ओ३म् : श्रद्धांजलि-: “उच्च कोटि के आर्य साहित्य के लेखक व सम्पादक वैदिक विद्वान डा. विनोदचन्द्र विद्यालंकार”

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ओ३म्
-श्रद्धांजलि-
“उच्च कोटि के आर्य साहित्य के लेखक व सम्पादक वैदिक विद्वान डा. विनोदचन्द्र विद्यालंकार”

वैदिक विद्वान, सम्पादक कला के मर्मज्ञ एवं लेखक डा. विनोदचन्द्र विद्यालंकार अब हमारे मध्य में नहीं हैं। दिनांक 15 सितम्बर 2020 को उनका 78 वर्ष की आयु में हरिद्वार में निधन हो गया। डा. विनोदचन्द्र विद्यालंकार ऋषि दयानन्द के प्रसिद्ध भक्त थे। आपने अपने जीवन में आर्यसमाज को उच्च कोटि का साहित्य दिया। आप एक सुमधुर वक्ता भी थे। हमने अनेक अवसरों पर आपको आर्यसमाज के समारोहों में सुना था। यदाकदा मोबाइल फोन पर भी आपसे बातें हुआ करती थी। आपका स्नेह एवं आशीर्वाद हमें प्राप्त होता रहता था। आप वेदों के उच्च कोटि के विद्वान एवं सामवेद भाष्यकार डा. आचार्य रामनाथ वेदालंकार जी के पुत्र थे। आपका बाल्यकाल गुरुकुल कांगड़ी परिसर में व्यतीत हुआ था। आपकी शिक्षा व दीक्षा भी गुरुकुल कांगड़ी में ही हुई। आप गुरुकुल कांगड़ी के ही स्नातक थे। यहीं से आपने विद्यालंकार की उपाधि प्राप्त की थी। वर्तमान में आप आर्य वानप्रस्थ आश्रम, ज्वालापुर (हरिद्वार) में निवास करते थे। आपने लेखन के क्षेत्र में जो कार्य किये उसका हम इस लेख में संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं।

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डा. विनोदचन्द्र विद्यालंकार जी का जन्म 4 जून सन् 1942 को फरीदपुर जनपद बरेली राज्य उत्तरप्रदेश में हुआ था। आपकी माताजी का नाम श्रीमती प्रकाशवती तथा पिता डा. आचार्य रामनाथ वेदालंकार था। डा. रामनाथ वेदालंकार जी वेदो के सुप्रसिद्ध विद्वान थे। उनका सामवेद भाष्य, वेदों की वर्णन शैलियां, वेद मंजरी आदि वैदिक साहित्य के़ अन्यतम ग्रन्थ हैं। सामवेदभाष्य सहित आपने वेदों पर उच्च कोटि के एक दर्जन से अधिक ग्रन्थों की रचना की है। वेदमंजरी, ऋग्वेदज्योति, यजुर्वेद ज्योति, अथर्ववेदज्योति, आर्षज्योति, वैदिक मधुवृष्टि, वेदभाष्यकारों की वेदार्थ प्रक्रियायें, वेदों की वर्णन शैलियां, यज्ञ मीमांसा, वैदिक नारी, उपनिषद्-दीपिका, वैदिक वीर-गर्जना, वैदिक सूक्तियां आदि आपके प्रमुख ग्रन्थ हैं। हमारा सौभाग्य है कि हम अपने जीवन में आचार्य रामनाथ वेदालंकार जी के निकट सम्पर्क में रहे। हमने आचार्य जी के अनेक ग्रन्थ उन्हीं से प्राप्त किये थे। उच्च पाण्डित्य से युक्त सरल व सहज भाषा में रचित आपके ग्रन्थ को पढ़ने में एक विशेष आनन्द आता है। सभी मित्रों को हम आचार्य जी का समस्त साहित्य प्राप्त कर उसका अध्ययन करने की सलाह देते हैं। इससे आपको ज्ञान लाभ सहित अनेक अन्य लाभ भी होंगे।

डा. विनोदचन्द्र विद्यालंकार जी की शिक्षा गुरुकुल कांगड़ी विश्व विद्यालय में हुई थी। यहां से आपने विद्यालंकार की उपाधि प्राप्त की थी। आपने एम.ए. संस्कृत तथा पी-एच.डी. आगरा विश्व विद्यालय से किये थे। डा. विनोदजी 20 अगस्त, 1969 से 30 जून 2002 तक गोविन्द बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्व विद्यालय पंतनगर (उत्तरांचल) के प्रकाशन निदेशालय में सह-सम्पादक, सम्पादक, सहनिदेशक तथा प्रबन्धक, विश्व-विद्यालय मुद्रणालय (1991-1996) तथा उदार-शिक्षा (लिबरल एजुकेशन) के परामर्शदाता के रूप में ‘भारत की सांस्कृतिक विरासत’ पाठ्यक्रम का अध्यापन (1999-2002) के कार्य किए। आप आर्य वानप्रस्थ आश्रम, ज्वालापुर (हरिद्वार) की मासिक पत्रिका ‘स्वस्तिपन्थाः’ के 6-7 वर्ष सन् 2003 से 2009 तक आदरी सम्पादक भी रहे। इसके बाद आपने स्वतन्त्र लेखन व सम्पादन का कार्य किया जिससे आर्यसमाज को आपकी अनुभव से पूर्ण लेखनी से अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थ मिले जिनका उल्लेख हम इस लेख में आगे से कर रहे हैं।

