ओ३म्: ‘भजन सम्राट एवम् ऋषिभक्त पं. सत्यपाल पथिक का निधन आर्यसमाज की अपूरणीय क्षति’

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पंडित सत्यपाल पथिक जी का गुरुवार 22 अक्टूबर, 2020 को कोरोना रोग से अस्वस्थ होने के कारण अमृतसर के एक अस्पताल में प्रातः 9.15 बजे निधन हो गया। पं. सत्यपाल पथिक जी का संसार से जाना आर्यसमाज सहित वैदिकधर्म तथा देश एवं समाज की ऐसी बड़ी क्षति है जो कभी पूरी नहीं की जा सकती। अब हम पथिक जी के श्रीमुख से साक्षात् उनकी ऋषिभक्ति से ओतप्रोत वाणी में ईश्वर, वेद, आर्यसमाज तथा ऋषि दयानन्द के गुणगान के भक्तिमय गीत सुनने से वंचित हो गये हैं। एक प्रकार से यह हम सबका दुर्भाग्य है कि हमें एक महान ऋषि एवं आर्यसमाज भक्त तथा अद्वितीय देश एवं समाज प्रेमी का वियोग सहन करना पड़ रहा है। आत्मा की अमरता तथा मृत्यु की निश्चितता को जानते हुए भी मन में पथिक जी के वियोग की पीड़ा दूर नहीं हो रही है। पथिक जी एक असाधारण सच्चे व सीधे मनुष्य थे। उनके सान्निध्य को प्राप्त होने पर उनकी महानता का तब पता नहीं चलता था जब वह एक सामान्य व्यक्ति के रूप में अपने मित्रों व शुभचिन्तकों से बातें करते थे। हम भी उनके शुभचिन्तक एवं भक्त थे। उनके गीतों के शब्द हमें अमृततुल्य लगते थे। वह कोई भी गीत गाते थे तो उसमें शब्दों का जो चयन होता था उसे श्रोताओं का हृदय सुनकर झूम जाता था। हमने दो तीन दशक पूर्व भी कैसेट में टेप रिकार्डर पर उनके अनेक भजन सुने जिसे बार बार सुनकर भी दिल नहीं भरता था। ‘हमारे देश की महिमा बड़ी पुरानी है सबसे निराली है सबसे सुहानी है’ यह कव्वाली व भजन हमने पचास बार तो सुना ही होगा। ‘हम कभी माता पिता का ऋण चुका सकते नहीं इनके जो अहसान हैं वो गिना सकते नहीं’ यह भजन भी पचास से सौ बार तो अवश्य ही सुना है। ऐसे अन्य अनेक भजन और भी हैं। वर्तमान में हमने टंकारा तथा गुरुकुल गौतमनगर सहित देहरादून के वैदिक साधन आश्रम तपोवन में उनके कुछ भजनों को अपने मोबाइल कैमरे में सुरक्षित व रिकार्ड किया था जिन्हें कई वर्षों से पैन ड्राइव को टीवी में लगाकर सुनते हैं। उनके दो भजनों का उल्लेख करना छोड़ नहीं पा रहे हैं। एक भजन है ‘जहां ऋषि दयानन्द जन्में टंकारा वही ग्राम है। जिसकी गलियों में खेले बचपन में टंकारा वही ग्राम है’। यह भजन हमने 23-2-2017 को प्रातः 10.50 बजे टंकारा की यज्ञशाला में रिकार्ड किया था। हम इस भजन को अपने 1 वर्ष 10 महीने के दौहित्र के साथ विगत एक वर्ष से शायद दिन में दो तीन बार सुनते हैं। बच्चे को यह भजन सर्वाधिक प्रिय है और वह भजन के साथ श्रोताओं की तरह तालियां बचाने के साथ भजन की समाप्त होने पर पथिक जी द्वारा बोली जाने वाली ’बोलो ऋषि दयानन्द की जय’ से पहले ही जय बोल देता है। हमें उसका ऐसा करना बहुत अच्छा लगता है। भजन चलते हुए यदि वह किसी अन्य खेल व कार्य में व्यस्त होता है तब भी उसके द्वारा ऋषि दयानन्द की जय बोले जाने पर हमें अहसास होता है कि उसका मन भजन में भी लगा रहा है। पथिक जी का एक भजन है ‘प्रभु तुम अणु से भी सूक्ष्म हो, प्रभु तुम जगत से भी विशाल हो, मैं मिसाल दूं तुम्हें कौन सी दुनिया में तुम बेमिसाल हो। प्रभु तुम अणु से भी सूक्ष्म हो।।’ पंडित जी इस रचना को अपनी सबसे महत्वपूर्ण रचनाओं में स्थान देते थे। इस भजन को भी हमने पचास से अधिक बार सुना है।

