सरदार पटेल के यह प्रश्न आज भी अनुत्तरित ही हैं

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सरदार वल्लभभाई पटेल की आज (31 अक्टूबर) को 146वीं जयंती है। आज पूरा देश इस दिन को “राष्ट्रीय एकता दिवस” के रूप में मना रहा है।

सरदार पटेल की 146वीं जयंती मनाई जा रही

गुजरात के नाडियाड में 31 अक्टूबर साल 1875 को जन्मे वल्लभभाई पटेल को लौह पुरुष (The Iron Man Of India) भी कहा जाता है।

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पेशे से अधिवक्ता वल्लभभाई पटेल भारत के पहले उप-प्रधानमंत्री भी रह चुके हैं। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में वल्लभभाई पटेल ने अहम भूमिका निभाई है। वल्लभभाई पटेल ने बैरिस्टर की पढ़ाई लंदन से की थी।

मैं मुसलमानों का सच्चा दोस्त हूँ

इन्हीं सरदार वल्लभभाई पटेल ने कहा था-
“मैं मुसलमानों का सच्चा दोस्त हूं, हालांकि मुझे उनका सबसे बड़ा दुश्मन बताया जाता रहा है। मैं सीधी बात करने में यकीन रखता हूं।

मैं उनसे साफ कहना चाहता हूं कि इस नाजुक मोड़ पर केवल भारतीय संघ के प्रति वफादारी की घोषणा से उन्हें मदद नहीं मिलेगी। उन्हें इसका व्यावहारिक प्रमाण पेश करना होगा।”

ये कैसे मान ले कि वो रातों-रात बदल जाएंगे

“मैं उनसे पूछता हूं कि आप भारतीय इलाकों पर सीमावर्ती कबायलियों की मदद से किए गए पाकिस्तानी हमले की बगैर हीलाहवाली के निंदा क्यों नहीं करते? क्या ये उनका दायित्व नहीं है कि वो भारत पर होने वाले हर हमले की निंदा करें?

भारत में करीब साढ़े चार करोड़ मुसलमान हैं। उनमें से कइयों ने पाकिस्तान के निर्माण में सहयोग दिया था। कोई ये कैसे मान ले कि वो रातों-रात बदल जाएंगे?

अपनी आत्मा को टटोलिये

मुस्लिम कहते हैं कि वो देशभक्त नागरिक हैं और किसी को उनकी देशभक्ति पर शक क्यों करना चाहिए? मैं उनसे कहूंगा- “आप हमसे क्यों पूछते हैं? अपनी आत्मा को टटोलिए।”

आपने पाकिस्तान की करतूत की निंदा क्यों नहीं की

“मैं भारतीय मुसलमानों से एक ही सवाल पूछना चाहता हूं। हाल में हुए आल इंडिया मुस्लिम कॉन्फ्रेंस में आपने कश्मीर मुद्दे पर मुंह क्यों नहीं खोला? आपने पाकिस्तान की करतूत की निंदा क्यों नहीं की?”

आप दो घोड़ों पर सवार नहीं हो सकते

“इन बातों से लोगों के जहन में संशय पैदा होता है। इसलिए मैं मुसलमानों का दोस्त होने के नाते एक बात कहना चाहता हूं और एक अच्छे दोस्त का फर्ज है कि वो साफ बात कहे।

अब ये आपका फर्ज है कि एक नाव में साथ-साथ सफर करें और साथ डूबें या साथ तैरें। मैं आपसे साफ कहता हूं कि आप एक साथ दो घोड़ों की सवारी नहीं कर सकते। आपको जो बेहतर लगे वो एक घोड़ा चुन लीजिए।”

संदेह और संशय आज भी ज्यों का त्यों है

वर्षों पहले जिस आशंका और संदेह को देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने रखा था। वह संदेह और संशय आज भी ज्यों का त्यों बना हुआ है। भारतीय मुस्लिम आज भी पूर्णरूप से उस आशंका और संदेह को निर्मूल सिद्ध कर पाने में अपने आपको असक्षम ही पाता है।

आज भी पाकिस्तान, कश्मीर और तमाम मुद्दों पर उसका रवैया बदला नहीं है। जिसका सबसे बड़ा उदाहरण अभी हाल ही में तब देखने को मिला जब कुछ लोगों ने पाकिस्तान की जीत का जश्न मनाते हुए आतिशबाजी की और मिठाईयां भी बांटी।

एनआरसी और सीएए के मुद्दों पर बार-बार पाकिस्तानी, अफगानी और बांग्लादेशी मुसलमानों को सूची में शामिल करने की जद्दोजहद, कश्मीर में धारा 370 हटाने का कड़ा विरोध और रोहिंग्या घुसपैठियों की अनावश्यक पैरवी।

