पावागढ़ नामक पर्वत के नीचे एक समय चांपानेर नामक बडा नगर था, जिसे पावा कहा जाता था। यह नगर कभी गुजरात की राजधानी था। बारह मील घेरे में बसा यह नगर बहुत प्रसिद्ध था। इस नगर के खंडहरों के पास पावागढ़ का पर्वत है। इस पर्वत के ऊपर महाबली – माता का मंदिर है। पावागढ़ हिंदू और जैनतीर्थों का संगम है। एक कथा के अनुसार इस पर्वत के छोर पर खड़े होकर ऋषि विश्वामित्र उपासना कर रहे थे। एक बार ऋषि की गाय चरती – चरती यहां तक आ पहुंची और नीचे खड्डे में गिर गई। इस पर ऋषि ने ईश्वर से प्रार्थना की कि इस दर्रे को भर दो। तब इस तरफ का दर्रा भर गया। इससे यह पर्वत पावागढ़ कहलाया। एक दूसरा कारण पर्वत के नामकरण के बारे में यह प्रचलित है कि इसके आसपास के खुले मैदान के बीच में यह पर्वत चारों तरफ से पवन के झोंकों का मुकाबला करता है। इस कारण इस पर्वत को ‘ पावागढ ‘ कहा जाता है। यह स्थान बड़ोदरा से 48 किलोमीटर दूर है। यहां पहुंचने के लिए चांपानेर रोड नाम के रेलवे स्टेशन पर ट्रेन बदलनी पड़ती है। बड़ोदरा और गोधरा से बस द्वारा भी पहुंचा जा सकता है। गोधरा से यह स्थान 40 किलोमीटर पर है।
‘ पावागढ ‘ तीर्थस्थल उल्लेख
पावागढ़ शिखर ढाई हजार फुट ऊंचा है। बिना सीढ़ियों के भी मार्ग चढ़ने में दुर्गम नहीं है। इसकी लंबी चढ़ाई लगभग 5 किलोमीटर है। मार्ग में सात विशाल द्वार बने हुए हैं पावागढ़ की चढ़ाई पर 5 वें द्वार से ही जैन मंदिर आरंभ हो जाते हैं। छठे दरवाजे के पास ही दुधिया तालाव नामक स्थान है। इस तालाब में तीर्थयात्री स्नान करते हैं। दुधिया तालाब तक जैनमंदिर फैले हुए हैं और इसके बाद हिंदू मंदिरों का सिलसिला चलता है। यहीं से महाकाली मंदिर की चढाई के लिए सीढ़ियां हैं। लगभग 150 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। महाकाली की मूर्ति आधी दिखाई देती है।
महाकाली मंदिर से सीढ़ियां उतरकर दूसरी ओर लगभग एक किलोमीटर पर भद्रकाली मंदिर है। पर्वत पर परकोटा बना हुआ है। यह कोट आजकल अनेक जगह से टूट – फूट गया है, लेकिन माता का मंदिर ठीक हालत में है। नवरात्र के दिनों में यहां मेला लगता है। यह पर्वत 29 किलोमीटर के घेरे में फैला हुआ है।
चांपानेर ( पावागढ़ ): जैन मंदिर,पावागढ़ कभी गुजरात की राजधानी था