पंडित सत्यपाल पथिक जी से हमारी देहरादून में वैदिक साधन आश्रम तपोवन, आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकुल पौंधा, गुरुकुल गौतमनगर, दिल्ली, ऋषि बोधोत्सव़ पर परोपकारिणी सभा, अजमेर तथा ऋषि जन्म भूमि स्मारक न्यास, टंकारा में आयोजित ऋषि बोधोत्सवों सहित हरिद्वार में गुरुकुल सम्मेलन आदि कार्यक्रमों पर अनेक बार भेंट हुई थी। सभी स्थानों पर उनसे लम्बी वार्तायें होती थी। पंडित जी ने अनेक स्थानों पर हमें अपने अनेक संस्मरण भी सुनाये। कई बार हमने उनके संस्मरणों को अपने लेखों के द्वारा फेस बुक व व्हटशप आदि के द्वारा प्रचारित भी किया। 21 फरवरी, 2020 को टंकारा में आयोजित ऋषि बोधोत्सव के अवसर भी हम पडित जी से मिले थे। वहां अनेक विषयों पर पंडित जी से लम्बी चर्चा हुई थी। उन्होंने बताया था कि नवम्बर, 2019 में वह अपने न्यूजीलैण्ड निवासी पुत्र के गृह प्रवेश में जाने हेतु दिल्ली आये थे और एक आर्य परिवार में ठहरे थे। जाने से एक दो दिन पहले उन्हें दिल्ली में रात्रि समय में हृदयघात की पीड़ा हुई थी। रात्रि को ही उन्हें अस्पताल भरती कराया गया था। इस कारण वह अपने पुत्र के गृह प्रवेश में नहीं जा सके थे। पंडित जी से यह बात सुनकर हमें कुछ डर लगा था। इस वार्ता में अन्य अनेक विषयों पर भी पंडित जी से बाते हुई थी। पंडित जी का एक अन्य भजन है ‘डूबतो को बचा लेने वाले मेरी नयया है तेरे सहारे’। इस भजन की रचना पंडित जी ने अपने सिंगापुर प्रवास में की थी। उन्होंने बताया था कि एक लड़की समुद्र में नौकायान कर रही थी कि अचानक किसी समुद्री लहर से वह उसका नौका पलट गई और वह युवती समुद्र में डूब गई। दूर से एक जलयान के नाविक ने दूरबीन पर यह दृश्य देखा तो वह अपने जहाज को वहां ले गया और कुछ नाविको ने समुद्र में तैर कर उस युवती को ढूंढा और उसे बचा लिया। अगले दिन यह समाचार सिंगापुर के समाचार पत्रों में छपा जिसमें उस लड़की का चित्र व उसकी अनुभूतियां दी गई थीं। इस घटना की प्रेरणा से पडित जी ने एक भजन लिखा जिसके बोल हैं ‘डूबतो को बचा लेने वाले मेरी नय्या है तेरे हवाले। लाख अपनो को मैंने पुकारा सब के सब कर गये हैं किनारा। कोई और देता नहीं दिखाई अब तो तेरा ही है बस सहारा। कौन हमको भवंर से निकाले, मेरी नय्या है तेरे हवाले। ऐसी अनेक घटनायें पंडित जी ने समय समय पर हमें सुनाई और हम उसी दिन व अगले दिन लेख लिखकर उसे प्रसारित कर देते थे। इन घटनाओं को सुनकर व पथिक जी का हमारे प्रति स्नेह देखकर हमें अत्यन्त प्रसन्नता होती थी। तपोवन में एक वर्ष पूर्व उत्सव समाप्त होने पर हम दम्पत्ती के साथ बाहर घांस पर बैठकर लगभग दो घंटे तक बाते करते रहे थे। वह क्षण याद कर उन स्वर्णिम पलों की ओर मन आकर्षित होकर भावनाओं में बह जाता है। ऐसी अनेक यादें हैं जो रह रह कर मन में आती जाती हैं। अब यह वास्तविकता है कि पंडित जी हमें इस जीवन में कभी प्राप्त नहीं होंगे और न हम उनके साक्षात दर्शन, उनसे वार्तालाप और न हीं उनके भजन व वचनों को सुन सकेंगे। ऐसी अवस्था में उनके वीडियो भजन ही हमें उन बीते क्षणों को याद कराते रहेंगे।