यह सभी कहीं न कहीं संदेह तो अवश्य पैदा करते हैं।
दरअसल, जो लोग अपने मज़हब को देश से बड़ा मानते हैं। और देश के संविधान से कहीं अधिक महत्व अपने मज़हबी कानूनों को देते हैं।

जो देश के लोकतंत्र में विश्वास न करते हुए, भारत में निजामे मुस्तफा कायम करने की जबरदस्त वकालत करते हैं। उन लोगों से आप वफ़ादारी की कोई उम्मीद कर भी नहीं सकते, और करनी भी नहीं चाहिए।

जो लोग आतंकियों की मौत का मातम मनाते हैं, और देश के वीर जवानों की शहादत पर जश्न मनाते हैं। जो अपने ही देश की सेना पर सवाल उठाते हैं, और देश की सेना पर पत्थर बरसाने वालों को भटका हुआ नौजवान बताकर, पल्ला झाड़ लेते हैं।

क्या आप उनसे निष्पक्षता की उम्मीद कर सकते हैं? पश्चिम बंगाल, कश्मीर, केरल और दिल्ली में जब खुलेआम हिंसा का तांडव मचाया जाता है।

एक निर्दोष अंकित शर्मा को चाकुओं से गोदकर मार दिया जाता है और उसकी लाश को गंदे नाले में फेंक दिया जाता है। महिलाओं और बच्चों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है।

जबरन धर्म परिवर्तन कराया जाता है। तब किसी को कोई समस्या नज़र नहीं आती। किसी के मन में करुणा का कोई भाव जन्म नहीं लेता। कोई मानवाधिकार दिखाई नहीं देता।

त्रिपुरा कांड पर हायतौबा और पश्चिम बंगाल पर चुप्पी

लेकिन जब त्रिपुरा में मामूली झड़प होती है तब उसे नरसंहार की संज्ञा देकर तूल दिया जाता है। देश की कानून-व्यवस्था पर अनावश्यक प्रश्नचिन्ह लगाए जाते हैं।

बुरहान बानी को युवाओं का आदर्श बनाया जाता है

जिस जिन्ना ने इस देश के दो टुकड़े किये उसकी तस्वीरों को शिक्षा के मंदिरों में लगाया जाता है। अफ़ज़ल गुरू, बुरहान बानी और अजमल कसाब को युवाओं के आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। अपने ही देश के सुरक्षा बलों पर जानलेवा हमले करने वालों को प्रोत्साहित किया जाता है।

मुस्लिम आक्रान्ताओं का महिमामंडन क्यों

मुस्लिम आक्रान्ताओं का महिमामंडन किया जाता है। लेकिन महाराणा प्रताप और वीर शिवाजी महाराज जैसे सच्चे देशभक्त योद्धाओं को बागी और लुटेरा बताया जाता है।

इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि देश के प्रधानमंत्री औऱ गृहमंत्री को लेकर कड़े आपत्तिजनक बयान दिए जाते हैं। और इतना सब करने के बावजूद यह अपेक्षा की जाती है कि आप उनकी देशभक्ति और निष्ठा पर कोई प्रश्नचिन्ह न लगाएं।

इस देश में कुछ सुखद भी है

हालांकि, सुखद यह है कि इस देश में ब्रिगेडियर उस्मान, वीर अब्दुल हमीद और एपीजे अब्दुल कलाम जैसे सच्चे देशभक्त और निष्ठावान मुसलमान भी हुए हैं। लेकिन ऐसे महान लोगों को अपना आदर्श मानने वाले लोग उंगलियों पर ही गिने जा सकते हैं।

जिन्नावाद आज भी पनप रहा है

आज भी शायद इस देश में जिन्नावाद कहीं न कहीं पनप रहा है।गजवा-ए-हिन्द का सपना साकार करने की महत्वाकांक्षी सोच धीरे-धीरे पुष्पित-पल्लवित हो रही है। और एक दिन यह सोच विस्फोटक रूप धारण कर सकती है।

कुछ प्रश्न आज भी अनुत्तरित हैं

देश के पहले गृहमंत्री और सच्चे देशभक्त सरदार वल्लभभाई पटेल की आशंका यूं ही नहीं थी। उनका संदेह अकारण नहीं था। सच पुछिये तो वर्षों पूर्व जो प्रश्न सरदार वल्लभभाई पटेल ने उस समय उठाये थे। हम आज भी उनके उत्तर नहीं ढूंढ पाए हैं, वह आज भी अनुत्तरित ही हैं।
आज इस देश को एक और सरदार पटेल की महती आवश्यकता है। जो शायद हमें इन प्रश्नों के उत्तर दिलवा सके।

 मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”

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