आपने पन्तनगर विश्व विद्यालय में कार्य करते हुए अपने विभाग से सम्बन्धित अनेक पुस्तकों का सम्पादन किया। आपके द्वारा सम्पादित व अनुदित रचनाओं के नाम हैं: कृषि, पशु चिकित्सा, पशुपालन अभियांत्रिकी आदि की 34 हिन्दी-पुस्तकों का सम्पादन एवं प्रस्तुतिकरण तथा 15 अंग्रेजी-वैज्ञानिक पुस्तकों का हिन्दी में अनुवाद।

आपके द्वारा मौलिक/सम्पादित रचनाओं की सूची भी लम्बी है। हमारी जानकारी में इस के अन्तर्गत आपकी निम्न आती हैं:

1- जयदेव: आचार्य एवं नाटककार के रूप में आलोचनात्मक अध्ययन
2- स्नातक परिचायिका (गुरुकुल विश्वविद्यालय के 1976 तक के स्नातक/स्नातिकाओं का परिचय)
3- स्वामी श्रद्धानन्द: एक विलक्षण व्यक्तित्व (आर्य प्रकाशक हितकारी प्रकाशन समिति, हिण्डौन-सिटी से उपलब्ध)
4- शतपथ के पथिक स्वामी समर्पणानन्द: एक बहुआयामी व्यक्तित्व (दो खण्डों में, यह ग्रन्थ आर्य प्रकाशक मैसर्स विजयकुमार गोविन्दराम हासानन्द, दिल्ली से उपलब्ध है)
5- निःश्रेयस् (आर्य वानप्रस्थआश्रम, ज्वालापुर की हीरक जयन्ती स्मारिका)
6- निहारिका
7- भारतीय संस्कृति के पुरोधा: स्वामी श्रद्धानन्द।

डा. विनोदचन्द्र विद्यालंकार जी ने अनेक स्मारिकायें भी सम्पादित की हैं। आपके द्वारा सम्पादित स्मारिकाओं का विवरण निम्न हैः

1- उत्तराखण्ड में पशुधन एवं डेरी विकस-वर्तमान स्थिति एवं वांछित कार्य योजनाएं
2- सामाजिक वनीकरण और ग्राम विकास में पापलर का योगदान
3- प्रदूषण मुक्त पर्यावरण: सुरक्षित पर्यावरण
4- वैदिक दृष्टि (आर्यसमाज रुद्रपुर उत्तरांचल की स्वर्ण जयन्ती स्मारिका)।

डा. विनोद चन्द्र विद्यालंकार जी ने अपने जीवन के अन्तिम वर्षों में भी कुछ महत्वपूर्ण ग्रन्थों का लेखन व सम्पादन किया। हमारे उनसे हार्दिक श्रद्धापूर्ण सम्बन्ध थे। वह अपने प्रत्येक नये ग्रन्थ की एक प्रति हमें भेंट करते थे। भेजने के बाद कुछ समय प्रतीक्षा कर फोन पर पूछते थे कि वह पुस्तक हमें प्राप्त हुई या नहीं? हमें जब किसी संस्था द्वारा सम्मानित किया गया और उन्हें पता लगा, तो वह हमें फोन पर बधाई अवश्य देते थे। हम जैसे एक साधारण व्यक्ति को यदि कोई उच्च कोटि का विद्वान प्रशंसा व बधाई के शब्द कहे तो ऐसे व्यक्तियों के प्रति हमारी श्रद्धा में विस्तार होता था। ऐसा अनेक बार हुआ। कई बार हमने उनके द्वारा प्रसारित विज्ञप्तियों को भी अपनी फेस बुक व व्हटशप के गु्रपों व मित्रों में साझा किया था। सभी प्रमुख आर्य पत्र पत्रिकाओं में भी हम उनकी प्रसार सामग्री को भेज देते थे। कुछ थोडे़ से अवसरों पर ऐसा हुआ। हमने हरिद्वार व गुरुकुल पौंधा में जब उनके व्याख्यानों को सुना तो हमने उनके व्याख्यानों को अपने समाचार लेखों में प्रमुखता से सम्मिलित किया था। डा. विनोदचन्द्र विद्यालंकार जी ने पिछले कुछ वर्षों में हमें जो अपनी पुस्तकें भेंट स्वरूप प्रेषित की उनमें से कुछ निम्न हैं:

