हम आज लगभग दो महीने बाद गुरुकुल पौन्धा गये। हमारे साथ हमारे अभिन्न मित्र श्री राजेन्द्र कुमार काम्बोज, अभिवक्ता भी थे। श्री राजेन्द्र जी ने ही कुछ दिन पहले हमें गुरुकुल चलने का प्रस्ताव किया था। हम गुरुकुल पहुंचे जहां हमें आचार्य डा. धनंजय आर्य जी के दर्शन हुए।
उन्होंने हमें स्वागत कक्ष में बठाया और अनेक विषयों पर चर्चायें की। कुछ समय बाद वहां 7 युवक आ गये। इन युवकों को देहरादून से श्री रोहित पाण्डेय जी गुरुकुल यज्ञ तथा व्यवहारभानु का प्रशिक्षण व अध्ययन कराने लाये थे। गुरुकुल के एक स्नातक श्री राहुल कुमार जी ने इन युवकों को यज्ञ के विषय में विस्तार से बताया। व्यवहारभानु का अध्ययन भी इन युवकों को कराया गया। इसके बाद यह सभी युवक स्वागत कक्ष में आ गये जहां इनसे हमारी बातचीत हुई। श्री रोहित पाण्डेय जी वैदिक साहित्य के प्रति जिज्ञासु हैं, इनके प्रति अनन्य श्रद्धा रखते हैं और इसका अध्ययन करने की इनमें भावना भी है। यह देहरादून की आर्यसमाज लक्ष्मण चैक में यज्ञों में भी भाग लेते हैं। एक दो वर्ष पूर्व यह हमारे सम्पर्क में आये थे। तब हमने इन्हें सत्यार्थप्रकाश भेंट किया था। आज इन्होंने बताया कि इन्होंने सत्यार्थप्रकाश पूरा पढ़ा है और यह उससे प्रभावित हुए हैं। श्री रोहित जी हमसे व्हटशप पर भी जुड़े है। हम अपने व्हटशप व फेस बुक मित्रों को प्रतिदिन जो एक लेख भेजते हैं वह इन्हें भी प्रेषित करते हैं। आचार्य धनंजय जी ने इन सभी युवकों को अगली पुस्तक स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती रचित “बाल शिक्षा” का अध्ययन करने की प्रेरणा की। यह युवक आचार्य धनंजय जी से यज्ञोपवीत लेना चाहते हैं। इसके लिये आचार्य जी ने इन्हें अगले महीने दीपावली के दिन प्रातः दीपावली यज्ञ में आमंत्रित किया है जहां इन सभी युवकों को यज्ञोपवीत प्रदान किया जायेगा। इन सभी युवकों को सन्ध्या यज्ञ पद्धति पर “विजयकुमार गोविन्दराम हासानन्द, दिल्ली” द्वारा प्रकाशित पुस्तक भी भेंट की गई।
इस चर्चा के बाद हमने इन ब्रह्मचारियों के साथ एक समूह चित्र खिंचवाया। यह युवक इसके बाद देहरादून नगर के लिये लौट गये। कुछ समय बाद हमने आचार्य जी के साथ भोजन किया। भोजन के बाद आचार्य जी ने हमें गुरुकुल में कुछ दिन पहले निर्मित ‘लक्ष्य सन्धान केन्द्र’ दिखाया। यह केन्द्र गुरुकुल भवन के दूसरे तल पर बनाया गया है। यह केन्द्र एक बड़ा हाल है जिसका आकार 70 फीट लम्बा व 30 फीट चौड़ा है। इस हाल में आठ सूटर एक साथ सूटिंग व लक्ष्य वेध कर सकते हैं। यह केन्द्र राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय मानकों को पूरा करता है। देहरादून में यह पूर्ण विकसित सम्भवतः दूसरा केन्द्र है। यह बता दें कि गुरुकुल के एक पूर्व छात्र दीपक ने विगत एशियाड खेलों में रजत पदक प्राप्त कर गुरुकुल को प्रसिद्धि व प्रतिष्ठा दिलााई है। यह युवक इन दिनों भारतीय वायु सेना में कार्यरत है और अब इसका आगामी ओलम्पिक खेलों के लिए भी चयन हो गया है।
