समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा है संस्कृति और मीडिया : डॉ. सच्चिदानंद जोशी

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नई दिल्ली, 11 दिसंबर । ”वर्तमान समय में मीडिया की संस्कृति, व्यवहार और संस्कार पर चर्चा किये जाने की आवश्यकता है। अगर हम मीडिया की संस्कृति को समझ लेंगे, तो देश, समाज, परिवेश और व्यक्तिगत संस्कृति को भी पहचान लेंगे।” यह विचार इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, दिल्ली के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने शुक्रवार को भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) द्वारा आयोजित कार्यक्रम ‘शुक्रवार संवाद’ में व्यक्त किए। इस अवसर पर आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी एवं अपर महानिदेशक श्री के. सतीश नंबूदिरीपाड भी मौजूद थे।

‘मीडिया एवं संस्कृति’ विषय पर बोलते हुए डॉ. जोशी ने कहा कि आज मीडिया के मूल चरित्र को बदलने की आश्यकता है। नोम चोम्सकी ने कहा था कि मीडिया की मूल प्रकृति नकारात्मक है और आज मीडिया में नकारात्मक खबरें ज्यादा देखने को मिलती है। इसलिए यह आवश्यकता है कि इस पर चर्चा की जाए और मीडिया की विश्वसनीयता को वापस लाया जाए। डॉ. जोशी ने कहा कि भारत में संवाद की पुरातन परंपरा है। अगर हम नाट्य शास्त्र, वेद, गीता आदि को पढ़ें, तो हम पाएंगे कि इन सभी ग्रंथों में प्रश्न और उत्तर हैं जो संवाद का एक हिस्सा है। भारतीय संस्कृति में कहा जाता है कि जब तक आपके मन में सही प्रश्न नहीं उठते, तब तक आपको उसके सही उत्तर नहीं मिलते। और यही स्थिति मीडिया की भी है।

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संस्कृति को जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बताते हुए डॉ. जोशी ने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में संस्कृति का समावेश किया गया है। एक वक्त था जब शिक्षा संस्कृति का हिस्सा हुई करती थी और भारत को विश्व गुरु का दर्जा दिया जाता था। लेकिन धीरे धीरे हमारी संस्कृति में दूसरी चीजें शामिल होती गईं और भारतीय संस्कृति और संस्कार पीछे छूट गए। डॉ. जोशी ने कहा कि अगर आप किसी व्यक्ति से पूछें कि आप संस्कारी कहलाना पसंद करेंगे या शिक्षित कहलाना, तो अधिकांश विद्यार्थी स्वयं को संस्कारी कहलाना पसंद करेंगे। यही भारत की संस्कृति की ताकत है। विदेशों में भी लोग भारत को उसकी महान संस्कृति की वजह से जानते हैं। वर्तमान संस्कृति पर चिंता जाहिर करते हुए डॉ. जोशी ने कहा कि एक शेर है ‘जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं, भीड़ है कयामत की फिर भी हम अकेले हैं’। यही आज समाज की स्थिति है।

इस अवसर पर प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि भारत को समझने के लिए हमें स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद, बाबा साहेब आंबेडकर ने जो राह दिखाई है, उस पर चलना होगा। हमें उन सूत्रों की तलाश करनी होगी, जिनसे हिन्दुस्तान एक होता है। ‘सबसे पहले भारत’ ही हमारा संकल्प होना चाहिए।

कार्यक्रम का संचालन प्रो. शाश्वती गोस्वामी ने किया। आईआईएमसी ने देश के प्रख्यात विद्वानों से विद्यार्थियों का संवाद कराने के लिए ‘शुक्रवार संवाद’ नामक कार्यक्रम की शुरुआत की है। इस कार्यक्रम की अगली कड़ी में 18 दिसंबर, 2020 को भारत सरकार के सूचना आयुक्त श्री उदय माहुरकर ‘मीडिया एवं सूचना का अधिकार’ विषय पर विद्यार्थियों से रूबरू होंगे।

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