सभी व्यक्तियों का सूर्य व उसके प्रकाश के समान आर्यसमाज से भी सम्बन्ध है

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ओ३म्
-वैदिक साधन आश्रम तपोवन देहरादून के शरदुत्सव के समाचार-
“सभी व्यक्तियों का सूर्य व उसके प्रकाश के समान आर्यसमाज से भी सम्बन्ध है: आचार्य विष्णुमित्र वेदार्थी”

वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून का पांच दिवसीय शरदुत्सव दिनांक 24-10-2021 को सोल्लास एवं सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। रविवार 24 अक्टूबर को प्रातः आश्रम की भव्य एवं विशाल यज्ञशाला में अथर्ववेद पारायण यज्ञ की पूर्ण-आहुति सम्पन्न हुई। यह यज्ञ चार वृहद यज्ञ-वेदियों व यज्ञ कुण्डों में सम्पन्न हुआ।यज्ञ-वेदि के चारों ओर अनेकों याज्ञिकों ने बैठकर श्रद्धापूर्वक वेद भगवान यज्ञरूप परमेश्वर को घृत एवं साकल्य की आहुतियां दीं और ऐसा करके यज्ञ करने की वेदाज्ञा का पालन किया। यज्ञ स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी के सान्निध्य में हुआ। यज्ञ के ब्रह्मा स्वामी मुक्तानन्द सरस्वती, रोजड़ थे। यज्ञ में योगिनी माता साध्वी प्रज्ञा जी की उपस्थिति ने भी आयोजन की पवित्रता एवं महत्ता में वृद्धि की। यज्ञ में मंत्रोच्चार गुरुकुल पौंधा के दो ब्रह्मचारियों ने किया। यज्ञशाला के मंच पर स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी, स्वामी मुक्तानन्द जी, साध्वी प्रज्ञा जी, पं. सूरतराम शर्मा जी, पं. शैलेश मुनि सत्यार्थी जी, प्रसिद्ध भजनोपदेशक पं. दिनेश पथिक जी एवं वेदपाठी दो ब्रह्मचारी विद्यमान थे। निरन्तर वेदमंत्रों के पाठ, उच्चारण व स्वाहा की ध्वनि के साथ यज्ञ में यजमानों द्वारा घृत व साकल्य की आहुतियां दी जाती रहीं। स्वामी मुक्तानन्द जी व पं. सूरतराम शर्मा जी यज्ञकर्ताओं को जो उपदेश व निर्देश दे रहे थे, उसका सब पालन कर रहे थे। सभी मन्त्र पूरे होने पर यज्ञ की पूर्णाहुति की गई। पूर्णाहुति के बाद यज्ञ प्रार्थना हुई एवं पं. दिनेश पथिक जी का एक भजन तथा यज्ञ के ब्रह्मास्वामी मुक्तानन्द जी का सम्बोधन, आशीर्वाद व उपदेश हुआ। इसके बाद लोगों ने प्रातराश लिया और आगामी सत्र के लिये आश्रम के भव्य एवं विशाल सभागार में उपस्थित हुए।

