देवी महिमा, तब किया महिषासुर का नाश

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श्रीमद्देवीभागवत में देवी की उत्पत्ति की गाथा का प्रसंग है, जिसमें देवी की उत्पत्ति कैसे हुई?, उन्होंने कैसे देवताओं की रक्षा की थी? इसका उल्लेख है।

पूर्वकाल की एक बात है, रम्भ दानव का महिषासुर नामक एक प्रबल पराक्रमी और बलशाली पुत्र था। एक समय में उसने सम्पूर्ण चराचर जगत में हाहाकार मचाया हुआ था। उसके बल से देवताओं के राजा इंद्र भी स्वयं को असहाय महसूस करते थे। एक समय में उसने अमर होने की इच्छा से ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिये बड़ी कठिन तपस्या की। उसकी दस हजार वर्षों की तपस्या के बाद लोकपितामह ब्रह्मा प्रसन्न हुए। वे हंस पर बैठकर महिषासुर के निकट आये और बोले कि वत्स ! उठो , अब तुम्हारी तपस्या सफल हो गयी। मैं तुम्हारा मनोरथ पूर्ण करूँगा। इच्छानुसार वर माँगो। महिषासुरने उनसे अमर होने का वर माँगा । ब्रह्माजी ने कहा कि पुत्र जन्मे हुए हर प्राणी का मरना और मरे हुए प्राणी का जन्म लेना सुनिश्चित है, इसलिए एक मृत्युको छोड़कर, जो कुछ भी चाहो, मैं तुम्हें प्रदान कर सकता हूँ। महिषासुर बोला कि प्रभो । देवता, दैत्य मानव किसी से मेरी मृत्यु न हो। किसी स्त्री के हाथ से मेरी मृत्यु निश्चित करनेकी कृपा करें। ब्रह्माजी एवमस्तु कहकर अपने लोक चले गये। वर प्राप्त करके लौटने के बाद समस्त दैत्यों ने प्रबल पराक्रमी महिषासुरको अपना राजा बनाया। उसने दैत्योंकी विशाल वाहिनी लेकर पाताल और मृत्युलोक पर धावा बोल दिया। सभी प्राणी उसके अधीन हो गये। फिर उसने इन्द्रलोकपर आक्रमण किया। इस युद्ध में भगवान विष्णु और शिव भी देवराज इन्द्रकी सहायताके लिये आये, लेकिन महाबली महिषासुरके सामने सबको पराजयका मुख देखना पड़ा और देवलोक पर भी महिषासुर का अधिकार हो गया ।

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भगवान शंकर और ब्रह्मा को आगे करके सभी देवता भगवान विष्णु को शरण में गये और महिषासुर के आतंक से छुटकारा प्राप्त करनेका उपाय पूछा। भगवान विष्णु ने कहा कि देवताओ, ब्रह्माजी के वरदान से महिषासुर अजेय हो चुका है, हममेंसे कोई भी उसे नहीं मार सकता है। आओ, हम सभी मिलकर सबकी आदि कारण भगवती महाशक्तिकी आराधना करें। फिर सभी लोगोंने मिलकर भगवतीको आर्तस्वर में प्रार्थना की सबके देखते – देखते ब्रह्मादि सभी देवताओं के शरीरों से दिव्य तेज निकल कर एक परम सुन्दरी स्त्री के रूप में प्रकट हुआ। भगवती महाशक्ति के अद्भुत तेजसे सभी देवता आश्चर्यचकित हो गये। हिमवान्ने भगवतीको सवारीके लिये सिह दिया और सभी देवताओं ने अपने अपने अस्त्र – शस्त्र महामाया की सेवा में प्रस्तुत किये। भगवतीने देवताओं पर प्रसन्न होकर उन्हें शीघ्र ही महिषासुरके भय से मुक्त करने का आश्वासन दिया। पराम्बा महामाया हिमालय पर पहुंची और अग्रहास पूर्वक घोर गर्जना की उस भयंकर शब्दको सुनकर दानव डर गये और पृथ्वी काँप उठी। महिषासुरने देवी के पास अपना दूत भेजा दूत ने कहा कि सुन्दरी, मैं महिषासुरका दूत हूँ। मेरे स्वामी त्रैलोक्यविजयी हैं। वे तुम्हारे अतुलनीय सौन्दर्यक पुजारी बन चुके हैं और तुमसे विवाह करना चाहते हैं। देवि ! तुम उन्हें स्वीकार करके कृतार्थ करो। ‘ भगवतीने कहा कि मूर्ख, मैं सम्पूर्ण सृष्टिकी जननी और महिषासुरको मृत्यु हूँ। तू उससे जाकर यह कह दे कि वह तत्काल पाताल चला जाय , अन्यथा युद्धमें उसकी मृत्यु निश्चित है। दूतने अपने स्वामी महिषासुरको देवीका सन्देश दिया। भयंकर युद्ध छिड़ गया। एक एक करके महिषासुरके सभी सेनानी देवी के हाथों से मृत्युको प्राप्त हुए। महिषासुरका भी भगवतीके साथ महान संग्राम हुआ। उस दुष्टने नाना प्रकारके मायिक रूप बनाकर महामायाके साथ युद्ध किया। अन्तमें भगवतीने अपने चक्र से महिषासुरका मस्तक काट दिया। देवताओंने भगवतीकी स्तुति की और भगवती महामाया प्रत्येक संकटमें देवताओंका सहयोग करनेका आश्वासन देकर अन्तर्धान हो गयीं।

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