तालिबानी हैवानियत के नंगे नाच को “भाजपा की राजनीति” बताकर अपनी बेशर्मी की चादर से ढकने का असफ़ल प्रयास कर रहे
—मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
सोशल मीडिया पर एक बड़ी मुहिम चल रही है जिसमें कांगी, वामी, जिहादी और जयचन्दों ने पूरी ताक़त झोंक रखी है। यह पूरी जमात यह साबित करने पर तुली है कि अफगानिस्तान में हो रहे सम्पूर्ण घटनाक्रम को ढाल बनाकर सत्तापक्ष अपनी तथाकथित नाकामियों को छुपाना चाहता है। साथ ही इस मुहिम के माध्यम से यह भी साबित करने का असफल प्रयास किया जा रहा है कि अफगानिस्तान में ऐसा कुछ भी नहीं है बल्कि वहां तो “तालिबानी क्रांतिकारियों” ने विदेशी शासन को उखाड़ फेंका है और इस्लाम की शांति और सौहार्दपूर्ण सत्ता को स्थापित किया गया है।
दूसरे शब्दों में कहें तो “तालिबान क्रांतिकारियों” ने अपने अधिकारों को वापस ले लिया है।
इस मुहिम को चलाने वाले लोगों में लुटियन पत्रकार, दरबारी शायर और लिब्राण्डू गैंग जैसे तमाम तथाकथित बुद्धिजीवी शामिल हैं।
यहां ग़ौरतलब है कि यह वही लोग हैं जो कल तक फलीस्तीन में हमास आतंकियों की “हगास” निकालने वाले इजरायल और उसके राष्ट्रपति बेंजामिन नेतन्याहू को पानी पी-पीकर कोस रहे थे। जब हमास के दावों की हवा निकाली जा रही थी तब इनके पेट में मरोड़ उठ रही थीं। उस समय “मज़हब” ख़तरे में नज़र आ रहा था। उस वक़्त यही “बैद्धिक लिब्रांडू” भारत सरकार से फलीस्तीन का समर्थन करने का दबाव बनाने के लिए मानवाधिकार, नैतिकता और न जाने किस-किस प्रकार का शोर मचा रहे थे।
उस समय न तो इन्हें राजनीति दिखाई दे रही थी और न ही कोई क्रांति होती दिख रही थी। न महंगाई का ज़िक्र हो रहा था, न बेरोजगारी पर छाती कूट रहे थे, न कथित किसान आंदोलन पर विधवा विलाप कर रहे थे और न ही पेट्रोल-डीज़ल पर चर्चाएं हो रही थीं। क्योंकि उस समय इनका “मज़हब” ख़तरे में था और मज़हब की आड़ में “आतंक” फैलाने वालों का “बैकबोन” सुजाया जा रहा था।
आज जबकि अफगानिस्तान में चंद मज़हबी उन्मादियों ने आतंक और हैवानियत की सारी सीमाएं लांघ रखी हैं। सरेआम औरतों की बोलियां लगाई जा रही हैं, बूढ़ों और बच्चों को बड़ी बेदर्दी के साथ क़त्ल किया जा रहा है। जवान औरतों की अस्मत लूटी जा रही है और नौजवान लड़कों को ग़ुलाम बनाया जा रहा है। तब यह लोग इसे “भारतीय स्वतंत्रता संग्राम” का नाम देकर भारत के महान क्रांतिकारियों, शहीदों और स्वयं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के शौर्य, बलिदान और त्याग का अपमान करने पर तुले हैं।
कांगी, वामी, जिहादी और सेक्युलरिज्म नामक भेड़ की खाल में छुपे हुए यह भेड़िए तालिबानी हैवानियत के नंगे नाच को “भाजपा की राजनीति” बताकर अपनी बेशर्मी की चादर से ढकने का असफ़ल प्रयास कर रहे हैं। लेकिन यह पब्लिक है साहब, ये सब जानती है।
🖋️ मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
(नोएडा से प्रकाशित एक राष्ट्रवादी समाचार-पत्र)