इस केन्द्र को देखने के बाद हमने आचार्य जी तथा श्री राजेन्द्र जी के साथ गुरुकुल के विशाल पुस्तकालय का भ्रमण किया व उसे देखा। इस पुस्तकालय में वैदिक साहित्य व व्याकरण विषयक दुर्लभ एवं महत्वपूर्ण ग्रन्थों का बड़ी संख्या में संग्रह है। वेद विषयक प्रायः सभी प्रमुख ग्रन्थ भी इस पुस्तकालय में है। आचार्य धनंजय जी इस पुस्तकालय को अनुसंधान कार्य करने वाले अध्येताओं के लिए आधुनिक सुविधाओं व सामग्री से युक्त बना रहे हैं। आचार्य जी दूरदर्शी युवक आचार्य हैं। वह ऐसे कार्य करते हैं जो अन्य गुरुकुलों में प्रायः नहीं किये जाते। विगत नवम्बर, 2019 में आपने गुरुकुल परिषद के अन्तर्गत एक वृहद गुरुकुल सम्मेलन का आयोजन किया था जिसमें देश भर के अनेक प्रमुख प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान व पचास से अधिक गुरुकुलों की आचार्यायें एवं आचार्यों सहित गुरुकुलों के सैकड़ों की संख्या में ब्रह्मचारिणी एवं ब्रह्माचारी सम्मिलित हुए थे। आर्यसमाज के इतिहास में यह अपने प्रकार का प्रथम व अपूर्व आयोजन था। गुरुकुल के पुस्तकालय को देखकर कहा जा सकता है कि यह पुस्तकालय देहरादून में वैदिक साहित्य तथा व्याकरण ग्रन्थों का सबसे बड़ा पुस्तकालय है।
गुरुकुल में इस समय लगभग 125 ब्रह्मचारी अध्ययन कर रहे हैं। यह गुरुकुल उत्तराखण्ड संस्कृत विश्व विद्यालय से मान्यता प्राप्त है। गुरुकुल में आर्य वीर दल के शिविर व अनेक गतिविधियां चलती है। यह गुरुकुल अपना तीन दिवसीय वार्षिकोत्सव विगत जून, 2020 में कोरोना प्रतिबन्धों के कारण आनलाइन आयोजितकर चुका है जिसमें देश भर से बड़ी संख्या में आर्य विद्वान, भजनोपदेशक तथा श्रोता जुड़े थे। इसी प्रकार गुरुकुल गौतमनगर, दिल्ली का आगामी वार्षिकोत्सव दिसम्बर, 2020 में आनलाइन आयोजित करने की तैयारियां चल रही हैं। गुरुकुल से एक मासिक पत्रिका आर्ष ज्योति का नियमित रूप से प्रकाशन होता है। पत्रिका उच्च कोटि की पत्रिका है। श्री शिवदेव आर्य जी इस पत्रिकाका सम्पादन व प्रकाशन का काम देखते हैं। इसके अतिरिक्त भी गुरुकुल व्याकरण व विद्वानों के वेद विषयक ग्रन्थों का प्रकाशन भी करता है। गुरुकुल की अपनी गोशाला भी हैं जहां अनेक गौवें हैं।
आचार्य धनंजय जी ने विगत 20 वर्षों में इस गुरुकुल को एक बीज रूप से वट वृक्ष का आकार दिया है। यह आचार्य धनंजय जी के ही पुरुषार्थ तथा स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी के उन पर आशीर्वाद का परिणाम है। देश के अग्रणीय गुरुकुलों में इस गुरुकुल की गणना होती है। आर्यजगत के प्रमुख विद्वान इस गुरुकुल से जुड़े हुए हैं। बहुत से बच्चे यहां पढ़ना चाहते हैं परन्तु सीमित साधनों के कारण सबको प्रवेश दिया जाना सम्भव नहीं होता। हम आचार्य डा. धनंजय जी को इस गुरुकुल का संचालन करने के लिये अपनी शुभकामनायें एवं बधाई देेते हैं। यह गुरुकुल आर्यों में देहरादून नगर की एक पहचान भी बन गया है। गुरुकुल पौंधा का नाम आते ही देहरादून का स्मरण स्वतः ही हो जाता है। हम आशा करते हैं कि यह गुरुकुल आशातीत उन्नति करेगा और यहां वेद व्याकरण के उच्च कोटि के पण्डित तैयार होंगे जो आर्यसमाज के वेद प्रचार कार्य को गति देंगे। लगभग चार घंटे गुरुकुल में व्यतीत करने के बाद हम अपने मित्र श्री राजेन्द्र कुमार काम्बोज जी सहित अपने निवासों पर लौट आये। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य