वेद विचार
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सामवेद भाष्यकार आचार्य रामनाथ वेदालंकार जी ने सामवेद मंत्र ६१३ के भाष्य में परमात्मा और जीवात्मा के पक्ष में दो पृथक पदार्थ प्रस्तुत किए हैं। यहां जीवात्मा के पक्ष में अर्थ प्रस्तुत है। परमात्मा के पक्ष का पदार्थ हमने कल प्रस्तुत कर दिया है।
मंत्र में शरीरधारी जीवात्मा कह रहा है –मैं आग हूं, आग के समान प्रकाशक तथा दुर्गुणों और दुर्जनों को भस्म करने वाला हूं, आचार्य के गर्भ से द्वितीय जन्म पाने के आरंभ से ही वेद-विद्या का विद्वान हूं। मेरी आंख में स्नेह है, अर्थात् मैं सबको स्नेहयुक्त आंख से देखता हूं।
मेरे मुख में अमृत अर्थात् वाणी का माधुर्य है। मैं सत्व-रजस्-तमस्, जाग्रत-स्वप्न-सुषुप्ति, तप-स्वाध्याय-ईश्वरप्राणिधान, ऋग्-यजुः-साम आदि त्रिगुणों से युक्त हूं। मैं परमेश्वर की अर्चना करने वाला, सदाचारी एवं विद्यावृद्धों का सत्कार करने वाला और सूर्य के समान तेजस्वी हूं। मैं ग्रह-उपग्रह, सूर्य आदि लोकों को खगोल-गणित द्वारा मापने आदि में समर्थ, अक्षय ज्योति वाला, श्रेष्ठ उद्देश्य के लिए सर्वस्व बलिदान कर देने वाला हूं।
भावार्थ यह है कि परमेश्वर के समान मनुष्य का आत्मा भी बहुत-से विशिष्ट गुणों वाला तथा महाशक्ति-संपन्न है। अतः उसे चाहिए कि महत्वाकांक्षी होकर महान् कर्मों को करने में कदम रखे।
-प्रस्तुतकर्ता मनमोहन आर्य (१७-१२-२०२१)