मैं 85 का हूं, जिंदगी जी चुका हूं… बोलकर आरएसएस के नारायण ने युवा मरीज को दे दिया अपना बेड
कहावत है कि धन-बल से मनुष्य ऐश्वर्य तो प्राप्त कर सकता है, लेकिन वह सम्मान नहीं प्राप्त कर सकता है, जो उसके पास धन-बल न रहने पर भी बना रहे। वास्तव में देखा जाए तो अक्सर सम्मान मनुष्य के कर्मों के अधीन होता है। राष्ट्रीय सेवक संघ से जुड़े व्यक्ति ने इसकी जीती-जागती मिसाल प्रस्तुत की है, जोकि उन लोगों पर सवालिया निशान खड़ा करती है, तो संघ के संस्कारों को कटखरे में खड़ा करने की कुत्सित मानसिकता रखते हैं। आपने यह तो सुना होगा कि किसी ने कोविड के इस संकमणकाल में धन से किसी की मदद कर दी, कोविड अस्पताल बनवा दिया, किसी गरीब की किसी न किसी रूप में मदद कर दी, लेकिन आपने शायद इस तरह का मामला कम ही सुना होगा कि किसी ने दूसरे की जान बचाने के लिए अपनी जान खोना स्वीकार कर लिया हो, ऐसी बानगी संघ के एक कार्यकर्ता ने प्रस्तुत की हैं। हुआ यह कि जब कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने लोगों का दिल दहला कर रख दिया है। हर रोज कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ रही हैं। कोरोना मरीजों की मौत भी बड़ी संख्या में हो रही है। कोरोना वायरस की यह दूसरी लहर बेहद खतरनाक है। संक्रमितों की बढ़ती संख्या को अस्पताल भी अब नहीं संभाल पा रहे। दिल्ली-मुंबई के हालात को काफी अत्यन्त दयनीय है। अस्पतालों में लोग ऑक्सीजन की कमी के कारण एक-एक सांस के लिए तरस रहे हैं। दवा और ऑक्सीजन की कमी के कारण भारी संख्या में मरीजों की मौत हो रही हैं। लोगों का दर्द देखकर मानवता के कारण कुछ लोग जमीनी स्तर पर मदद करने की कोशिश कर रहे हैं। कहीं सोशल मीडिया पर लोगों की मदद करके ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध करवाया जा रहा है तो कहीं मरीजों को अस्पताल में बेड उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। कोरोना के हालात को देखते हुए एक 85 साल के बुजुर्ग ने 40 साल के महिला की जान देकर मदद की।
एक युवा मरीज के लिए नागपुर के अस्पताल से स्वेच्छा से बाहर निकले 85 वर्षीय व्यक्ति की मंगलवार को उसके घर पर मौत हो गई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य नारायण दाभलकर को कोविड -19 के लिए सकारात्मक परीक्षण के बाद नागपुर के इंदिरा गांधी सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
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ऑक्सीजन का स्तर को कम होने के बावजूद नारायण दाभलकर ने अपने डॉक्टरों की चिकित्सा सलाह के खिलाफ जाकर एक महिला को उसके 40 वर्षीय पति को अस्पताल में भर्ती करवाने के लिए बेड दे दिया। बुजुर्ग नारायण की हालत खराब थी लेकिन उन्होंने पति के लिए विनती करती महिला को बेड दे दिया और अस्पताल से छुट्टी ले ली।
85 वर्षीय ने कथित तौर पर डॉक्टरों से कहा कि मैं 85 साल का हूं। मैंने अपनी जिंदगी जी ली है। एक जवान आदमी के जीवन को बचाना अधिक महत्वपूर्ण है। उनके बच्चे छोटे हैं, कृपया उन्हें मेरा बिस्तर दें। डॉक्टरों ने ऑक्टोजेरियन को बताया कि उनकी हालत स्थिर नहीं है और अस्पताल में इलाज आवश्यक है। हालांकि 85 वर्षीय नारायण ने अपनी बेटी को बुलाया और उसे स्थिति से अवगत कराया। घर लाने के तीन दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई। सोमवार को सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कहा गया कि नारायण दाभलकर ने एक युवा मरीज के लिए बिस्तर त्याग दिया था।
दाभलकर की बेटी ने कहा कि 22 अप्रैल को जब उनका ऑक्सीजन का स्तर गिरा, तो हम उन्हें आईजीआर-वीके में ले गए। हमें बहुत प्रयास के बाद एक बिस्तर मिला, लेकिन वह कुछ घंटों में घर वापस आ गए। मेरे पिता ने कहा कि वह हमारे साथ अपने अंतिम क्षणों को बिताना पसंद करेंगे। उन्होंने यह भी बताया। उन्होंने यह भी कहा कि एक युवा मरीज के कारण उन्होंने अपना बेड त्याग दिया।
अब क्या कहेंगे संघ के विरोधी
संघ के संस्कारों पर सवालिया निशान लगाने वाले अक्सर कहते हैं कि संघ का राष्ट्रवाद क्या है? वह वास्तव में संघ के राष्ट्रवाद को न जानते हैं, न सफझते हंै और न ही समझना चाहते हैं। इसकी वजह यह है कि आजादी के सत्तर सालों में एक ऐसी जनसंख्या का विस्तार हो गया है, जो मूल रूप सेे भारतीय संस्कारों से कट चुकी है, उन्हें सिर्फ अपनी सिर्फ अपनी फिक्र है, न राष्ट्रवाद से मतलब है और न ही भारतीय संस्कारों से। ऐसी विचारधार के पोषक सिर्फ समता और सो-कॉल्ड सेक्युलिरिज्म की बात करते नजर आते हैं। कुछ भी बोल देना और उसे ही सत्य व सम्पूर्ण मान बैैठना। उनमें न विचारशीलता है और न ही धैर्य। फिल्मों में काम करने वाली छोटी-बड़ी अभिनेत्रियों को अपने अनाप-शनाप बयान बाजी करते देखा व सुना होगा। इन अभिनेत्रियों की कितनी समझ होती है, यह किसी से छिपी नहीं है। छोटी सी समझा को ही अपनी विद्वता मानकर बकवास करने वाली अभिनेत्रियों की लम्बी फैहरिस्त है। अपनी तुच्छ समझ के कारण ही यह कभी देश विरोधियों के पक्ष में खड़ी नजर आती है तो कभी छोटे-छोटे किरदान निभाने के लिए बड़े-बड़े समझौते करती नजर आती हैैं।
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