वेद विचार
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सामवेद मंत्र ६०६ में बताया है कि सभी वेद-वाणियां परमात्मा का ही यश गाती हैं।
मंत्र के पद बताते हैं कि हे अग्रनायक परमात्मन्! प्रसिद्ध विद्वान जन आपके नाम को श्रेष्ठ मानते हैं। इक्कीस वेदवाणियां, अर्थात् गायत्री आदि इक्कीस छंदों वाली ऋचाएं भी आपके नाम को श्रेष्ठ जनाती हैं। आपके नाम को सर्वश्रेष्ठ जनाती हुई वे अर्थगर्भित वेदवाणियां आपके महिमागान-जनित यश से आरोचमान होती हुई अध्येताओं के हृदय में प्रकट हो जाती हैं, अपने रहस्य व अर्थ को खोल देती हैं।
मंत्र का भावार्थ है कि वेदवाणियां मिलकर जिस परब्रह्म की महिमा को गाते-गाते नहीं थकतीं और जिस यशस्वी परब्रह्म के माहात्म्य-कीर्तन से वे स्वयं भी यशोमयी हो गयी हैं, उसकी महिमा को हम भी क्यों न गायें।
-प्रस्तुतकर्ता मनमोहन आर्य (९-१२-२०२१)
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