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पंडित जी की ऋषि भक्ति भी अद्वितीय थी। उनमें अहंकार नाम की चीज किंचित भी नहीं देखी गई। वह अत्यन्त विनम्र और सभी ऋषिभक्तों से प्रेम करने के साथ सबका आदर भी करते थे। गुरुकुल के आचार्य धनंजय जी ने बातचीत में बताया कि पथिक जी गुरुकुल के उत्सव में आते थे। निवास की अनुकूल सुविधा न होने पर भी वह कहते थे कि कहीं भीतर या बाहर बिस्तर लगा दो जिससे थोड़ा आराम कर सके। कमरे व पृथक शय्या का आग्रह उन्होंने कभी नहीं किया। दक्षिणा पर भी उन्होंने कभी किसी समारोह में अधिकारियों से विवाद नहीं किया। दक्षिणा मिल गई, कम व अधिक मिली व नहीं मिली, सब स्थितियों में वह सन्तोष करते थे। हमने ऐसा भी देखा कि पंडित जी किसी उत्सव में पहुंचे। वहां दूसरे भजनोपदेशकों को बुलाया गया था। पंडित जी को वहां किसी भी कार्यक्रम में भजन प्रस्तुत करने का समय नहीं दिया गया। हमें इस बात से पीड़ा हुई परन्तु पंडित जी ने किसी से कुछ नहीं कहा। कल दिनांक 24-10-2020 को हमें आगरा के आर्य विद्वान श्री उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी का फोन आया। उन्होंने बताया कि पथिक जी का निधन का समाचार सुनकर वह दुःखी हैं। उन्होंने एक संस्मरण सुनाते हुए बताया कि तपोवन, देहरादून में उन्होंने प्रवचन में कोई सिद्धान्त विषयक अशुद्ध बात कह दी थी। कार्यक्रम के बाद पथिक जी व कुलश्रेष्ठ जी आश्रम की पर्वतीय इकाई से नीचे वाले आश्रम में लौटे और अपने कमरे में गये। दोनों का कमरा एक ही था। पथिक जी ने हमने थैले से सत्यार्थप्रकाश निकाला और ऋषि के कुछ वाक्य पढ़ने को कहा। कुलश्रेष्ठ जी ने वह वाक्य पढ़े तो उन्हें ज्ञात हुआ कि वस्तुतः उन्होंने सिद्धान्त विरुद्ध कुछ कहा है। कुलश्रेष्ठ जी ने कहा कि मैंने अपनी गलती स्वीकार कर ली और भविष्य के लिए सुधार कर लिया। इस सैद्धान्तिक दृणता का वर्णन कर कुलश्रेष्ठ जी ने पथिक जी की प्रशंसा की और उनकी विनम्रता व सरलता को स्मरण किया। पथिक जी ने कुलश्रेष्ठ जी को अपने साथ सत्यार्थप्रकाश रखने की प्रेरणा भी की थी। पथिक जी के विषय में हमारी अनेक यादें हैं जिन्हें हम बाद में किसी लेख में प्रस्तुत करेगे।

पं. सत्यपाल पथिक जी का संक्षिप्त परिचय भी हम अपने मित्र पाठकों के लिये प्रस्तुत कर रहे हैं। पंडित सत्यपाल पथिक जी का जन्म 13 मार्च, 1938 को ग्राम दुलभ कालवां तहसील पसरूर, जिला स्यालकोट, जो अब पाकिस्तान में है, हुआ था। पंडित जी के पिता का नाम श्री लालचन्द जी तथा माता जी का नाम श्रीमती कर्मदेवी था। देश विभाजन होने पर पंडित जी अपने परिवार सहित भारत आ गये और अमृतसर में निवास किया। बालक सत्यपाल जी के ग्राम में श्री देसराज जी आर्य एक आर्यसमाजी बन्धु थे। पंडित जी के पिता पर श्री देसराज जी आर्य का कुछ कुछ रंग चढ़ गया जो पंडित सत्यपाल जी के लिए वरदान सिद्ध हुआ। पं. बनवरीलाल जी शारदा ने लगभग चैदह वर्ष की आयु में पं. सत्यपाल जी का यज्ञोपवतीत संस्कार करवाया था और उन्हं आर्यसमाज की दीक्षा दी थी। अनेक आर्यसमाजों के उत्सवों पर शारदाजी ने पंडित जी को अपने साथ रखा तथा उन्हें वैदिक विद्वानों तथा संन्यासियों के दर्शन करवाये। इसी से पं. सत्यपाल जी की ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज में निष्ठा उत्तरोत्तर वृद्धि को प्राप्त होती गई। आपने लगभग 60 वर्षों तक वैदिक धर्म व आर्यसमाज का प्रचार कार्य किया। पंडित जी का अमृतसर में अपने निवास पर निजी पुस्तकालय अत्यन्त संमृद्ध था। उस पुस्तकालय में 3500 से अधिक पुस्तकें हैं। आपने हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, उर्दू, पंजाबी, गुजराती, मराठी आदि भाषाओं में वैदिक धर्म विषयक साहित्य का अध्ययन किया था। वेद मन्त्रों के शुद्ध उच्चारण पर आप विशेष बल देते थे।

