श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर मालिकाना हक के लिये अगली तारीख 30 सितंबर

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मनोज श्रीवास्तव/लखनऊ। मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि के मालिकाना हक को लेकर दाखिल याचिका पर सीनियर सिविल जज छाया शर्मा की अदालत ने सुनवाई के लिए 30 सितंबर की तारीख निर्धारित की है।

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सुप्रीम कोर्ट के वकील हरीशंकर जैन और विष्णु शंकर जैन और रंजना अग्निहोत्री ने मथुरा कोर्ट में यह दीवानी केस दाखिल किया है।सोमवार को इस याचिका पर सुनवाई होनी थी, लेकिन याचिकाकर्ता अदालत नहीं पहुंचे, जिसके बाद जज ने सुनवाई की अगली तारीख 30 सितंबर निर्धारित की है। यह याचिका ”श्रीकृष्ण विराजमान” पक्ष की ओर से दाखिल की गई है। याचिका अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री, प्रवेश कुमार, राजेश मणि त्रिपाठी, कमलेश कुमार शुक्ला, शिवानी सिंह और त्रिपुरारी तिवारी के की ओर से दाखिल कराई गई है। याचिका में यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, कमेटी ऑफ मैनेजमेंट ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह, श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट, श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान को प्रतिवादी बनाया है।याचिका में न्यायालय से श्रीकृष्ण जन्मभूमि की 13.37 एकड़ भूमि का मालिकाना हक ”श्रीकृष्ण विराजमान” को सौंपने की मांग की गई है। बता दें कि 12 अक्तूबर 1968 को कटरा केशव देव मंदिर की जमीन का समझौता श्रीकृष्ण जन्मस्थान सोसायटी द्वारा किया गया था। इस समझौते के तहत 20 जुलाई 1973 को यह जमीन डिक्री की गयी।याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से इस भूमि की डिक्री को खारिज करने की मांग की है। विदित हो कि श्रीरामजन्मभूमि अयोध्या में भी विवाद पैदा किया गया था। जहां सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भव्य मंदिर का निर्माण प्रारंभ हो गया है। मथुरा में भगवान कृष्ण की जन्मभूमि और वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के सामने बनी मस्जिदों को लेकर भी अयोध्या की तरह ही विवाद है।

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बताया जाता है कि जहां भगवान कृष्ण का जन्म हुआ, वहां पहले वह कारागार हुआ करता था। यहां पहला मंदिर 80-57 ईसा पूर्व बनाया गया था। इस संबंध में महाक्षत्रप सौदास के समय के एक शिलालेख से ज्ञात होता है कि किसी ‘वसु’ नामक व्यक्ति ने यह मंदिर बनाया था। इसके बहुत काल के बाद दूसरा मंदिर विक्रमादित्य के काल में बनवाया गया था। इस भव्य मंदिर को सन् 1017-18 ई. में महमूद गजनवी ने तोड़ दिया था। बाद में इसे महाराजा विजयपाल देव के शासन में सन् 1150 ई. में जज्ज नामक किसी व्यक्ति ने बनवाया। यह मंदिर पहले की अपेक्षा और भी विशाल था। जिसे 16वीं शताब्दी के आरंभ में सिकंदर लोदी ने नष्ट करवा डाला था। ओरछा के शासक राजा वीरसिंह जूदेव बुंदेला ने पुन: इस खंडहर पड़े स्थान पर एक भव्य और पहले की अपेक्षा विशाल मंदिर बनवाया। इसके संबंध में कहा जाता है कि यह इतना ऊंचा और विशाल था कि यह आगरा से दिखाई देता था। लेकिन इसे भी मुगल शासकों ने सन् 1660 में नष्ट कर इसकी भवन सामग्री से जन्मभूमि के आधे हिस्से पर एक भव्य ईदगाह बनवा दी, जो कि आज भी विद्यमान है। 1669 में इस ईदगाह का निर्माण कार्य पूरा हुआ। अब यह विवादित क्षेत्र बन चुका है, क्योंकि जन्मभूमि के आधे हिस्से पर ईदगाह है और आधे पर मंदिर है।

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