भाई दूज महिमा: यमुना में स्नान और अपनी बहन के साथ भोजन करेंगे तो नहीं देखना होगा नरक का द्वार

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भैया दूज कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्बितीया को मनाया जाता है। भाई दूज दीपावली के पांच दिनी महोत्सव का अंतिम दिन होता है। भाई दूज एक ऐसा पर्व है, जोकि पूरे भारत में मनाया जाता है, जबकि रक्षा बंधन को कुछ प्रांतों में ही मनाया जाता है, क्योंकि कुछ प्रांतों में श्रावण पूर्णिमा को भाई-बहन से जोड़कर नहीं मनाया जाता है।

भाई दूज की पौराणिक कथा

भाई दूज को लेकर एक पौराणिक कथा है। जिसके अनुसार, कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्बितीया तिथि के दिन मृत्यु के देवता यमराज से उनकी बहन यमुना मिली और उन्होंने यम देव से बरदान मांगा। देवी यमुना ने यमराज से कहा कि भाई, आज के दिन जो भी भाई, पवित्र नदी में स्नान करने के बाद उसकी बहन के घर में भोजन करेगा, उस भाई को कभी मृत्यु का भय नहीं रहेगा। इस पर यमराज जी ने बहन यमुना के वचन को फलीभूत करने का वर दिया। उसी काल से भाई दूज की परम्परा की शुरुआत हुई। मान्यता यह भी है कि इसी दिन यम देवता ने अपनी बहन यमी यानी यमुना को दर्शन दिया था, इससे यमुना जी अत्यन्त प्रसन्न हो गई थी। उनका स्वागत सत्कार किया। इस पर यम देव बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने वर दिया कि जो कोई भाई-बहन इस दिन यमुना में स्नान करेंगे तो उनकी मुक्ति हो जाएगी।

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अन्य पौराणिक कथा-

सूर्य देव की पत्नी संज्ञा देवी की दो संतानें हुई, पुत्र यमराज व पुत्री यमुना। एक बार संज्ञा देवी भगवान सूर्य के तेज को सहन कर सकी और उत्तरी ध्रुव प्रदेश में छाया बन कर रहने चली गईं। उसी छाया में ताप्ती नदी और शनिदेव का जन्म हुआ। छाया का व्यवहार यम और यमुना से विमाता जैसा था। इससे दुखी होकर यम जी ने अपनी अलग यमपुरी बसाई। यमुना जी यमपुरी में पापियों को दंडित करते देखकर गोलोक चली आईं, यम और यमुना काफी लम्बे समय तक अलग-अलग रहे। यमुना जी ने कई बार अपने भाई यमदेव को अपने घर आने का निमंत्रण दिया लेकिन वह नहीं आ सके। कालांतर में यम देव ने सोचा, चलो बहन यमुना से मिलते हैं। दूतों को आदेश दिया कि यमुना जी कहां रहती है, पता करें। तब यम देव को उनका पता चला तो यम देव गोलोक में विश्राम घाट में यम देव की यमुना जी से भ्ोंट हुई। यहां यमुना जी ने यम देव का भावपूर्ण स्वागत सत्कार किया, उन्हें अनेकानेक व्यंजन खिलाए। यम देव अपनी बहन यमुना जी से बहुत ही प्रसन्न हुए और वर मांगने को कहा, तब यमुना जी ने अपने भाई यमदेव से कहा कि यदि आप वर देना ही चाहते हैं तो आप मुझे वर दीजिए कि आज के दिन जो लोग यमुना नगरी में विश्राम घाट पर यमुना में स्नान और अपनी बहन के साथ भोजन करें। वे आपके लोक में न जाएं। यम देव भाव विभोर हो गए और तथास्तु कहा। तब से भाई-दूज मनाने की परम्परा है।