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सभागार में सत्संग सत्र का आयोजन आश्रम के यशस्वी मंत्री महाशय प्रेम प्रकाश शर्मा जी के सम्बोधन से आरम्भ हुआ। 98 वर्षीय ऋषिभक्त श्री सुखलाल सिंह वर्मा जी को इस आयोजन का अध्यक्ष बनाया गया। शर्मा जी ने कहा कि हमारा पांच दिवसीय शरदुत्सव सफलतापूर्वक सम्पन्न हो रहा है। इसका समस्त श्रेय स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती महाराज जी की प्रेरणाओं, मार्गदर्शन एवं सभी प्रकार के सहयोग को है। श्री प्रेम प्रकाश प्रकाश शर्मा जी ने कहा कि मनुष्य जब तक स्वाध्याय नहीं करता उसे जीवन के अनेक रहस्यों का पता नहीं चलता। शर्मा जी ने सभागार में उपस्थित श्रोताओं को आश्रम द्वारा आयोजित आगामी शिविरों एवं आयोजनों की सूचना भी दी। उन्होंने सब श्रोताओं को इष्टमित्रों व परिवार के सदस्यों सहित सभी कार्यक्रमों में उपस्थित होने का निमन्त्रण दिया। शर्मा जी ने आश्रम द्वारा आयोजित आगामी सांख्य योग स्वाध्याय शिविर की भी सूचना दी और उसमें सबको भाग लेने के लिये प्रेरित किया। इसके बाद कार्यक्रम का विधिवत् आरम्भ हुआ। प्रथम देहरादून के द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल की 6 कन्याओं ने वैदिक मंगलाचरण प्रस्तुत किया जिसे गुरुकुल के संस्थापक स्व. श्री वेदप्रकाश गुप्त जी ने रचा था। इसकी प्रथम पंक्ति के कुछ शब्द थे ‘होते हैं दीदार दाता होते हं् दीदार, ओ दाता मेरे करतार’। मंगलाचरण के बाद प्रसिद्ध आर्य भजनोपदेशक पं. दिनेश पथिक जी का एक भजन हुआ। भजन बहुत ही मधुर गाया गया जिसे सुनकर श्रोता मंत्रमुग्ध हो गये। भजन के बोल थे ‘टिका कर हाथ कानों पर करो कोशिश दबाने की, तुम्हें आवाज आयेगी प्रभु के कारखाने की।।’ पथिक जी के भजन के बाद आर्य विदुषी आचार्या डा. अन्नपूर्णा जी का प्रभावशाली सम्बोधन हुआ।

आचार्या अन्नपूर्णा जी ने कहा कि परमात्मा ने यह सुन्दर संसार बनाया है। यह संसार परमात्मा ने अपने लिये नहीं अपितु हम जीवों के लिये बनाया है। उन्होंने कहा कि परमात्मा को अपने लिये सृष्टि व इसके किसी भौतिक पदार्थ की आवश्यकता नहीं है। हमारा यह संसार परम सुन्दर है। यह सृष्टि परमात्मा का दृश्यकाव्य है। परमात्मा ने सृष्टि बनाने के साथ हमें वेदों का ज्ञान भी दिया है। आचार्या अन्नपूर्णा जी ने कहा कि परमात्मा की कृति वेदों का प्रचार प्रसार करने में आर्यसमाज का बहुत बड़ा योगदान है। उन्होंने बताया कि संसार का उपकार करना आर्यसमाज का उद्देश्य है। आचार्या जी ने कहा कि आर्यसमाज ने परमात्मा के वेदज्ञान का जन जन में प्रचार करना ही अपना प्रमुख उद्देश्य निश्चित किया है। आचार्या जी ने आगे कहा कि ज्ञान की प्राप्ति से ही मनुष्य बन्धनों वा दुःखों से मुक्त हो सकता है। आचार्या अन्नपूर्णा जी ने कहा कि सांख्य दर्शन के प्रणेता महर्षि कपिल के अनुसार उल्टा, मिथ्या ज्ञान वा अविद्या के कारण ही जीव संसार के बन्धनों में फंसता है। उन्होंने कहा कि हम स्वयं आर्य बनें तथा आर्य बन कर राष्ट्र का उत्थान करें।

आचार्या अन्नपूर्णा जी के बाद ऋषिभक्त आर्यमुनि जी पूर्व नाम श्री रूवेल सिंह जी का एक भजन हुआ। कार्यक्रम का संचालन केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अनिल आर्य, दिल्ली ने करते हुए उन्हें एक भजन प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया। आर्यमुनि जी के भजन के बोल थे “प्रीत प्यार ओम् से लगाओ तो सही, कण कण में रम रहा है उस प्रभु को पाओ तो सही।” लोगों ने इस भजन व इसके शब्दों के अर्थों की गम्भीरता को पसन्द किया व सराहा।

