अहिंसा परम धर्म है, इसी सिद्धांत को लेकर देश की आजादी के बाद सो-कॉल्ड सेक्युलर नेता चले और उन्होंने हिंदू जनमानस को अहिंसा परमो धर्मा का उपदेश देते हुए भ्रमित किया। उन्होंने गीता के श्लोक का अगला अंश छुपाने का यथासंभव प्रयास किया। या यूं कहें कि उसे बताने से गुरेज किया। यह बात पूर्णता सत्य है कि अहिंसा परम धर्म है, लेकिन यह पूर्ण सत्य नहीं हो सकता।
अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च: l
(अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है और धर्म रक्षार्थ हिंसा भी उसी प्रकार श्रेष्ठ है)
अहिंसा का पालन करना धर्म जरूर है लेकिन अहिंसा को ही सर्वस्व मानना गलत होगा। ऐसा तब तक जरूरी है जब तक वह धर्म पथ पर चलने में बाधक ना बने, लेकिन हमारे सो कॉल्ड सेक्युलर नेताओं ने जनता को भ्रमित करते हुए इस अर्ध सत्य को पूर्ण सत्य बनाने का कुचक्र रचा।
उस काल में जनता में इन सो कॉल्ड सेकुलर नेताओं का अच्छा खासा प्रभाव था और वह सत्ता पर भी काबिल थे, इसलिए आम जनता के लिए उनकी बात को सुनने के सिवा कोई दूसरा विकल्प नहीं था। इसे इस प्रकार समझा जा सकता है, जैसे आजकल वर्तमान सत्ता जो कुछ कह रही है, वह आम आदमी सुन रहा है, समझ रहा है लेकिन कुछ कर नहीं सकता। उसके पास सुनने के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं है, मेरे कहने का आशय यह कतई नहीं लगाया जाए कि वर्तमान सत्ता कुछ गलत कर रही है। मैं सिर्फ इतना समझाने का प्रयास कर रहा हूं कि सत्ता में बहुत बल होता है, वह अपनी बात को आम जनता को मानने को बाध्य कर सकती हैं। भले ही वह बात सही हो या गलत।
ऐसा नहीं कि केवल इस विषय को लेकर आमजन को भ्रमित करने का प्रयास किया गया बल्कि आजादी के इतिहास को भी और वीरों के बलिदान को भी तोड़ने मरोड़ने का प्रयास किया गया। एक गीत प्रस्तुत किया गया—-दे दी हमें आजादी बिना खडक बिना ढाल— लेकिन यह सत्य नहीं है क्योंकि देश को आजादी सिर्फ अहिंसा वादी पुजारियों ने नहीं दिलाई है बल्कि मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने वाले वीरों ने भी या कहें स्वतंत्रता सेनानियों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लेकिन इस प्रकार के गीतों की रचना करके परोक्ष रूप से उन बलिदानों को नजरअंदाज करने का प्रयास किया गया। कुल मिलाकर कहें तो एक पूरी विचारधारा को भी नजरअंदाज कर दिया गया, स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गरम दल कहा जाता था। जिसने स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।चाहे नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जिक्र हो या फिर भगत सिंह,चंद्रशेखर या किसी अन्य क्रांतिकारी का।
जिन्होंने मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया। कुल मिलाकर कहें स्वतंत्रता संग्राम के बाद भारतीय जनमानस को अर्धसत्य से अवगत कराने का प्रयास किया गया। पूर्ण सत्य को काल के ऐसे खंड में दबाने का प्रयास किया गया, जहां तक आम जन शायद कभी पहुंच ना सके। इसी प्रोपेगेंडा के तहत गीता के आधे श्लोक को जनमानस तक पहुंचाने का प्रयास किया। श्लोक के पूर्ण सत्य को नजरअंदाज किया गया।
“अहिंसा परमो धर्मः” (यह पूर्ण नहीं हे )
जबकि पूर्ण श्लोक इस तरह से है। “अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च: l”
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(अर्थात् यदि अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है और धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उस से भी श्रेष्ठ है) |
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