सबके योगदान से ही संरक्षित होगा पर्यावरण: मोदी

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पवन कुमार, लखनऊ/ नयी दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज कहा कि देश के एक बड़े हिस्से में अब मानसून पहुँच चुका है। इस बार बारिश को लेकर मौसम विज्ञानी भी बहुत उत्साहित हैं, बहुत उम्मीद जता रहे हैं। बारिश अच्छी होगी तो हमारे किसानों की फसलें अच्छी होंगी, वातावरण भी हरा-भरा होगा। मानव , प्राकृतिक संसाधनों का जितना दाेहन करता है, प्रकृति बारिश के समय उसकी भरपाई करती है लेकिन यह भरपाई तभी संभव है जब हर व्यक्ति इस कार्य में सहयोग करे।
श्री मोदी ने आकाशवाणी से प्रसारित मन की बात कार्यक्रम में कहा कि बारिश के मौसम में प्रकृति खुद को पुनर्जीवित करती दिखती है। बारिश के जरिये प्रकृति प्राकृतिक संसाधनों के दोहन की भरपाई करती है लेकिन प्राकृतिक संसाधनों को यह पुनर्जीवन भी तभी मिलता है, जब इस कार्य में हम सभी अपनी धरती मां का साथ दें और अपना दायित्व निभायें। उन्होंने कहा कि हमारे द्वारा किया गया थोड़ा सा प्रयास, प्रकृति को, पर्यावरण को, बहुत मदद करता है। हमारे कई देशवासी तो इसमें बहुत बड़ा काम कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने इस दिशा में देश में किये जा रहे व्यक्तिगत और सामूहिक प्रयासों का जिक्र करते हुए बताया कि कर्नाटक के मंडावली में 80-85 साल के एक बुजुर्ग हैं, कामेगौड़ा , कामेगौड़ा जी एक साधारण किसान हैं लेकिन उनका व्यक्तित्व बहुत असाधारण है। उन्होंने, एक ऐसा काम किया है कि कोई भी आश्चर्य में पड़ जायेगा । कामेगौड़ा जी अपने जानवरों को चराते हैं लेकिन साथ-साथ उन्होंने अपने क्षेत्र में नये तालाब बनाने का भी बीड़ा उठाया हुआ है। वे अपने इलाके में पानी की समस्या को दूर करना चाहते हैं इसलिए, जल-संरक्षण के काम में छोटे-छोटे तालाब बनाने के काम में जुटे हैं। आप हैरान होंगे कि 80-85 वर्ष के कामेगौड़ा जी अब तक 16 तालाब खोद चुके हैं,अपनी मेहनत से, अपने परिश्रम से हो सकता है कि ये जो तालाब उन्होंने बनाए वो बहुत बड़े न हों लेकिन उनका ये प्रयास बहुत बड़ा है। आज पूरे इलाके को इन तालाबों से एक नया जीवन मिला है।
उन्होंने प्रकृति के संरक्षण में हर व्यक्ति से सहयोग की अपील करते हुए कहा कि इस बरसात में प्रकृति की रक्षा के लिए, पर्यावरण की रक्षा के लिए, हमें भी, कुछ इसी तरह सोचने की, कुछ करने की पहल करनी चाहिए। जैसे कई स्थानों पर, गणेश चतुर्थी को लेकर तैयारियाँ शुरू होने जा रही होंगी। क्या इस बार, हम प्रयास कर सकते हैं कि ‘ईको फ्रेंडली’ गणेश जी की प्रतिमायें बनायेंगे और उन्हीं का पूजन करेंगे। क्या हम ऐसी प्रतिमाओं के पूजन से बच सकते हैं जो नदी-तालाबों में विसर्जित किये जाने के बाद, जल के लिए, जल में रहने वाले जीव-जंतुओं के लिए संकट बन जाती हैं।

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