शीर्षक-” फिर ना कहना कि वक्त नहीं”
वक्त नहीं लोगों के दामन में,
बड़े धीमें में पांव आता है वक्त,
बिन आहट गुजर जाता है ,
इंतजार करते रहते वक्त का ,
जाने कब जिंदगी पलट कर जाता है,
जाने कब मां की गोदी से,
बाबुल की डोली तक गुजर जाता है,
आज भाग रहे कल के लिए,
वक्त नहीं दामन में अपनों के लिए,
कहीं रिश्ते बोझ बन रहे कहीं ,
तकरार थमती नहीं,
कहीं जिंदगी थक सी रही,
कहीं सांसे थम सी रही,
कहीं सूनी आंखें ड्योढ़ी से हटती नहीं, किस लिए यूं बेतहाशा से दौड़ रहे ,
दामन में तुम्हारे,
खुद के लिए वक्त नहीं,
वक्त को थोड़ा वक्त दो ,
वरना यह वक्त नहीं आएगा दोबारा,
फिर ना कहना कि मेरे पास वक्त नहीं।
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डॉ० ऋतु नागर
स्वरचित ©
मुंबई, महाराष्ट्र
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