इसके बाद आचार्य पं. विष्णुमित्र वेदार्थी जी का सम्बोधन हुआ। पंडित जी ने कहा कि आज के उनके सम्बोधन का विषय है राष्ट्र निर्माण में आर्यसमाज की भूमिका। विद्वान वक्ता श्री विष्णुमित्र वेदार्थी जी ने कहा कि जितना आपका सूर्य व उसके प्रकाश के साथ सम्बन्ध है उतना ही आपका आर्यसमाज के साथ सम्बन्ध भी है। घर में खिड़की लगाने से हमें सूर्य का प्रकाश मिलता है। घर में खिड़की लगाना व उसे सूर्य का प्रकाश आने के लिये खोलना हमारा कर्तव्य व गुण है और खिड़की न लगाना हमारा दोष होता है। इसी प्रकार से जो व्यक्ति आर्यसमाज से नहीं जुड़ पाया यह उसका अपना दोष है। आचार्य विष्णुमित्र जी ने कहा कि आर्यसमाज कभी सत्य का खण्डन और असत्य का मण्डन नहीं करता। उन्होंने कहा कि मैं एक दृण सनातनी हूं। श्रोताओं व देशवासियों को उन्होंने आह्वान किया कि तुम एक बार आर्यसमाज में आ तो जाओ फिर बताना कि क्या आर्यसमाज ने कभी किसी सत्य बात का खण्डन किया है? विद्वान वक्ता ने कहा कि आर्यसमाज अविद्या, अन्याय तथा अभाव को स्वीकार नहीं करता। आर्यसमाज सत्य विद्याओं को स्वीकार करता है और उसका प्रचार करता है।

वेदार्थी जी ने कि मैं दयानन्द जी की बात बोलता हूं, अपनी निजी बात या मान्यता नहीं बोलता। इसलिए मेरी बात का कोई व्यक्ति खण्डन नहीं कर सकता। ऋषि दयानन्द जी ने भी सभी बातें वेदानुकूल एवं वेद के ऋषियों के प्रमाणों के अनुरूप युक्ति एवं तर्क से युक्त प्रस्तुत की हैं। आर्यसमाज व वैदिकधर्म से इतर मत अनेक सत्य मान्यताओं का खण्डन और असत्य मान्यताओं का मण्डन करते हैं। आचार्य जी ने कहा कि वह कहते हैं कि विश्व की उन्नति में सत्य मान्यताओं का ही योगदान है। असत्य मान्यताओं से समाज व देश की अवनति होती है। सामाजिक समरसता नष्ट होती है। आचार्य वेदार्थी जी ने कहा कि विश्व की उन्नति में किसी एक संस्था का यदि सबसे अधिक योगदान है तो वह आर्यसमाज ही है जो कभी सत्य का खण्डन नहीं करती और न ही भविष्य में कभी करेगी। आचार्य जी ने कहा कि सब पन्थों का सम्मान करने की मान्यता छोड़ों। केवल पन्थों की सत्य मान्यतायें ही स्वीकार करने योग्य होती हैं। पन्थों में बहुत सी असत्य मान्यतायें होती हैं जिनका त्याग करना अत्यावश्यक होता है। नहीं करेंगे तो मनुष्य व समाज की उन्नति नहीं हो सकती। हमें सभी पन्थों की असत्य मान्यताओं व विचारों को दूर करने के लिए उनका खण्डन द्वारा प्रयास करना चाहिये, यदि ऐसा नहीं करेंगे तो सत्य प्रतिष्ठित नहीं होगा और न ही उन्नति होगी। विद्वान वक्ता ने कहा कि आर्यसमाज का कर्तव्य विद्या का विकास व प्रचार करना है।

