गुड़ खाकर गुलगुलो से परहेज कर रहा निर्वाचन आयोग

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गुड़ खाकर गुलगुलो से परहेज कर रहा निर्वाचन आयोग

यूपी के एमएलसी चुनाव में करोना,बिहार और उपचुनाव कोरोना मुक्त: हरिकिशोर तिवारी

लखनऊ,26.10.2020। आगरा खण्ड स्नातक से एमएलसी पद के प्रत्याशी और राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष इं. हरिकिशोर तिवारी ने उत्तर प्रदेश की 11 रिक्त विधानपरिषद की सीटों पर होने वाले चुनाव में देरी के लिए शासन और निर्वाचन आयोग को जिम्मेदार ठहराया है। उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश के विधानपरिषद चुनाव में निर्वाचन आयोग की भूमिका गुड खाकर गुलगुलों से परहेज करनी जैसी है। उनका कहना कि एक तरफ निर्वाचन आयोग 25 सितम्बर को बिहार की 243 विधानसभा और 29 सितम्बर 2020 को देश की 56 विधानसभा और एक लोकसभा सीट के उप चुनाव की इस भीषण कोरोना संक्रमण के दौरान चुनाव की तिथि घोषित करने में देर नही करता वही दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के उच्चधिकारियों द्वारा कोरोना का भय दिखा व्यवस्था न करने के पत्र मिलते ही 5 मई 2020 को अपना कार्यकाल खत्म कर चुकी 11 विधानपरिषद की सीटों के चुनाव की तिथि लगातार आगे बढ़ा रहा है। मजेदार बाॅत यह कि जबकि निर्वाचन आयोग 30 जून 2020 यानि यूपी के विधानपरिषद सदस्यों के कार्यकाल के एक माह बाद समाप्त होने वाले कर्नाटक की चार विधान परिषद सीटों और बिहार की चार स्नातक और चार शिक्षक विधायक सीटों के लिए चुनाव की तिथि घोषित कर चुका है। इस सम्बंध में औचित्य का प्रश्न उठाते हुए एवं निर्वाचन आयोग की संदिग्ध भूमिका के मद्देनजर आगरा स्नातक खण्ड एमएलसी चुनाव के प्रत्याशी इं. हरिकिशोर तिवारी, शिक्षक महेन्द्र नाथ और आकाश अग्रवाल ने याचिका दाखिल कर दी है। इसके लिए 2 नवम्बर 2020 को सुनवाई होनी है। इस केस में वादियों की तरफ से इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अधिवक्ता शशिनंदन पैरवी कर रहे है।
 
