राष्ट्रीय विज्ञान दिवस

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लखनऊ। नगर निगम सदन प्रारम्भ होते ही सर्वप्रथम महापौर संयुक्ता भाटिया ने सभी को
राष्ट्रीय विज्ञान दिवस की बधाई देते हुए बताया कि
——28 फरवरी 1928 को प्रसिद्ध वैज्ञानिक चंद्रशेखर वेंकट रामन ने प्रकाश के तरंगों पर एक खोज किया। जिसको उन्हीं के नाम पर रमन प्रभाव कहा जाता है। जिस पर 1930 में उन्हें विश्व प्रसिद्ध नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1986 से इस विशेष दिन को नेशनल साइंस डे – राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाते हैं।

महापौर ने कहा कि राष्ट्रिय विज्ञान दिवस के अवसर पर आज इस सदन में आइए हम सभी उन वैज्ञानिकों को याद कर उनको नमन करते हैं जिन्होंने अपने शोधों से हमारे लखनऊ का नाम रोशन किया।
महापौर ने बताया कि
रवायत और तहजीब की राजधानी होने के साथ ही यह वैज्ञानिकों की भी राजधानी रही है। यहां के वैज्ञानिकों के शोधों का दुनिया ने लोहा माना है।

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महापौर ने लखनऊ का नाम रोशन करने वाले 5 वैज्ञानिकों का नाम लेकर कहा कि हमें इनपर गर्व है –
1) प्रो० बीरबल साहनी
जिन्होंने बीरबल साहनी इंस्टिट्यूट ऑफ पैलियो साइंसेज (बीएसआईपी) की स्थापना करवाई थी। इसका शिलान्यास करने पंडित जवाहरलाल नेहरू आए थे।
प्रोफेसर साहनी ने भारत में पौधों की उत्पत्ति और उनके जीवाश्म पर अहम शोध किए थे।
1921 में लखनऊ विश्वविद्यालय में बॉटनी विभाग शुरू हुआ। प्रोo साहनी उसके पहले प्रोफेसर रहे। उनका दोनों हाथों से लिखना और डायग्राम बनाने की तकनीक चर्चित है। उन्होंने ही एल यू के भूविज्ञान विभाग की नींव रखी थी।

2) वैज्ञानिक प्रोफेसर कैलाशनाथ कौल –
सिकंदर बाग स्थित एनबीआरआई की नींव 1948 में नेशनल बॉटनिकल के रूप में प्रोफेसर कैलाशनाथ कौल ने ही रखी थी।
1953 में उनके ‘दि बंथरा फार्मूला’ ने प्रदेश की ऊसर जमीनों पर हरियाली लाने का अदभुद कार्य किया। उन्होंने बंथरा की क्षारीय मिट्टी में ऐसे पौधे लगवाए की मैन मेड फॉरेस्ट बन गया। यह फॉरेस्ट पर्यावरण को फायदा दे गया। प्रोफ़ेसर कैलाशनाथ भारतीय वनस्पति शास्त्री, प्रकृति प्रेमी और सफल कृषि वैज्ञानिक थे।
वे लखनऊ में पले-बढ़े। उन्होंने इसे ही अपनी जन्मभूमि और कर्मभूमि माना। एलयू से पढ़ाई की और बाद में यही रहकर अहम शोध किए।
उनके शोधों के दम पर हमारे शहर लखनऊ का बॉटनिकल गार्डन दुनिया के शीर्ष पांच बॉटनिकल गार्डन में आ गया। बाकी के 4 केईडब्ल्यू लंदन, बोगोर इंडोनेशिया, पेरिस और न्यूयॉर्क के हैं।
1977 में उन्हें पद्मभूषण मिला।
प्रोo कौल को लंदन के रॉयल बोटैनिकल गार्डन और नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम में पहले भारतीय वैज्ञानिक के रूप में काम करने का गौरव मिला। उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज समेत कई ब्रिटिश यूनिवर्सिटीज में पढ़ाया। श्रीलंका, इंडोनेशिया, थाईलैंड, जापान, फिलीपींस में भी वनस्पति उद्यानों की स्थापना में अहम सहयोग दिया।

