परिवार की आंखों में खुशी और सुकून के सपने बुनते… हर रोज कमर कस के तैयार हो जाता हूं

0
447
“यादों में खोया एक नासमझ मनुष्य”

हाॅं! एक पिता हूॅं ना,
अतः अपने परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु,
बाह्य चमक-दमक पर एक आवरण लगा लेता हूॅं।
कितनी ही जिम्मेदारियों को मैं आसानी से निभा लेता हूॅं।
कभी-कभी मेरा मन भी आवेशित होता है,
कितनी ही पीड़ा , कितने ही भावों को दिल में दबा मुस्कुरा देता हूं ।
अनेकों बलाए मुझे रोकती हैं पर मैं तटस्थ बना रहता हूॅं।
सर्दी ,गर्मी धूप, बारिश सबको भूल काम पर निकल जाता हूॅं।
परिवार की आंखों में खुशी और सुकून के सपने बुनते ,
हर रोज कमर कस के तैयार हो जाता हूं।
परिवार की खुशियों में खुश हो अपना जी बहला लेता हूॅं,
माता-पिता ,पत्नी ,बच्चे सब को अपने अंदर समाये रहता हूॅं ।
हां ! पिता हूं ना इसलिए मुस्कुराता रहता हूॅं।

डा• ऋतु नागर
(स्वरचित)

Advertisment

 

“लगाव”:अंतिम क्षणों में उन्होंने मुझे वह क्रीम स्वेटर सौंपते हुए कहा……

सनातन धर्म, जिसका न कोई आदि है और न ही अंत है, ऐसे मे वैदिक ज्ञान के अतुल्य भंडार को जन-जन पहुंचाने के लिए धन बल व जन बल की आवश्यकता होती है, चूंकि हम किसी प्रकार के कॉरपोरेट व सरकार के दबाव या सहयोग से मुक्त हैं, ऐसे में आवश्यक है कि आप सब के छोटे-छोटे सहयोग के जरिये हम इस साहसी व पुनीत कार्य को मूर्त रूप दे सकें। सनातन जन डॉट कॉम में आर्थिक सहयोग करके सनातन धर्म के प्रसार में सहयोग करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here