आज़म साहब का यह बयान क्या तालिबानी मानसिकता का परिचायक नहीं था

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आज़म साहब का यह बयान क्या तालिबानी मानसिकता का परिचायक नहीं था

—मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”

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28 दिसम्बर 2018 को छपे “आज तक” समाचार चैनल की एक ख़बर के अनुसार यूपी के पूर्व कैबिनेट मंत्री और सपा नेता आजम खान ने संसद में तीन तलाक पर बहस के दौरान कहा था कि- “जो मुसलमान हैं, जो कुरान को मानते हैं, वे जानते हैं कि तलाक का पूरा प्रोसीजर कुरान में दिया गया है। हमारे लिए उस प्रोसीजर के अलावा कोई कानून मान्य नहीं है। सिर्फ कुरान का कानून ही मुसलमानों के लिए मान्य है।”

अब ज़रा तालिबानी विचारधारा को समझिये। तालिबान कहता है कि अफगानिस्तान को इस्लामिक कानूनों (शरिया) के अनुसार ही चलाया जाएगा। अर्थात केवल कुरान का कानून ही तालिबान का संविधान है।
अब ज़रा इन दोनों बातों पर गम्भीरता से विचार कीजिये तो आपको मालूम होगा कि समाजवादी पार्टी के कद्दावर और संस्थापक नेताओं में से एक जनाब आज़म खान साहब ने जो कुछ 2018 में कहा था, बिल्कुल वही आज अफगानिस्तान में तालिबानियों ने दोहराया है। आज़म साहब के उपरोक्त बयान से स्पष्ट है कि भारत के मुसलमानों के लिए कुरान के कानून से ज़्यादा कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है। मतलब भारत का संविधान मज़हबी कानूनों से ऊपर नहीं है।
आज़म खान साहब की तरह ही शफीकुर्रहमान बर्क़ साहब, एसटी हसन साहब जैसे समाजवादी नेताओं के बयान भी आपने पढ़े ही होंगे, उनसे भी यही समझ आता है कि समाजवादी नेताओं की नज़रों में उनका मज़हब और मज़हबी कानून सर्वोपरि है। दूसरे शब्दों में कहें तो ऐसे तमाम नेताओं के लिए राष्ट्रधर्म से अधिक महत्वपूर्ण मज़हब है, और भारतीय संविधान से बड़ा मज़हबी कानून है।

बस यही तालिबानी विचारधारा है, जिसे हमारे देश में पुष्पित-पल्लवित किया जा रहा है। भारत को यह नहीं भूलना चाहिए कि तालिबानी और अफगानी भी एक समय भाई-भाई ही थे। तालिबान कोई आसमान नहीं उतरा और न ही ज़मीन से पैदा हुआ है, बल्कि वहीं उसी अफ़ग़ानी ज़मीन पर बढ़ता-पनपता रहा और शनैः-शनैः बढ़ते हुए आज एक अजगर बन गया है जिसने आज पूरे अफगानिस्तान को निगल लिया है। जो लोग कल तक इन तालिबानियों के साथ भाईचारा निभा रहे थे, वही आज “चारा” बन रहे हैं।
अफगानिस्तान और अफ़ग़ान के हालातों को देखने और समझने के बाद भी जो लोग यह समझते हैं कि-

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।

सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहां हमारा।।

उनके लिए अल्लामा इक़बाल साहब का एक शेर अर्ज है-

न समझोगे तो मिट जाओगे ए हिंदोस्ताँ वालों।

तुम्हारी दास्तां तक भी न होगी दास्तानों में।।

🖋️ मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
(नोएडा से प्रकाशित एक राष्ट्रवादी समाचार-पत्र)

विशेष नोट- उपरोक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं।

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