3) डॉ पीके सेठ –
आईआईटीआर के पूर्व वैज्ञानिक और डायरेक्टर डॉ पीके सेठ ने न्यूरोसाइंस के शोधों से अपनी और संस्थान की अलग पहचान बनाई। उन्होंने शोधों को लैब से लोगों तक पहुंचाया।
एलयू से बीएससी और एमएससी के बाद मेडिकल फार्माकोलॉजी में पीएचडी की। 1976 से 1971 तक शिकागो मेडिकल स्कूल में कार्यरत रहे। फिर आईसीएमआर की सेवा से जुड़े। आईआईटीआर में बतौर साइंटिस्ट जुड़े और 1997 में इसके निदेशक बन गए।
डॉ पीके सेठ ऐसे संस्थान से थे जहां विषाक्त पर शोध होते थे ऐसे में मेटल की विषाक्तता और उसका ब्रेन पर क्या प्रभाव होगा इस पर काम किया। मैग्नीज से होने वाली मानसिक बीमारियों, पार्किंसन, शिजोफ्रेनिया, माइग्रेन के दौरान न्यूरोट्रांसमीटर रिसेप्टर की घटती-बढ़ती मात्रा पर शोध कर बायो मार्कर तैयार किए। इससे फिजिशियन को इलाज करने और फार्मोकोलॉजिस्ट को दवा बनाने में आसानी होने लगी। डिप्रेशन अल्जाइमर जैसी मानसिक बीमारियों में ड्रग मेटाबोलाइज्ड एंजाइम की भूमिका को लेकर बायो मार्कर तैयार किए।

4) प्रोफेसर प्रभास पांडे-
प्रोफेसर प्रभास पांडे 1975 से 2011 तक भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण जीएसआई में कार्यरत रहे। वह अपर महानिदेशक के पद से रिटायर्ड हुए।
प्रोफेसर प्रभास की रिसर्च ने भूकंप जैसी आपदा को समझने के लिए एक डेटाबेस दिया। वह आईजीपीएस के साइंटिफिक बोर्ड के सदस्य रह चुके हैं। इस समय नेशनल स्पेसिफिक रिस्क मिटिगेशन प्रोग्राम स्टेट कोऑर्डिनेटर और न्यूक्लियर पावर कारपोरेशन टेक्निकल एडवाइजर है।
सेइसमोटेक्टोनिक एटलस भारतीय उप द्वीप की विवर्तनिक और भूकंप से जुड़ी जानकारी देता है। इसका उपयोग देश विदेश के वैज्ञानिक शोध कार्य के लिए कर रहे हैं। 2001 में आए भुज के विनाशकारी भूकंप का अध्ययन भारतीय भूविज्ञान सर्वेक्षण ने किया था। इसमें 84 वैज्ञानिकों ने भाग लिया। डॉ पांडे इस शोध के मुखिया रहे। यह शोध भूकंप विज्ञान, भूकंप रोधी निर्माण और प्राकृतिक आपदाओं को समझने में उपयोगी सिद्ध हुआ है।

5) डॉक्टर अख्तर हुसैन-
सीएसआईआर सीमैप की बिल्डिंग को एनबीआरआई दो कमरों और एक किराए की बिल्डिंग से शुरू किया। इस बिल्डिंग को पहचान दिलाने वाले डॉक्टर अख्तर हुसैन की पहचान गेमचेंजर की है। निदेशक डॉक्टर अख्तर हुसैन वैज्ञानिकों की दुनिया में लिविंग लिजेंड की तरह है।
उन्होंने मेंथा की काया पलट कर दी थी-
डॉ हुसैन ने 51 एकड़ भूमि पर संस्थान और फर्म स्थापित किए। बतौर डायरेक्टर उन्होंने विभाग तैयार करवाए और वैज्ञानिकों की नियुक्ति की। वह कई औषधि पौधों को पहचान में लाए। 10 साल में संस्थान ने सिट्रेनेला, पचौली, लेमन ग्रास जैसी घासों को पहचान दिलाई।
उन्होंने मेंथा पिपरमिंट के लिए जो काम किया, वो आज भी जारी है। उन्होंने मेंथा की मास१, मास२ और हाइब्रिड 77 विकसित करवाई, जिसके बाद 1986 में मेंथा तेल के उत्पादन में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हुई। इसका उत्पादन 200 टन से 12000 टन पहुंच गया। पहले हमारा देश मेंथा तेल का आयात करता था। पर अब इसके लिए आत्मनिर्भर हो चुका है। इसका श्रेय डॉक्टर अख्तर हुसैन को जाता है।

महापौर संग सदन ने दिया स्टैंडिंग ओबिएशन-
महापौर ने कहा कि इन सभी ने हमारे शहर लखनऊ का नाम दुनिया में रोशन किया है, आइए हम सब खड़े होकर ताली बजाकर इनका आभार प्रकट करते हैं।
महापौर के आह्वाहन पर सदन में उपस्थित सभी पार्षदों सहित समस्त अधिकारीयों कर्मचारियों ने भी अपने स्थान पर खड़े होकर तालियां बजाकर इनका आभार प्रकट किया।

महापौर ने बताया कि कोरोना काल में प्रारम्भ में ही हमारे निमंत्रण पर लखनऊ के वरिष्ठ वैज्ञानिक कोरोना बचाव हेतु बैठक में आए थे, उस महत्त्वपूर्ण बैठक के बिंदु बनाकर शासन को भेजा गया था, उन हितकारी निर्णयों को सरकार ने संज्ञान लेते हुए गाइडलाइंस जारी किए थे जो जनहित में उपयोगी सिद्ध हुए थे।

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