ओ३म् परमात्मा का मुख्य और निज नाम

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वेद विचार
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परमात्मा राजा व आचार्य से प्रार्थना करते हुए सामवेद में एक स्थान पर कहा गया है कि अत्यंत समृद्ध और मनुष्यों की समृद्धि करने वाले परमात्मन्, राजा व आचार्य! हृदय में प्रकट हुए आप हमारे लिए गायों से अथवा वेदवाणियों से युक्त प्राणों व इनसे ऐश्वर्य को प्राप्त कराइये। और आप राष्ट्र-भूमियों में पवित्र हृदय वाले ब्राह्मण आदि वर्ण भी, अथवा वाणियों में पवित्र अक्षर ‘ओम्’ को भी हमें धारण व प्राप्त कराइए।

मंत्र का भावार्थ है कि परमेश्वर, देश का राजा व हमारा आचार्य स्वयं धन, विद्या आदि से सुसमृद्ध होकर कृपा पूर्वक हमें भी धन, विद्या आदि प्रदान करें। जिस राष्ट्र में पवित्र हृदय वाले ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि वर्ण होते हैं और जहां प्रजाओं की वाणियों में ओंकार रूप अक्षर जप आदि रूप में निरंतर चलता रहता है, वह राष्ट्र धन्य कहलाता है।

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ओ३म् परमात्मा का मुख्य और निज नाम है। ओ३म् का अर्थ सहित जप करने से हमारी आत्मा व मन आदि शुद्ध एवं पवित्र होते हैं। आत्मा का ज्ञान बढ़ता है। इससे आत्मा व ओ३म् का जप करने वाले मनुष्य की आध्यात्मिक तथा सांसारिक सहित सामाजिक उन्नति भी होती है। समाज व राष्ट्र भी सत्पुरुषों की वृद्धि से उन्नत व समृद्ध होते हैं। मनुष्य धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष प्राप्ति के अधिकारी बनते हैं। ईश्वर की शरण में जाने से ही मनुष्य का सर्वविध कल्याण होता है।

-प्रस्तुतकर्ता मनमोहन आर्य

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