……………तो जीव नष्ट हो जायेगा (भर्तृहरि नीति )

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दौर्मन्त्र्यान्नृपतिर्विनश्यति यतिः सङ्गात् सुतो लालनाद्;  विप्रोऽनध्यनात् कुलं कुतनयाच्छीलं खलोपासनात्।ह्रीर्मद्यादनवेक्षणादपि कृषिः स्नेहः प्रवासाश्र-यान्मैत्री चाप्रणयात् समृद्धिरनयात् त्यागः प्रमादाद्धनम् ॥ ४२॥
  (भर्तृहरि नीति शतक श्लोक 42 का)
 

भावार्थ- दुष्ट मंत्री से राजा, संसारियों की सङ्गति से सन्यासी, लाड़ से पुत्र, न पढ़ने से ब्राह्मण, कुपुत्र से कुल, खल की सेवा से शील, मदिरा पीने से लज्जा, देखभाल न करने से खेती, विदेश में रहने से स्नेह, प्रीति न करने से मित्रता, अनीति से संपत्ति और अंधाधुंध खर्च करने से संपत्ति नष्ट हो जाती है।

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