तो क्या आपका इरादा उत्तरप्रदेश को पश्चिम बंगाल बनाने का है?
—मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
कल हमारी फेसबुक पर लिखी एक पोस्ट पर समाजवादी के एक जिला प्रवक्ता साहब ने अपने एक कमेंट में लिखा कि-“आपकी एक-एक पोस्ट को संभाल कर रखा जा रहा है।” अब हम इसे अपने लिए धमकी समझें या चेतावनी? या फिर उनका हमारे प्रति प्रेम और हमारी लेखनी के प्रति उनका सम्मान? क्योंकि कई बार फोन करने के बावजूद प्रवक्ता साहब ने हमारा फोन रिसीव नहीं किया।
वैसे इन्हीं साहब ने अभी कुछ समय पूर्व अपनी फेसबुक वॉल पर लिखा था कि “ज़ुल्म इतना करो जिसे तुम बाद में बर्दाश्त कर सको”. अब ऐसा उन्होंने किस परिप्रेक्ष्य में लिखा था, हमारे लिए यह कहना थोड़ा सा मुश्किल है। लेकिन हमें अब इस बात का अंदेशा दिखाई दे रहा है कि कहीं उत्तरप्रदेश को पश्चिम बंगाल बनाने की कोई तैयारी तो नहीं हो रही? चूंकि पश्चिम बंगाल में TMC की जीत के बाद वहां विपक्ष के समर्थकों के साथ TMC समर्थकों और नेताओं ने किस प्रकार का दुर्व्यवहार, कत्लेआम, और मारपीट के साथ-साथ उनपर झूठे मुकदमे लगवाए, वह किसी से भी छुपे नहीं हैं।
तो क्या समाजवादी पार्टी के कुछ नेताओं की भी मंशा उत्तरप्रदेश में वही सब दोहराने की है? अभी तो समाजवादी पार्टी की सरकार भी नहीं बनी और उनके नेताओं ने पत्रकारों और ब्राह्मणों को धमकाना भी शुरू कर दिया। इतना अहंकार, इतनी नफ़रत। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर “पाकिस्तान जिंदाबाद” के नारे और “तालिबान की शान में कसीदे” गढ़ने वाले सपाई दूसरों को सच्चाई लिखने से क्यों रोक रहे हैं।
अगर रोकना ही है तो आप शफीकुर्रहमान बर्क़ साहब, एसटी हसन साहब, इरफान सोलंकी साहब और अबरार अहमद साहब जैसे नेताओं की “वाणी” पर अंकुश लगाईये। ब्राह्मणों और पत्रकारों पर आप इतने नाराज़ क्यों हो रहे हैं, साहब?
आपके पास यदि तर्क हैं तो आप उन्हें प्रस्तुत कीजिये, सार्वजनिक मंचों पर वास्तविक मुद्दों पर तर्क-वितर्कों के साथ परिचर्चाएं कीजिये। लेकिन यदि आप किसी को धमका रहे हैं, चेतावनियां दे रहे हैं, तो क्या यह माना जाए कि आपके पास हमारे प्रश्नों का तार्किक उत्तर नहीं है? कोई भी व्यक्ति धमकियां अथवा हिंसा का मार्ग तभी अपनाता है जबकि उसके पास कुतर्कों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं होता।
प्रवक्ता वह होता है जो विनम्रतापूर्वक अपनी पार्टी की नीतियों को जनता-जनार्दन के समक्ष रख सके और उचित तर्कों के द्वारा विपक्ष के आरोपों का खंडन कर सके।
यह हिंदुस्तान है साहब, तालिबान नहीं, जहां बंदूकों के दम पर हुक़ूमत की जा सके। हम तो प्रजा हैं, आप राजा हैं। राजा तो प्रजा का पालक होता है ,रक्षक होता है, भक्षक नहीं होता।
अंत में यह भी समझ लीजिए कि बंदूक की गोली एक सीमा तक मार करती है साहब, लेकिन कलम की मार असीमित होती है। इतना अहंकार अच्छा नहीं होता, फ़िरौन से लेकर रावण तक का अहंकार धूल में मिल गया।
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🖋️ मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”