पूजा की विधि-

पूजा की थाल में हल्दी, चावल, कुमकुम, चंदन, एक दीपक, लाल कलावा, सफेद रुमाल व मिठाई लेकर पूजन करें। भाई के माथे पर तिलक लगाए, फिर भाई के दाहिने हाथ में रक्षा कवच के रूप में लाल कलावा बांधे और आरती उतारें। पूजन के बाद सदैव रक्षा का संकल्प लेकर उन्हें मिठाइयां खिलाएं।

एक लोककथा-

एक जाट था और एक भाट था। जाट की बहन थी और भाट की बहन नहीं थी । भैया दूज का दिन था, जाट ने कहा कि आज भैया दूज हैं और मैं अपनी बहन के जा रहा हूँ । भाट बोला कि मेरे तो बहन ही नहीं है, मैं भी चलता हूँ, मैं किसी को मुँहबोली बहन बना लूंगा। वे दोनों चल दिए, आगे चलकर जाट अपनी बहन के रुक गया। भाट ने देखा कि कुएँ पर दो पनहारी पानी भर रही हैं। आपस में बातचीत कर रही हैं कि आज भैया दूज है। आज हमारा भाई आएगा, जल्दी – जल्दी चलते हैं। दूसरी बोलती है कि मेरा तो भाई नहीं है, मैं किसके टीका करूंगी। भाट वहां ये बातें सुन रहा था। पनहारी पानी लेकर अपने घर चल दी, पीछे – पीछे भाट भी चल दिया। वह घर जाकर मटका रखकर चरखा कातने बैठ गई। उसने पास जाकर भाट ने कहा कि जीजी राम राम। वह जैसे ही खड़ी हुई तो चरखे का तार टूट गया, वो जुड़ा नहीं वह भाई से कैसे मिले, वह भगवान से प्रार्थना करने लगी कि तार जुड़ जाए तो मैं भाई से मिलूं। तार जुड़ गया वह भाई से मिली । पड़ोसियों से पूछने लगी कि प्यारा पावना आए तो चावल कैसे बनाए । पड़ोसन ने कहा कि तेल में चौका दो और घी में चावल चढ़ा दो। ना चौका सूखे, ना चावल गले । भैया भूखा बैठा रहा । भाट मन में सोचता है कि मुंह बोली बहन है, सगी बहन होती तो अभी तक खाना खिला देती। इतने में ससुर बाहर से आता है। ससुर कहता है कि कोई अकलमंद बहू हो तो गोबर – मिट्टी से चौका दे, दूध में चाबन चढ़ाए तो चौका सूखता आए चावल गलते चले जाए तो प्यारे भाई को खाना खिला दे । बहन ने ऐसा ही किया , भाई ने फिर खाना खाया । भाई को रहते हुए तीन दिन हो गए, भाई कहता है कि बहन मैं घर जाऊं । बहन मना करती लेकिन भाई कहता है कि अब मैं जाऊँगा । वह सास , ननद की चोरी से रात को चावल की पिन्नी पीस कर देती है तो सांप पिस जाता है । पिन्नी भाई को दे देती है, भाई चला जाता है । सुबह उठकर देखती है कि उसमें सांप पिसा हुआ होता है। सांप को पिसा हुआ देखकर बहन भाई के पीछे पीछे जाती है । नदी के किनारे भाई मेढ़ामाढ़े पड़ा होता है । बहन तो वहीं बैठ जाती है । बारह साल तक बहन भाई का सिर अपने घुटने पे लिए बैठी रहती है । तब कीकर बोलती है, काँटे काट कटीली काँटे लगा फूल, फूल तोड़ माथे लगा सोता वीर जगाती। बहन कहती है कि एक बार और बोल , फिर वह बोलती है , बहन फिर कहती है कि बहन एक बार और बोल , तो कीकर तीसरी बार बोलती है । तब बहन फूल तोड़कर भाई के माथे से लगाती है तो भाई खड़ा हो जाता है और कहता है बहन मैं तो बहुत सोया। बहन कहती है तुझे तो बारह