नयी दिल्ली। केरल उच्च न्यायालय ने 2011 में अपना फैसला सुनाते हुए राज्य सरकार को श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर, इसकी परिसम्पत्तियों और प्रबंधन पर नियंत्रण लेने का आदेश दिया था। उच्च न्यायालय ने सभी मेहराबों को खोलकर सभी वस्तुओं की एक सूची तैयार करने और उन वस्तुओं को एक संग्रहालय बनाकर जनता की प्रदर्शनी के लिए रखने का आदेश दिया था जिसे बाद में पूर्ववर्ती त्रावणकोर रॉयल परिवार ने शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी। उच्चतम न्यायालय केरल के ऐतिहासिक पद्मनाभस्वामी मंदिर के प्रशासन और परिसम्पत्तियों पर नियंत्रण को लेकर सोमवार को बहुप्रतीक्षित निर्णय सुनाएगा।
न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की खंडपीठ को इन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर अपना निर्णय सुनाना है कि इस ऐतिहासिक मंदिर के प्रबंधन का कार्य राज्य सरकार देखेगी या त्रावणकोर का पूर्ववर्ती रॉयल परिवार। इस मंदिर की अकूत सम्पत्तियों पर नियंत्रण को लेकर भी न्यायालय को अपना महत्वपूर्ण निर्णय सुनाना है।
न्यायालय को इस बात का भी निर्धारण करना है कि क्या यह मंदिर सार्वजनिक सम्पत्त्ति है और इसके लिए तिरुपति तिरुमला, गुरुवयूर और सबरीमला मंदिरों की तरह ही देवस्थानम बोर्ड की स्थापना की आवश्यकता है या नहीं? खंडपीठ इस बिंदु पर भी निर्णय सुना सकता है कि त्रावणकोर के पूर्ववर्ती रॉयल परिवार का मंदिर पर किस हद तक अधिकार होगा और क्या मंदिर के मेहराब ‘बी’ को खोला जाये या नहीं।
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विभिन्न न्यायाधीशों की अलग-अलग खंडपीठों ने इस मामले की आठ साल से अधिक समय तक सुनवाई की थी और मंदिर के मेहराब में रखी गयी बहुमूल्य चीजों की एक सूची बनवाने में प्रमुख भूमिका निभायी थी। अंतत: न्यायमूर्ति ललित और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की खंडपीठ ने गत वर्ष अप्रैल में इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था।
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इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता एवं पूर्व सॉलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रह्मण्यम को न्याय मित्र बनाया गया था, जिन्होंने बाद में खुद को इससे अलग कर लिया था। श्री सुब्रह्मण्यम ने एक स्वतंत्र रिपोर्ट भी अदालत में दाखिल की थी। दूसरी रिपोर्ट पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) विनोद राय ने सौंपी थी। ऐसा कहा जाता है कि इन रिपोर्टों में तमाम वित्तीय गड़बड़ियों और मंदिर के खातों में अनियमितताओं का उल्लेख भी किया गया है। बहुमूल्य धातुओं के इस्तेमाल में भी गड़बड़ी की आशंका रिपोर्ट में जतायी गयी थी।