जीवन पथ……….मंजिल अनजान ,फासलों में ढलती जाऊं यूही,

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जीवन पथ

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मैं भी पथिक, तू भी पथिक,
इस जीवन पथ पर चलते रहे,
मैं और मेरी जिंदगी,
इस पथ पर चले जा रहे थे,
तरु की शीतल छाया जैसे, तुम मिल गए मुझे,
तो लगा कितने तनहा थे यह रास्ते,
पथ पर साथ चलते- चलते,
तुम हमसफर बन गए ,
जब हम साथ चलने लगे तो,
यह रास्ते मंजिल से बेहतर लगने लगे,
दिल कहता है हौले से,
अब बेफिक्र सी चलती जाऊं इन राहों में,
मंजिल अनजान ,फासलों में ढलती जाऊं यूही,
न आज की फिक्र करूं, न कल की फिक्र करूं,
बस इन हंसी वादियों में यूं ही खोई रहूं।

डॉ. ऋतु नागर

मां के आंचल में छुप जाऊं , बाबा की बाहों में समा जाऊं,दो पल के लिए ही सही उस बचपन में लौट जाऊं

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