ओ३म् “नव वर्ष 2021 को भारतीय परम्पराओं के अनुरूप मनाना उचित”

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आगामी 1 जनवरी, 2021 को हम नये आंग्ल वर्ष सन् 2021 में प्रवेश कर रहे हैं। इस अवसर पर लोग अपनी प्रसन्नता व्यक्त करने के लिये इसका उत्सव के रूप में स्वागत करते और एक दूसरे से मिलकर, फेसबुक, व्हटशप, इमेल आदि पर शुभकामनायें सन्देश अपने प्रिय जनों को प्रेषित करते हैं। कार्यालयों में भी इस दिन लोग एक दूसरे से मिलकर ‘हैपी न्यू इयर’ बोलते हैं। आज की परिस्थितियों में विचार करने पर किसी प्रकार की प्रसन्नता के अवसर पर परस्पर शुभकामनायें देने में कोई अनौचित्य नहीं है। सभी के प्रति सद्भाव रखना वैदिक परम्परा है। हम प्रतिदिन सन्ध्या, यज्ञ व शान्तिपाठ आदि करते ही हैं। उसमें भी हमारी समाज व देश का उपकार करने तथा सबका हित व जीवन सफल होने की कामना की भावना निहित होती है। यह बात भी सत्य है कि आर्य हिन्दुओं का अपना संवत्सर व वर्ष पृथक है जो सृष्टि के आदिकाल से ही प्रवृत्त है। बाद में कुछ नई घटनाओं के जुड़ने से हमने सृष्टि संवत् सहित इससे जुड़े विक्रमी संवत्सर को मनाना भी आरम्भ किया है। हिन्दी नव संवत्सर चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन मनाया जाता है। इसे वर्ष का सबसे शुभ एवं महत्वपूर्ण दिन कह सकते हैं। हमारी परम्परा में शुक्ल पक्ष को शुभ माना जाता है और प्रायः सभी शुभ कार्य व विवाह एवं अन्य संस्कारों को शुक्ल पक्ष में करने का ही विधान है। वर्ष 2021 में नये विक्रमी संवत्सर वा वर्ष का आरम्भ 13 अप्रैल, 2021 को होगा। इस दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि तथा संवत् 2078 होगा। इसी दिन सृष्टि संवत् 1,96,08,53,122 आरम्भ होगा। हम 1 जनवरी से आरम्भ अंग्रेजी संवत्सर को मनाये तो हमें इसे भी भारतीय परम्पराओं में ढालकर ही मनाना चाहिये। इससे जो लाभ होता है वह विदेशी तौर तरीके व परम्पराओं से मनाने से नहीं होता। किसी भी पर्व को मनाने में हमारे मन में प्रसन्नता का भाव होना चाहिये और उसको मनाने का तरीका हमारी प्राचीन ज्ञान व तर्कपूर्ण परम्परायें भी होनी चाहियें। उनका त्याग उचित नहीं है।