पंडित सत्यपाल पथिक जी का विवाह 10 अप्रैल, 1962 को अमृतसर वासी श्री कृपाराम एवं श्रीमती नन्तीदेवी जी की सुपुत्री माता कृष्णावन्ती जी के साथ हुआ था। माता कृष्णावन्ती जी कुछ वर्ष पूर्व दिवंगत हो चुकी हैं। पंडित जी के तीन पुत्र हैं। पंडित जी ने सभी पुत्रों को उत्तम शिक्षा एवं संस्कार दिये हैं और संस्कारित परिवार की कन्याओं से उनके विवाह कराये हैं। पंडित जी ने अपने परिवार का पालन पोषण करते हुए अपनी संस्कृत की योग्यता को भी बढ़ाया और संस्कृत की कुछ परीक्षायें भी दीं। सन् 1982 में आपने पौरोहित्य का काम छोड़ दिया था और गीत व भजनों की रचना करने के साथ भजनोपदेशक के रूप में पूर्णकालिक आर्यसमाज की सेवा आरम्भ की थी। आपने देशभर की आर्यसमाजों में जाकर भजन व प्रवचनों सहित यज्ञ के ब्रह्मा बन कर भी आर्यसमाज की सेवा की। वैदिक साधन आश्रम के विगत अक्टूबर, 2019 के शरदुत्सव के वेद पारायण यज्ञ के ब्रह्मा आप ही थे। हमें भी इस कार्यक्रम में सम्मिलित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।

पंडित सत्यपाल पथिक जी ने आर्य गीतकार व भजनोपदेशक पं. श्री प्रकाशजी कविरत्न, कुंवर सुखलाल आर्यमुसाफिर, पं. देशराज जी आर्य, पं. नन्दलाल आदि आर्य कवियों से प्रेरणा प्राप्त कर सन् 1956 से भजन लिखना प्रारम्भ किया था। आपके भजनों के बिना आर्यसमाजों के उत्सव पूर्ण नहीं होते थे। आपने हिन्दी तथा पंजाबी भाषा में जो भजन लिखे व गाये, वह सब आर्य वैदिक सिद्धान्तों पर खरे उतरते हैं। आर्यसमाज में विगत तीन चार दशकों में आपकी कैसेट्स तथा सीडी भी बहुत लोकप्रिय हुई हैं। यह हम सबकी प्रसन्नता का विषय है कि आपके पुत्र श्री दिनेश आर्य पथिक जी भजनोपदेशक का पूर्णकालिक दायित्व लेकर पिछले लम्बे समय से आर्यसमाज का प्रचार कर रहे हैं। श्री दिनेश पथिक जी आर्यसमाज के उच्च कोटि के प्रतिष्ठित भजनोपदेशक हैं। हमने दिनेश जी के भजन टंकारा, तपोवन तथा गुरुकुल देहरादून सहित यूट्यूब पर सुना है तथा उनसे वार्ता भी की है। पथिक जी का समय समय पर अनेक आर्यसमाजों में सम्मान किया गया है। इसमें श्री घूडमल प्रहलादकुमार आर्य धर्मार्थ न्यास, हिण्डौन सिटी भी सम्मिलित है। स्वामी रामदेव जी ने पतंजलि योगपीठ की ओर से भी आपको एक लाख की धनराशि देकर सम्मानित किया था। पथिक जी के सभी भजनों का संग्रह यशस्वी ऋषिभक्त श्री प्रभाकरदेव आर्य जी ने ‘पथिक भजन संग्रह’ नाम से दो खण्डों में प्रकाशित किया है। इस ग्रन्थ से पंडित जी अमर हो गये हैं। हम आशा करते हैं कि समय समय पर इस ग्रन्थ के नये संस्करण प्रकाशित होते रहेंगे और आर्य पाठकगण पथिक जी के प्रति अपनी श्रद्धा को इस ग्रन्थ को खरीदकर व इसे पढ़कर व्यक्त करेंगे। हम यह भी अनुभव करते हैं पंडित जी जिन संस्थाओं से सक्रियता से जुड़े रहे उनमें से किसी संस्था के अधिकारी पंडित जी के नाम से एक पुरस्कार आरम्भ करेंगे जो ऐसे ऋषिभक्त को दिया जाये जो गीत व भजन लेखन के साथ आर्यसमाज का पूर्णकालिक समर्पित भजनोपदेशक हो।

हम परम ऋषिभक्त एवं वैदिक धर्म के अनन्य सेवक, प्रचारक एवं समर्पित विद्वान, गीतकार, भजन गायक एवं पुरोहित पं. सत्यपाल पथिक जी को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। ईश्वर उनको अमर पद प्रदान करें। आर्यसमाज के अधिकारी व सदस्य पंडित जी के जीवन एवं व्यवहार से शिक्षा एवं प्रेरणा ग्रहण कर शुद्ध व पवित्र आचरण के धनी बनें, ऐसा करना ही उनको सच्ची श्रद्धांजलि प्रतीत होती है। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

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