साल हो गए सोए हुए । भाई बहन से कहता है, अब तुम घर जाओ , भाई मैं घर कैसे जाऊँ । मुझे तो बारह साल हो गए । सेज भरतार छोड़ा, पूत पालने छोड़ा, दूध औंटता छोड़ा । घर के बाहर से तेरे पीछे चली आई, अब तो भाई मैं तेरे साथ चलूँगी। वहाँ से दोनों बहन भाई चल देते हैं । रास्ते में बहन को प्यास लगती है , वह भाई से कहती है मुझे प्यास लग रही है। भाई बोला कि यहाँ पर कहीं पानी नहीं है । आगे चलते हैं तो बढ़ई किवाड़ बना रहे हैं । भाई कहता है कि बहन वहीं से पानी पी आओ। तो वहाँ बढ़ई किवाड़ जड़ रहे थे तो बहन पूछती है कि यह किवाड़ किसके लिए जड़ रहे हो , बढ़ई कहता है तुम अपना काम करो । नहीं मैं तो पूछ कर जाऊँगी । बढ़ई कहता है एक बुढ़िया है जब वह मरेगी तब उसकी छाती पर यह किवाड़ जड़ेंगे । वह पूछती है कि इसका उपाय क्या है । वह बोला कि उसके सात बेटे थे, छह मर गए , सातवें की बारी है । कोई बुआ हो या बहन हो तो सारे काम अशुभ करे तो भाई जिंदा रहेगा । बहन कहती है कि फिर इसका उपाय बताओ क्योंकि उसका मुँहबोला भाई उस बुढ़िया का सातवाँ बेटा है । बढ़ई बताता है कि जिस वक्त लड़के की सगाई आए तो लोटे से कर लो , बान होवे तो भी लोटे से कर ले । जिस वक्त मोड़ बाँधे तो उसकी जगह फूस का फूला बाँधे । दरवाजे से बारात नहीं निकालें , दीवार तोड़ कर पीछे से निकालें । मर्दाना भेष धरकर बहन बारात के साथ जाए, तो नेग करवा ले और एक पाली ले लें । जिस वक्त भाई फेरों पर बैठे तो नाग आएगा , तब उस नाग को हंडिया में कर ले । फिर नागिन आएगी तो उससे वचन भरवा ले, जब वचन भरवा ले , तो एक वचन , दो वचन , तीसरा वचन , नरक कुंड में पड़े । तब नागिन से कहें कि मेरे सातों भाई और सातों भाभियों को छोड़े, तो वह कहेगी पापिन हत्यारिन तूने बहुत ठगा, जा बख्शा । तेरे सातों भाई और सातों भाभियों को छोड़ दिया । बहन ने ऐसा ही किया तब सातों घोड़े और सातों डोले आए तो बहन सबको लेकर बारात के साथ वापिस आती है । बुढ़िया भूस के कुल्हे में जो पड़ी , वह सोचती है जो मेरे होता आया वही होगा । छह तो मेरे जा चुके अब सातवें की बारी है । इतने में सब आते दिखाई देते हैं तो पड़ोसनें कहती हैं कि तेरे सातों बेटे – बहुए आ रहे हैं । बुढ़िया कहती है कि तुम हँसी नहीं करोगी तो कौन करेगा ? तो वह कहती हैं कि नहीं नहीं हम सच कह रहे हैं, तेरी बेटी भी आ रही है । बुढ़िया बोली कि अगर सब आ रहे हैं तो बेटे की पगड़ी , बहु की चुंदड़ी और मेरे आँखों के जाले , कानों के ताले खुल जाएँ । तब वैसा ही हो गया । माँ – बेटी को आशीर्वाद देती है कि तेरा भाग , बेटी माँ से कहती है कि तेरा भाग । फिर वह बुढ़िया को सारी कहानी सुनाती है तो सब खुश हो जाते हैं । बहन को भाई और माँ – बेटी को बहुत धन देकर विदा करते हैं । जैसे उसको भाई मिला वैसे सबको मिले ।

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