्वस्त किया जाता रहा और यह जगह टीले में तब्दील हो गई। औरंगजेब ने बाद में यहां एक मस्जिद बनवा दी।
लखनऊ के पौराणिक इतिहास को नकार ‘नवाबी कल्चर’ में कैद करने की कुचेष्टा
1857 के बाद अंग्रेज यहां बनी ‘गुलाबी मस्जिद’ के ऊपर घोड़े बांधने लगे। बाद में राजा जहांगीराबाद की गुहार पर अंग्रेजों ने मस्जिद खाली कर दी। हर दौर में इसका नाम लक्ष्मण टीला बना रहा, लेकिन पिछली समाजवादी पार्टी की सरकार (अखिलेश यादव का कार्यकाल) ‘लक्ष्मण टीला’ का नाम पूरी तरह मिटाकर इसे ‘टीले वाली मस्जिद’ कर दिया।टंडन जी की इस पुस्तक का विमोचन उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने किया था। उनकी किताब का एक अंश ‘जिस इतिहास में शौर्य किनारे हो जाए और विलासिता आगे हो जाए तो समझ लीजिए वह इतिहास नहीं कोरी बेईमानी है।…इतिहासकारों की कृपादृष्टि रंगमहल की कहानियों, बेगमों की कोठियों व उनके षडयंत्र के प्रकारों, अय्याशियों पर केंद्रित हो जाने से लखनऊ की विशेषता न जाने कहां दब गई और सामने आ खड़ी हुई विलासिता, कुटिलता, कुछ चंद इमारतें, कुछ चंद लोग।’ लखनऊ नगर निगम में भाजपा पार्षद दल के नेता रामकृष्ण यादव कहते हैं कि बाबू जी को इस बात का बहुत दुःख था कि लक्ष्मण द्वारा बनाया गया स्थान लक्ष्मण टीला सपा सरकार में कागजी हेर-फेर कर टीले वाली मस्जिद बन गयी।
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