षष्टम स्वरूप कात्यायनी माता: सहजता से अर्थ, धर्म,काम व मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है

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1923
मां कात्यायनी

भगवती दुर्गा का षष्टम स्वरूप कात्यायनी माता


भगवती का छठां स्वरूप कात्यायनी के नाम से विख्यात है। कत नाम के एक ऋषि हुआ करते थे। उनके कात्य नाम के पुत्र हुए थे। इन्हीं कात्य के गोत्र में महर्षि कात्यायन हुए थे । महर्षि कात्य ने वर्षो तक भगवती की कठोत तपस्या की थी। वह भगवती के उनके घर में उत्पन्न होने की कामना करते थे। कुछ समय पश्चात जब दानवराज महिषासुर का अत्याचार धरती पर बढ़ गया और देवता उसके भय से प्रताड़ित हो गए तो भगवान ब्रह्मा, विष्णु व महेश के अंश से महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी प्रकट हुई तो महर्षि कात्यायन ने सर्व प्रथम इनकी पूजा की। इसी कारण यह कात्यायनी देवी कहलाईं।
एक अन्य कथा भी मिलती है, जिसके अनुसार ये महर्षि कात्यायन के यहां पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई थीं। अश्विनी कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्ल सप्तमी, अष्टमी और नवमी यानी तीन दिन कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण की और दशमी के दिन इन्होंने महिषासुर का वध किया था। मां भगवती का कात्यायनी स्वरूप भक्त को अमोघ फल प्रदान करता है।

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भगवान श्री कृष्ण को पति रूप में पाने की कामना से व्रज की गापियों ने इन्हीं देवी की पूजा कालिन्दी यमुना तट पर की थी। ये व्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इनका स्वरूप भव्य है। इनका वर्ण स्वर्ण के समतुल्य चमकीला और भास्वर है। चार भुजाएं हैं। भगवती के दाहिने तरफ के ऊपर वाले हाथ में अभय मुद्रा है और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है। बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल सुशोभित है। इनका वाहन भी सिंह है। नवरात्रि के छठे दिन कात्यायनी के स्वरूप की पूजा की जाती है। साधक के मन में आज्ञा चक्र स्थित होता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का विशेष महत्व है। इस चक्र में साधक भगवती कात्यायनी को अपना सर्वस्व अर्पण कर देता है। पूर्ण आत्मदान करने वाले साधक को भगवती के दर्शन प्राप्त होते है। भगवती का यह स्वरूप अर्थ, धर्म, काम व मोक्ष प्रदान करने वाला है। इनकी उपासना से साधक परमपद का अधिकारी हो जाता है।

षष्टम नवरात्रे में पूजन विधान

नवरात्र के छठवें दिन माता भगवती के कात्यायनी रूवरूप की आराधना की जाती है। चार भुजा धारी भगवती कात्यायनी सिंह पर सवार होकर असुरों का संहार करती है और भक्तों की रक्षा करती हैं। इनके एक हाथ में कमल पुष्प, दूसरा हाथ अभय मुद्रा में एकहाथ वर मुद्रा में तथा चौथे हाथ में खड्ग शोभायमान है। सच्चे मन और सच्ची श्रद्घा से जो प्राणी कत्यायनी देवी का स्वरूप अपने ह्दय में स्थित करके साधना करता है। माता उस प्राणी को उस साधक को अर्थ, धर्म, काम एवम मोक्ष प्रदान करती हैं। माता कात्यायनी देवीकी साधना करते हेतु लकड़ी की स्वच्छ चौकी पर माँ की मूर्ति की स्थापना करें और सर्व कल्याण यंत्र की स्थापना करें। यदि शत्रु से परेशान हैं तो शत्रु मर्दन मंत्र की स्थापना करें और लाल वस्त्र पर काली स्याही अथवा काजल से शत्रु का नाम लिखे तत्पश्चात उस पर यंत्ररखकर हाथ में पुष्प लेकर माँ के स्वरूप का ध्यान करते हुए मंत्र पढ़ें-

चन्द्रहासोज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्योद्देवी दानवघातिनी।।

अब पुष्पांजलि मैया के चरणों में अर्पित करें और षोडशोपचार विधि से पूजन करें और नैवेद्य चढ़ायें। यदि शत्रु दमन हेतु यंत्र की स्थापना किये हो तो काली हकीक की माला से १०८ बार मंत्र पाठ करें-

ऊँ ऐं ह्री क्लीं चामुण्डयै विच्चे ऊँ कात्यायनी दैव्यै नम:।।

शत्रु भय एवम शत्रु विनाश के लिए नीचे लिखे मंत्र का पाठ करें-

ऊँ क्रौं क्रौं कात्यायन्यै क्रौं क्रौं फट्ट।।
मंत्र समाप्त कर माता से प्रार्थना करें तत्पश्चात आरती करके पूजन समाप्त करें।

भक्त को सहजता से अर्थ, धर्म,काम व मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है

पूर्ण समर्पण व भक्ति भाव से मां कात्यायनी की उपासना से भक्त को सहजता से अर्थ, धर्म,काम व मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। सच्चे साधक को माता दर्शन देकर कृतार्थ करती है। मां कात्यायनी सुनहरे व चमकीले वर्ण वाली, चार भुजा वाली और आभूषणों से अलंकृत रहती है। उनका वाहन सिंह खुंखार व झपट लेने वाली मुद्रा में रहता हैं। इनका आभामंडल विभिन्न देवों के तेज से मिश्रित इंद्रधनुषी छटा देता है। सभी प्राणियों में इनका वास आज्ञा चक्र में होता है।

नवरात्रि के पांचवें दिन साधक आज्ञा चक्र में लगाते हैं। माता कात्यायनी की दाहिने ओर की ऊपर वाली भुजा अभय देने वाली मुद्रा में और नीचे वाली भुजा वर देने मुद्रा में है। बायीं ओर की ऊपर वाली भुजा में तलवार यानी चंद्रहास खड्ग धारण करती हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का फूल रहता है। नवरात्रि के छठे दिन कात्यायनी के स्वरूप की पूजा की जाती है। साधक के मन में आज्ञा चक्र स्थित होता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का महत्व है। इस चक्र में साधक भगवती कात्यायनी को अपना सर्वस्व अर्पण कर देता है।

पूर्ण आत्मदान करने वाले साधक को भगवती के दर्शन प्राप्त होते है। भगवती का यह स्वरूप अर्थ, धर्म, काम व मोक्ष प्रदान करने वाला है। माता की कृपा से भक्त के रोग, शोक, संताप व भय का नाश होता है। उसके तेज में वृद्धि होती है। माता के कात्यायनी स्वरूप का पूजन-अर्चन कर नवरात्रि के छठे दिन माता को प्रसन्न करने के लिए मधु यानी शहद का भोग लगाकर स्तवन करने से साधक को सुंदर यौवन प्राप्त होता है। साथ ही माता उसके घर में लक्ष्मी के रूप में वास करती है।

देवी कात्यायनी का साधना मंत्र

ओम देवी कात्यायन्यै नम:

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