नव वर्ष के प्रथम दिन हम इस संसार के रचयिता व पालक ईश्वर का ध्यान करें और उसके उपकारों को स्मरण कर उसको अपने जीवन तथा सभी शुभ कार्यों का समर्पण करें। इससे हमारा मन व आत्मा दृण व बलवान होता है तथा हम ईश्वर के उपकारों को स्मरण कर धन्यवाद करने से उसके प्रति कृतज्ञ होते हैं। इस कारण से हम पर कृतघ्नता का दोष या पाप नहीं लगता। जो लोग ऐसा न कर केवल घर व व्यवसायिक प्रतिष्ठानों की साज सजावट, अच्छे आकर्षक वस्त्र पहनने, अच्छा भोजन करने व पार्टी आदि करने सहित एक दूसरे को शुभकामनायें देते हैं वह अधूरी खुशी मनाते हैं और कुछ महत्वपूर्ण बातों की उपेक्षा कर देते हैं जिनका किया जाना आवश्यक होता है। हमें सभी शुभ अवसरों पर अपने बड़ों से आशीर्वाद प्राप्त करने सहित परमात्मा का भी विधिवत आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिये जिसके लिये उसकी स्तुति, प्रार्थना तथा उपासना करना आवश्यक होता है। उपासना ईश्वर के गुणों व उपकारों का ध्यान, उसकी स्तुति तथा प्रार्थना सहित देवयज्ञ अग्निहोत्र द्वारा वायु की शुद्धि एवं शुभकर्म, परोपकार तथा दूसरे निर्धन व साधनहीन लोगों को धन, भोजन व अन्न आदि का दान करके होती है। अतः नये आंग्ल वर्ष 2021 के प्रथम दिन 1 जनवरी को हमें अन्य कार्यों को करते हुए ईश्वर की सन्ध्या-उपासना सहित पुण्य कर्मों को करने पर भी ध्यान देना चाहिये। हम इस दिन अपने धर्म एवं संस्कृति को गौरव व जीवन्तता देने वाले महापुरुष राम, कृष्ण तथा दयानन्द जी के जीवन चरितों व गुणों का भी स्मरण करें और उनसे ईश्वर भक्ति, देशभक्ति तथा देश के शत्रुओं से देश व समाज को मुक्त कराने की प्रेरणा ग्रहण कर इसका संकल्प लें, तभी हमारा परिवार, समाज, देश, धर्म व संस्कृति सुरक्षित रह सकते हैं और हम व हमारी भावी पीढ़िया सुख व आनन्द से युक्त हो सकते हैं। अतः इस रूप में हमें नये वर्ष का स्वागत करने के साथ इस पर्व को 1 जनवरी तथा आगामी 13 अप्रैल, 2021 को मनाना चाहिये।

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ईश्वर ने सब मनुष्यों को अपने जीवन के सभी निर्णय लेने की स्वतन्त्रता दी है। सभी ऐसा करते भी हैं तथापि समाज के अग्रणीय पुरुष व विद्वान लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए उन्हें अपनी ओर से कुछ सुझाव भी देते हैं जिससे भम्रित बन्धुओं का मार्गदर्शन हो जाये। इस दृष्टि से वर्षान्त31 दिसम्बर के दिन सायंकाल अपने अपने घरों को स्वच्छ कर उसे सजा कर उसमें प्रकाश आदि के लिए तेल के दिये व विद्युत के बल्ब आदि जला कर घर को सुसज्जित किया जा सकता है। अच्छे पकवान बना कर उनका परिवार सहित उपभोग किया जा सकता है। अपने इष्ट मित्रों को घर में बने पकवान व फल वितरित भी किये जा सकते हैं। निर्धनों व भिखारियों को भोजन व फल सहित वस्त्र भी वितरित किये जा सकते हैं। इस दिन अपनी पसन्द का संगीत भी कुछ देर सुना जा सकता है। दूरदर्शन पर ऐसे कार्यक्रम होने चाहियें जिसमें महापुरुषों के जीवन की प्रेरक घटनायें प्रस्तुत की जायें। इससे हमारा जीवन सुधरता व उन्नति को प्राप्त होता है। जीवन निर्माण में प्रेरणाओं का महत्व होता है। वह प्रेरणायें महापुरुषों के जीवन व शास्त्रों की वर्तमान में प्रासंगिक शिक्षाप्रद बातों का श्रवण व देखने से आंशिक रूप से पूरी होती हैं। हमें इस दिन अभद्र नृत्य व मदिरा पान आदि का व्यवहार कदापि नहीं करना चाहिये। ऐसा करने से हमारा शारीरिक एवं चारित्रिक पतन होता है। जो लोग करते हैं उनको जीवन के उत्तर काल वृद्धावस्था आदि में हानि व दुःख उठाने पड़ते हैं।

