वाराणसी। सावन के प्रथम सोमवार को धार्मिक नगरी वाराणसी में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर समेत अनेक शिवालयों में श्रद्धालुओं ने शारीरिक दूरी के साथ पूजा-अर्चना की, लेकिन दिन-रात बाबा के जयकारे से गुंजने वाली इस धार्मिक नगरी में उत्साह नहीं भी दिखा। गत वर्षों की तरह न तो कहीं शिवभक्तों का सैलाब और न/न कांवड़ियों की भीड़-भाड़ है। इक्के-दुक्के लोगों ने ही मंदिर की ओर रुख किया। ज्यादातर लोगों ने अपने घरों में भी बाबा की पूजा-अर्चना की।
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में स्वास्थ्य संबंधी एहतियात के कारण हजारों की जगह महज पांच यादव बंधुओं ने पौराणिक परंपरा का निवर्हन करते हुए गर्भगृह में जलाभिषेक किया। प्रशासन ने सिर्फ इतने ही लोगों को इजाजत दी थी। सावन के प्रथम सोमवार को आम तौर पर हजारों की संख्या में यादव बंधु सामुहिक तौर पर जलाभिषेक करते हैं। वर्ष 1932 से चली आ रही इस परंपरा के समुचित निर्वहन के लिए प्रशासन की ओर से हर बार विशेष तैयारियां की जाती हैं।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि महामारी के मद्देनज़र इस बार श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह में आम श्रद्धालुओं को जाने या मंदिर परिसर में कोई भी चीज छूने की इजाजत नहीं है इसलिए उन्होंने बाबा का ‘झांकी दर्शन’ कर मंदिर गर्भगृह के पास रखे विशेष पात्र में जलाभिषेक किया। मंदिर पहुंचने के रास्ते में बैरिकेडिंग के साथ शारीरिक दूरी बनाने रखने के लिए गोले बनाये गये हैं। जगह-जगह ‘हैंड सेनेटाइजर’ की व्यवस्था की गई तथा पर्याप्त संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया हैं।
उन्होंने बताया कि एक बार में पांच श्रद्धालुओं मंदिर में जाने की अनुमति दी जाती है तथा उनके बाहर आने के बाद उतनी ही संख्या में लोग अंदर दाखिल होते हैं। दिव्यांगों एवं चलने-फिरने में असमर्थ लोगों के लिए मंदिर परिसर तक जाने के लिए विशेष व्यवस्था की गई है। रास्ते में ‘रेड कारपेट’ बिछाये गए हैं।
सूत्रों ने बताया कि मंदिर में फूल, बेलपत्र या अन्य पूजन सामग्री लाने की भी इजाजत नहीं है। इस लिए भक्त बाबा के जयकारे लगाते हुए अपनी मनोकामना के साथ यहां आते हैं तथा एक निश्चित दूरी से बाबा का दर्शन-पूजन करते हैं।
प्रसिद्ध दशाश्वमेध घाट पर (गंगा घाट) भी बेहद कम श्रद्धालु ही नजर आये। श्रावन माह के शुरु होने से पहले ही आमतौर पर कांवरियों से पटा रहने वाला यह पूरा क्षेत्र वीरान-सा है। श्रद्धालुओं से ज्यादा यहां सुरक्षा कर्मी नजर आये हैं।