उत्तर प्रदेश की 11 विधानपरिषद सीटों के चुनाव के लिए घोषित होने वाली तिथियों को लेकर बार बार संशय खड़े किए जाने से नाराज इं. हरिकिशोर तिवारी ने कहा कि एक तरफ जहाॅ कोरोना संक्रमण को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से प्रदेश की 11विधान परिषद सीटों के चुनाव में व्यवस्था न करने की बाॅत की जा रही है, वही प्रदेश की सात विधानसभा के चुनाव के लिए सहमति प्रदान करना दोहरी मानसिकता का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि परिषद और विधानसभा चुनाव में भारी अन्तर है। एक तरफ एक एक मतदान केन्दों पर भारी वोटर तो दूसरी तरफ परिषद चुनाव में नाम मात्र के वोटर एक केन्द्र में होगे यानि परिषद चुनाव में सोशल डिस्टेसिंग एवं मास्क जैसे बचाव के सारे प्रयास हो सकते है। परिषद चुनाव में स्नातक और शिक्षक वर्ग को मतदान करना है जिन्हें कोरोना संक्रमण का पूरा ज्ञान है जबकि विधानसभा में वोटरों से संक्रमण या फिर बचाव के उपाय अपनाने की कोई गारन्टी नही। उन्होंने यह भी कहा कि एक तरफ जहाॅ विधानसभा चुनाव मंें रैली और आम सभा के दौरान लाख की भीड़ वो भी न सोशल डिस्टेसिंग और नही ही मास्क प्रयोग जबकि विधानसभा परिषद चुनाव में ऐसा कुछ नही। श्री तिवारी ने कहा कि उत्तर प्रदेश में विधानपरिषद के चुनाव अप्रैल 2020 में होने थे। क्योकि इनका कार्यकाल 5 मई 2020 को खत्म हो रहा था। इसके लिए अंतिम सूचनी भी जनवरी 2020 में प्रकाशित कर दी गई थी। नामांकन तिथि घोषित होने से पूर्व ही 22 मार्च कोरोना संक्रमण के कारण देश में लाॅकडाउन लगते ही जून में होने वाले विधानपरिषद कनार्टक सहित कई चुनाव टाल दिये गए। अब जबकि कोरोना संकट का कहर बरकरार है इसके बावजूद सरकार द्वारा रेल, बस, बाजार, सिनेमाघर, स्कूल खोल दिये गए हैै। इसी बीच बिहार विधासभा तथा अन्य देश की 56 विधानसभा और एक लोकसभा सीट के उपचुनाव की तिथियाॅ घोषित कर दी गई है। लेकिन उत्तर प्रदेश के विधानपरिषद की सीटों के चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश के उच्चधिकारियों के गुमराह करने वाले पत्र के कारण चुनाव तिथि घोषित नही की जा रही है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि इसी तरह विधानपरिषद के चुनाव के लिए मत बनाने में गलत आंकड़े तथा तर्कों को चुनाव आयोग में भेज कर दो बार अतिरिक्त तिथियों को बढ़ाया जा चुका है। उन्होंने कहा कि अब कई प्रत्याशियों का आरोप है कि भाजपा के प्रति शिक्षित बेरोजगारो एवं शिक्षकों के बीच आक्रोश को भाॅपकर राजनैतिक दल के दबाव में उत्तर प्रदेश के अधिकारी चुनाव आयोग को गुमराह करके उत्तर प्रदेश के विधान परिषद चुनाव टलवाना चाह रहे है।

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उच्च न्यायालय में रखे गए तर्क
1ः- जब बिहार विधानसभा की 243 विधानसभा में चुनाव हो सकता है, जिसमें एक एक गाॅव में कम से कम लगभग 1000 वोटर है तो विधानपरिषद के लिए एक एक गाॅव में लगभग 15-20 वोटरों में क्यो नही ?
2ः- विधान परिषद में एक ब्लाक में एक ही बूथ होता है जबकि विधानसभा में लगभग हर ग्राम पंचायत में एक या फिर एक ब्लाक में लगभग 100 बूथ होते है ऐसे में सोशल डिस्टेसिंग, मास्क आदि उपाय कहा आसान है।
3ः-विधानसभा चुनाव में मतदाता अशिक्षित, अल्पशिक्षित और शिक्षित होते जबकि परिषद के चुनाव में सभी स्नातक या शिक्षक मतदाता है ऐसे में सुरक्षा उपायों का ज्ञान ज्यादा परिषद चुनाव के वोटरों को होता है।
4ः-अगर शिक्षक विधानपरिषद की बाॅत करे तो इसके लिए एक ब्लाक में लगभग 200, स्नातक सीट की बाॅत करे तो लगभग1000 और विधानसभा की बाॅत करे तो लगभग1,50,000 मतदाता होते है। ऐसे में कहा सोशल डिस्टेगिग बचाव और कम संसाधन की जरूरत है।
5ः-अगर सम्पूर्ण विधानसभा की बाॅत करे तो एक विधानसभा में लगभग पाॅच लाख मतदाता होते है। जबकि उत्तर प्रदेश की सबसे अधिक 12 जनपद और क्षेत्रफल वाली आगराखण्ड स्नातक सीट पर लगभगतीन लाख और शिक्षक सीट पर मात्र लगभग30,000 मत है।

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