भगवान श्रीकृष्ण के पाञ्चजन्य शंख की महिमा, चोरी हुआ या है बद्री धाम में

0
3621

भगवान श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार थे, भगवान श्री कृष्ण का शंखनाद करने वाला चित्र भी आपने अक्सर देखा ही होगा। जिस शंख का प्रयोग भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के के युद्ध के दौरान किया था, क्या आप उसके बारे में जानते हैं, यदि नहीं तो आज हम आपको उस शंख के बारे में बताने जा रहे हैं। उस शंख का क्या रहस्य रहा है? भगवान ने वह शंख किसको दिया था? इस बारे में आपसे चर्चा करने जा रहे हैं। भगवान कृष्ण के पास जो पाञ्चजन्य शंख था, उसकी ध्वनि कई किलोमीटर तक पहुंच जाती थी।
पाञ्चजन्य एक अत्यंत दुर्लभ शंख है। समुद्र मंथन के दौरान इस पाञ्चजन्य शंख की उत्पत्ति हुई थी। समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में से 6वां रत्न शंख था। अपने गुरु के पुत्र पुनरदत्त को एक बार एक दैत्य उठा ले गया। उसी गुरु पुत्र को लेने के लिए वे दैत्य नगरी गए। वहां उन्होंने देखा कि एक शंख में दैत्य सोया है। उन्होंने दैत्य को मारकर शंख को अपने पास रखा और फिर जब उन्हें पता चला कि उनका गुरु पुत्र तो यमपुरी चला गया है तो वे भी यमपुरी चले गए। वहां यमदूतों ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया तब उन्होंने शंख का नाद किया जिसके चलते यमलोक हिलने लगा।
फिर यमराज ने खुद आकर श्रीकृष्ण को उनके गुरु के पुत्र की आत्मा को लौटा दिया। भगवान श्रीकृष्ण बलराम और अपने गुरु पुत्र के साथ पुन: धरती पर लौट आए और उन्होंने गुरु पुत्र के साथ ही पाञ्चजन्य शंख को भी गुरु को समक्ष प्रस्तुत कर दिया। गुरु ने पाञ्चजन्य को पुन: श्रीकृष्ण को देते हुए कहा कि यह तुम्हारे लिए ही है। तब गुरु की आज्ञा से उन्होंने इस शंख का नाद कर पुराने युग की समाप्ति और नए युग का प्रारंभ किया।

पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं
धनञ्जय:।
पौण्ड्रं दध्मौ महाशंखं
भीमकर्मा वृकोदर:।।
महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण के पास जो पाञ्चजन्य शंख था। माना जाता हैं कि वह शंख अब भी कहीं मौजूद है। इस शंख के हरियाणा के करनाल में होने के बारे में बताया जाता रहा है।

Advertisment

यह करनाल से 15 किलोमीटर दूर पश्चिम में काछवा व बहलोलपुर गांव के समीप स्थित पराशर ऋषि के आश्रम में रखा था, जहां से यह चोरी हो गया। यहां हिन्दू धर्म से जुड़ी कई बेशकीमती वस्तुएं थीं। मान्यता यह भी है कि भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के बाद अपना पाञ्चजन्य शंख पराशर ऋषि के तीर्थ में रखा था। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि श्रीकृष्ण का यह शंख आदि बद्री में सुरक्षित रखा है। महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण अपने पाञ्चजन्य शंख से पांडव सेना में उत्साह का संचार ही नहीं करते थे, बल्कि इससे कौरवों की सेना में भय व्याप्त हो जाता था। इसकी ध्वनि सिंह गर्जना से भी कहीं ज्यादा भयानक थी। इस शंख को विजय व यश का प्रतीक माना जाता है।

इसमें 5 अंगुलियों की आकृति होती है। हालांकि पाञ्चजन्य शंख अब भी मिलते हैं, लेकिन वे सभी चमत्कारिक नहीं हैं। इन्हें घर को वास्तुदोषों से मुक्त रखने के लिए स्थापित किया जाता है। यह राहु और केतु के दुष्प्रभावों को भी कम करता है।

संतान गोपाल मंत्र के जप से पुत्र प्राप्ति की अभिलाषा पूर्ण करते है श्री कृष्ण

सनातन धर्म, जिसका न कोई आदि है और न ही अंत है, ऐसे मे वैदिक ज्ञान के अतुल्य भंडार को जन-जन पहुंचाने के लिए धन बल व जन बल की आवश्यकता होती है, चूंकि हम किसी प्रकार के कॉरपोरेट व सरकार के दबाव या सहयोग से मुक्त हैं, ऐसे में आवश्यक है कि आप सब के छोटे-छोटे सहयोग के जरिये हम इस साहसी व पुनीत कार्य को मूर्त रूप दे सकें। सनातन जन डॉट कॉम में आर्थिक सहयोग करके सनातन धर्म के प्रसार में सहयोग करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here