नववर्ष के प्रथम दिन गायत्री मन्त्र की मधुर धुन व शब्दों को भी आंखे बन्द कर सुना जा सकता है और उसके अर्थ पर विचार करते हुए अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाने की परमात्मा से प्रार्थना की जा सकती है। नूतन वर्ष के प्रथम दिन हमें प्रातः 4.00 बजे व उसके कुछ समय बाद जल्दी जाग जाना चाहिये। कुछ देर ईश प्रार्थना व उसका ध्यान कर उससे शारीरिक, आत्मिक एवं सामाजिक उन्नति की प्रार्थना करनी चाहिये। अपनी रूचि के धार्मिक सद्ग्रन्थों का पाठ भी करना चाहिये। व्यायाम हमारे जीवन का आवश्यक अंग होना चाहिये और इस दिन तो अवश्य ही करना चाहिये जिससे जीवन में व्यायाम करने का संस्कार बने। हो सके तो इस दिन शाकाहारी जीवन व्यतीत करने सहित मांस व मदिरा छोड़ने का सत्संकल्प भी लेना चाहिये। इससे हमें जीवन भर लाभ होगा। हम अनेक रोगों से बच सकते हैं और दीर्घायु को प्राप्त हो सकते हैं। इससे हमें शारीरिक कष्ट भी कम होंगे और रोगों पर व्यय होने वाला धन भी बच सकता है। नये वर्ष में हमें ईश्वर के सत्यस्वरूप का पाठ कर उससे आत्मा की उन्नति, दुःखों की निवृत्ति तथा सुख व आनन्द की प्राप्ति की प्रार्थना करनी चाहिये। यही सार्वभौम ईश्वर की स्तुति व पूजा है। सबको राग-द्वेष तथा मत-मतान्तर के आग्रह से ऊपर उठकर इस कार्य को करना चाहिये। हमें अपने सभी मित्रों, परिवारजनों, कुटुम्बियों तथा साथ में काम करने वाले सभी बन्धुओं को हृदय से शुभकामनायें देनी चाहिये। नववर्ष के प्रथम दिन को पर्व के रूप में मनाने के लिये अपनी इच्छानुसार इसमें सात्विक परिवर्तन किये जा सकते हैं। यदि हम ऐसा करते हैं तो इससे देश व समाज का हित होगा और हमें भी लाभ होगा।

आंग्ल वर्ष का 1 जनवरी को आरम्भ किसी खगोलीय व ऋतु परिवर्तन जैसी घटना से जुड़ा हुआ नहीं है। इसके विपरीत वैदिक संवत्सर सृष्टि के आरम्भ के प्रथम दिन तथा वेदोत्पत्ति सहित महाराज युधिष्ठिर और महाराज विक्रमादित्य जी के राज्यारोहण के दिन से जुड़े हुए पर्व हैं। 1 जनवरी को देश के अधिकांश भागों में ठण्ड का प्रकोप रहता है जिससे पर्व मनाने में कठिनाई आती है वहीं वैदिक संवत के प्रथम दिन चैत्र मास में ऋतु अत्यन्त सुहावनी होती है। वसन्त ़ऋतु में नाना प्रकार के पुष्पों के दर्शन होने सहित वनस्पतियां सर्वत्र नये पत्तों को धारण किये हुए होती हैं। मौसम न अधिक ठण्डा और न अधिक गर्म होता है। भोजन के मुख्य अन्न गेहूं की फसल भी तैयार रहती है। किसान व श्रमिक प्रसन्न रहते हैं। ऐसा समय ही वस्तुतः नववर्ष मनाने के लिए आदर्श समय होता है। हमें लगता है कि हमें 1 जनवरी सहित चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को भी नववर्ष मनाकर अपने बुद्धि कौशल का परिचय देना चाहिये। यदि हम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नववर्ष को उत्सव के रूप में आयोजित करने में उपेक्षाभाव रखते हैं तो यह उचित नहीं है। इससे हमारा पक्षपात व अज्ञानता प्रकट होता है।1 जनवरी नववर्ष के रूप में विश्व में प्रचलित एवं मान्य दिवस है। सभी इसको प्रेम, श्रद्धा व उत्साह से मनायें। इस नववर्ष2021 की हम सब पाठक मित्रों को शुभकामनायें देते हैं। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

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