छल से पतिव्रत धर्म भंग करने के कारण भगवान विष्णु को श्राप देते हुए तुलसी ने कहा था कि आपका हृदय पाषाण के समान है, इसलिए अब आप पाषाण रूप होकर पृथ्वी पर रहें।
भगवान विष्णु पतिव्रता तुलसी यानी वृंदा से श्राप से शालग्राम शिला बन गए। वृंदा भी तुलसी के रूप में परिवर्तित हो गई। शालग्राम जी पर से केवल शयन कराते समय तुलसी हटाकर बगल में रख दी जाती है, वैसे इसके अलावा वह तुलसी से अलग नहीं होते हैं। जो शालग्राम से तुलसी हटाता है, वह दूसरे जन्म में पत्नी विहीन होता है।
शालग्राम शिला में सदा ही चराचर प्राणियों समेत समस्त त्रिलोकी लीन रहती है। कार्तिक मास में जो शालग्राम शिला के दर्शन करता है, उसे मस्तक झुकाता है, स्नान कराता है और उसका पूजन करता है, वह कोटि यज्ञों के समान पुण्य तथा कोटि गोदानों का फल प्राप्त करता है।
भगवान महादेव जी अपने पुत्र कार्तिकेय से कहते हैं कि पुत्र जो पुरुष सदा भगवान विष्णु की शालग्राम शिला का चरणामृत पान करता है, उसे गर्भवास के भयंकर कष्ट मुक्ति मिल जाती है।
जो मनुष्य प्रतिदिन शालग्राम शिला का पूजन करता है, उसे न तो यमराज का भय होता है और न ही मरने और जन्म लेने का ही। भगवान स्वयं बताते हैं कि करोड़ों कमल पुष्पों से मेरी पूजा का जो फल होता है, वह शालग्राम शिला के पूजन से प्राप्त हो जाता है। जिन लोगों ने मृत्यु लोक में आकर कार्तिक मास में भी शालग्राम पूजन नहीं किया, वह मुझसे द्बेश करने वाले प्राणी है। उन्हें तब तक के लिए नरक में रहना पड़ता है, जब तक चौदह इंदों की आयु समाप्त सनहीं हो जाती है।
अत: भक्तिभाव से शालग्राम शिला को नमस्कार मात्र करने वाले प्राणी नरक में प्रवेश नहीं पा सकते हैं। अन्य सभी शुभ कर्मों के फल का तो माप है, परन्तु कार्तिक मास में शालग्राम पूजन करने से जो फल मिलता है, उसका कोई माप नहीं है। जो शालग्राम के जल से अपना अभिषेक कराता है, उसने मानो सम्पूर्ण तीर्थों का स्नान कर लिया। विशेष तौर पर कार्तिक मास में शालग्राम शिला के सम्मुख स्वस्तिक का चिह्न् बनाकर मनुष्य अपनी सात पीढ़ियों को पवित्र कर लेता है। जो नारी प्रतिदिन शालग्राम शिला रूप भगवान विष्णु को नमस्कार कर गृहस्थी का कार्य आरम्भ करती है। वह सात जन्मों तक विधवा नहीं होती है, इसलिए सुहागन के रूप में प्रतिष्ठित रहने के लिए यह पूजन बड़े ही महत्व का है।