आचार्य विष्णुमित्र वेदार्थी जी ने कहा कि जितना सत्य का ग्रहण करना आवश्यक है उतना ही असत्य का छोड़ना भी आवश्यक है। इसी को करने से विश्व की उन्नति सम्भव है। आचार्य जी ने वैदिक काल व ऋषि दयानन्द के समय प्रचलित शास्त्रार्थ परम्परा को आरम्भ करने तथा उसे सत्यासत्य के निर्णय के लिए जारी रखने की आवश्यकता पर बल दिया। शास्त्रार्थ में सभी विषयों पर विचार होना चाहिये और सत्य के मण्डन सहित असत्य का खण्डन होना चाहिये। आचार्य जी ने कहा कि हमें राष्ट्र की उन्नति में सन्तोष करना चाहिये। उन्होंने कहा कि हमें और अधिक सहयोग कर सत्य के प्रचार द्वारा राष्ट्र की उन्नति करनी है। आचार्य जी ने अपने सम्बोधन में सम्प्रदाय निरपेक्षता को सही तथा धर्म-निरपेक्षता को अनुचित बताया। आचार्य जी ने कहा कि कुछ पर्वों पर निरीह पशुओं की हत्या पर रोक लगनी चाहिये। हमें परमात्मा के द्वारा बनाये निरीह प्राणियों की रक्षा का कार्य करना चाहिये। उन्होंने कहा कि जिनके अन्दर धर्म की दृणता नहीं है, जिनको पता नहीं कि परमात्मा एक होता है, मनुष्य का धर्म भी एक ही है व एक ही होता है, ऐसे लोगों की सभी मान्यताओं की परीक्षा करके उनकी मान्यताओं को सत्य पर स्थापित करना चाहिये। आचार्य वेदार्थी जी ने स्वतन्त्रता दिवस पर भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा लाल किले की प्राचीर से उच्चारित वेदमंत्र ‘संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जायताम्’ मन्त्र को बोलने के लिए उनकी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जी द्वारा इस मन्त्र को बोलकर सारे विश्व को एक होने का सन्देश दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि सारे विश्व के लोग एक हो सकते हैं यदि वह सब सत्य को धारण कर लें।

आचार्य विष्णुमित्र वेदार्थी जी का सम्बोधन समाप्त हुआ तथा इसके बाद आश्रम के सबसे पुराने सदस्य श्री मनजीत सिंह जी का सम्मान किया गया। उन्होंने सभागार में उपस्थित सभी श्रोताओं व अधिकारियों सहित अपने सभी पुराने एवं वर्तमान सहयोगियों का धन्यवाद किया। उन्होंने सब श्रोताओं को आश्रम से जुड़े रहने तथा अपने परिचितों को आश्रम से जोड़ने की प्रेरणा की। आश्रम के प्रधान श्री विजय कुमार आर्य जी ने श्री मनजीत सिंह जी को आश्रम को अपना सहयोग पूर्ववत् प्रदान करते रहने का अनुरोध किया। इसके बाद दिल्ली से पधारे एक ऋषि भक्त श्री के.एन. पाण्डे जी ने एक भजन गाया। इसके आरम्भ के शब्द थे प्रभु जी तेरी दया है अपार। इसके बाद भी कार्यक्रम जारी रहा है। श्री आषीश आर्य, डा. नवदीप कुमार जी के सम्बोधन तथा श्रीमती प्रवीण आर्या जी का एक मधुर भजन हुआ। साध्वी प्रज्ञा जी, मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा, श्री गोविन्द सिंह भण्डारी जी, डा. सुखदा सोलंकी, श्री शैलेश मुनि सत्यार्थी जी, कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री सुखबीर सिंह वर्मा तथा असम से पधारे श्री तेज नारायण आर्य जी ने भी सभा को सम्बोधित किया। श्रीअनिल आर्य जी ने बहुत कुशलता से सत्संग का संचालन किया। कार्यक्रम की शेष कार्यवाही को हम एक अलग लेख में प्रस्तुत करेंगे। आज का कार्यक्रम सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम की समाप्ती पर सबने मिलकर भोजन किया और आगामी कार्यक्रम तक के लिए विसृजित हुए। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

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