1- ऋक्सूक्ति रत्नाकर
2- यजुः सूक्ति-रत्नाकर
3- आर्य संस्कृति के संवाहक आचार्य रामदेव
4- धर्मोपदेश मंजरी (सम्पादित ग्रन्थ महत्वपूर्ण भूमिका के साथ)

5- ‘अथर्ववेदीय चिकित्सा शास्त्र’। इस ग्रन्थ के मूल लेखक स्वामी ब्रह्ममुनि परिव्राजक, विद्यामार्तण्ड हैं। (इसके नये संस्करण का डा. विनोद जी ने सम्पादन किया है।)

6- श्रुति-मन्थन। आचार्य रामनाथ वेदालंकार जी के जीवन पर मृत्योपरान्त सम्पादित स्मृति ग्रन्थ। यह ग्रन्थ अत्यन्त विशाल है। हमने इसे आद्योपान्त पढ़ा है। सभी स्वध्यायशील बन्धुओं को इसे श्री प्रभाकरदेव आर्य, हिण्डौन सिटी से मंगाकर पढ़ना चाहिये। इसे पढ़कर ही हम डा. विनोदचन्द्र विद्यालंकार जी के इस ग्रन्थ को सम्पादित करने में किए गये पुरुषार्थ तथा उनकी सम्पादन क्षमता का साक्षात्कार कर सकते हैं।

डा. विनोद चन्द्र विद्यालंकार जी ने जीवन भर विस्तृत लेखन एवं सम्पादन कार्यों द्वारा जो साहित्य साधना की, उसके लिये वह अनेक सस्थाओं द्वारा सम्मानित किये गये। उनको प्राप्त कुछ सम्मान इस प्रकार हैं।

1- महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी द्वारा वर्ष 1997 में हिन्दी में वैज्ञानिक साहित्य निर्माण में योगदान के लिए।
2- आर्य वानप्रस्थ आश्रम, ज्वालापुर (हरिद्वार) द्वारा जून 2003 में हीरक जयन्ती स्मारिका के सम्पादन/प्रकाशन में योगदान हेतु प्राप्त सम्मान।
3- राजभाषा संघर्ष समिति दिल्ली द्वारा 31 जुलाई को दीर्घकालीन हिन्दी-सेवा के लिए श्री जगननाथ स्मृति राजभाषा सम्मान 2003-2005।
4- आर्यसमाज ग्रेटर कैलाश नई दिल्ली द्वारा पं. सत्यदेव शर्मा विद्यालंकार स्मृति-सम्मान।
5- उत्तराखण्ड गौरव सम्मान (2009)।
6- स्वामी धर्मानन्द विद्यामार्तण्ड आर्यभिक्षु सम्मान (2009) (यह सम्मान माता लीलावती आर्यभिक्षु धर्मार्थ न्यास द्वारा प्रदान किया गया),
7- आर्य विभूषण सम्मान (2012) (राव हरिश्चन्द्र आर्य धर्मार्थ न्यास नागपुर द्वारा)
8- श्री घूडमल प्रहलादकुमार आर्य साहित्य सम्मान, हिण्डौन सिटी (2015)

डा. विनोद चन्द्र विद्यालंकार जी ने सेवानिवृत्ति के पश्चात आर्य वानप्रस्थाश्रम, ज्वालापुर (उत्तराखण्ड) के कुटिया संख्या 217 में निवास किया। आपके पुत्र श्री स्वस्ति अग्रवाल हमसे फेसबुक पर जुड़े हुए हैं। इससे हमारे लेखन कार्य व उनके कुछ समाचारों का हमें ज्ञान हो जाता है।

कोरोना काल में यातायात व्यवस्था अवरुद्ध होने, सामाजिक दूरी बनाये रखने के नियम तथा हमारा स्वास्थ्य भी उपयुक्त न होने के कारण हम हरिद्वार में भाई साहब डा. विनोद जी के अन्त्येष्टि संस्कार एवं शान्ति यज्ञ में सम्मिलित नहीं हो सके। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह दिवगत आत्मा को सद्गति एवं शान्ति प्रदान करें। श्रद्धेय विनोदकुमार जी ने जो साहित्य साधना की है उसका लम्बे समय तक लोग लाभ उठायेंगे जिससे विनोद जी की कीर्ति अमर रहेगी और वह अपने यशः शरीर से अपने पाठकों के हृदयों में जीवित रहेंगे। डा. विनोदचन्द्र विद्यालंकार जी को सादर हार्दिक श्रद्धांजलि। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

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