आखिर कौन थे वे?………जिसने बचपन में थामी थी उंगली, अब वे ही मंजिल की राह दिखा गए
मुश्किल राहों पर चलना, सीख लिया अब मैंने। विघ्न बाधाओं पर बढ़ना, सीख लिया अब मैंने। जब भ्रम के बादल से छाये, कांटों ने राह बना डाली, मन भ्रमित हुआ, भय से आतुर, इक राह न सूझी मन में जब। जब उसी राह पर इक उंगली, मग चिह्नि्त करके जाती है। बढ़ गए कदम राहों … Continue reading आखिर कौन थे वे?………जिसने बचपन में थामी थी उंगली, अब वे ही मंजिल की राह दिखा गए
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