किसानों एवं श्रमिकों के हितों पर आघात पहुंचाने वाले कृषि एवं श्रम कानूनों के विरोध में समाजवादी पार्टी

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किसानों को फायदा पहुंचाने और श्रमिकों को रोजगार देने के उसके दावे सिर्फ सफेद झूठ

लखनऊ। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के निर्देश पर आज (25 सितम्बर 2020) प्रदेश के सभी जनपदों में शारीरिक दूरी बनाए रखते हुए किसानों एवं श्रमिकों के हितों पर आघात पहुंचाने वाले कृषि एवं श्रम कानूनों के विरोध में समाजवादी पार्टी ने जिलाधिकारी के माध्यम से राज्यपाल को सम्बोधित ज्ञापन सौंपा और इन कानूनों को वापस लेने तथा प्रदेश में इन्हें लागू न करने का निर्देश देने का आग्रह किया।
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पूरे प्रदेश में शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न कार्यक्रम के लिए पार्टी के पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं को बधाई देते हुए कहा कि समाजवादी जनहित के मुद्दों को उठाने में हमेशा आगे रहे हैं। सत्तादल के दमन का विरोध हमेशा समाजवादियों ने ही किया है।
श्री यादव ने कहा है कि युवा बेरोजगार है, किसान की जमीन पर बड़े-बड़े पूंजीपतियों की नज़र है। संसद में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और चंद उद्योगपतियों के लिए ही कानून बन रहे हैं। भाजपा सरकार अपने चंदा देने वाले पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए पहले किसानों के शोशण का बिल लाई और अब अपने उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए श्रमिक शोषण का एकतरफा बिल लाई है। जिनके लिए बिल भाजपा उनकी तो सुने। किन्तु भाजपा तो सत्ता की खुमारी में रायशुमारी की हत्या करने पर तुल गई है।
श्री यादव ने कहा कि भाजपा की कुनीतियों से समाज का हर वर्ग परेशान है। छात्रों की पढ़ाई बाधित है। युवाओं पर लाठियां बरसाई जा रही है। महिलाओं और बच्चियों के साथ दुष्कर्म की घटनाएं थम नहीं रही है। सरकारी स्तर पर भ्रष्टाचार की रोकथाम नहीं है। सचिवालय के अंदर तक से ठगी की साजिशें पनपती हैं। सरकार बढ़ते अपराधों के आगे बेदम है।
यादव ने कहा कि भारत सरकार के जनविरोधी कानूनों को लेकर जनता में भारी आक्रोश है। किसान जगह-जगह प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रदेश में कोरोना संक्रमण के नाम पर जनधन की लूट के अवसर खुल गए हैं। समझ में नहीं आता कि सरकार अपराधियों के खिलाफ है या उनके साथ है? जनता को बुरी तरह निराश करने वाली विकास विरोधी भाजपा सरकार को अब जनता और ज्यादा बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है।
राजधानी लखनऊ में जिलाध्यक्ष जयसिंह जयंत और महानगर अध्यक्ष सुशील दीक्षित के नेतृत्व में प्रतिनिधिमण्डल ने जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपा। उनके साथ विधायक अम्बरीष पुष्कर, यूथ ब्रिगेड के प्रदेश अध्यक्ष अनीस राजा, लोहिया वाहिनी के प्रदेश अध्यक्ष राम करन निर्मल, युवजन सभा के प्रदेश अध्यक्ष अरविन्द गिरि, अधिवक्ता सभा के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप यादव और सर्वश्री शब्बीर खां, सौरभ यादव, ताराचंद, नवीन धवन बंटी, नवनीत सिंह, मान सिंह वर्मा, अंजनी प्रकाश, सिद्धार्थ आनन्द, सिकन्दर यादव भी रहे। राज्यपाल को सम्बोधित ज्ञापन में कहा गया है कि केन्द्र और प्रदेश की भाजपा सरकारों की नीतियों से किसान और श्रमिकों के हितों को गहरा आघात लग रहा है। इन नीतियों से कारपोरेट घरानों को ही फायदा होगा जबकि किसानों और श्रमिकों की बदहाली और बढ़ेगी। कृषि और किसान के साथ श्रमिक ही कठिन समय में देश की अर्थ व्यवस्था को सम्हालता है पर अब अन्नदाता को ही हर तरह से उत्पीड़न का शिकार बनाया जा रहा है। यदि समय रहते कृषि और श्रमिक कानूनों को वापस नहीं लिया गया तो प्रदेश में खेती बर्बाद हो जाएगी और श्रमिक बंधुआ मजदूर बनकर रह जाएंगे।
किसानों के सम्बंध में भाजपा सरकारों का रवैया पूर्णतया अन्यायपूर्ण है। वह खेतों से किसानों का मालिकाना हक छीनना चाहती है। इससे एमएसपी सुनिश्चित करने वाली मंडिया धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगी। किसानों को फसल का लाभप्रद तो दूर निर्धारित उचित दाम भी नहीं मिलेगा। फसलों को आवश्यक वस्तु अधिनियम से बाहर किए जाने से आढ़तियों और बड़े व्यापारियों को किसानों का शोषण करना आसान हो जाएगा।
किसान को फसल की लागत से डयोढ़ी कीमत देने, आय दुगनी करने और सभी कर्जे माफ करने के वादे जब हवा में रह गए तो भाजपा नेतृत्व के किसानों के समर्थन में दिए गए भाषणों पर कौन भरोसा करेगा?
कृषि अध्यादेश के बाद भाजपा सरकार श्रमिक विरोधी औद्योगिक सम्बंध संहिता-2020 विधेयक ले आई है। श्रमिक कानून में बदलाव के बाद तो श्रमिकों का शोषण करने का पूरा अधिकार फैक्ट्री मालिकों को मिल जाएगा। अभी तक 100 कर्मचारी वाले औद्यौगिक प्रतिष्ठान बिना सरकारी मंजूरी लिए कर्मचारियों को हटा नहीं सकते थे। नई व्यवस्था में 300 से ज्यादा कर्मचारियों वाली कम्पनी सरकार से मंजूरी लिए बिना जब चाहे कर्मचारियों को नौकरी से निकाल बाहर कर सकती है। भाजपा कर्मचारियों के हितों की हत्या कर मालिकों को मलाई बांटने का काम कर रही है।
भाजपा किसानों और श्रमिक वर्ग का मनोबल तोड़ने, उन्हें असहाय बनाने की साजिश में जुट गई है। इससे साबित हो गया है कि किसानों को फायदा पहुंचाने और श्रमिकों को रोजगार देने के उसके दावे सिर्फ सफेद झूठ है। इन कानूनों को वापस लिया जाना चाहिए। ऐसी झूठी और प्रपंच रचने वाली सरकार के खिलाफ जनता में भारी आक्रोश है। महामहिम राज्यपाल जी से आग्रह किया गया है कि किसानों और श्रमिकों के हितों की सुरक्षा के लिए कृषि विधेयक तथा श्रम कानूनों को वापस लेने और राज्य में इन्हें लागू न करने के निर्देश देने का कष्ट करें।

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