चंद्रमा की कृपा होती है तो रूप व यश सहजता से मिल जाता है, लेकिन चंद्रमा आपके प्रतिकूल होते हैं तो मनुष्य मात्र को मानसिक कष्ट और श्वास आदि सम्बन्धित रोग होते हैं। भोलेनाथ की पूजा से चंद्रमा की कृपा से सहजता से प्राप्त हो जाती है, भोलेनाथ भी चंद्रमा को आभूषण के रूप में अपनी जटाओं में धारण करते हैं। पूर्णिमा को चंद्रोदय के समय तांबे के बर्तन में मधु मिश्रित पकवान यदि चंद्रदेव को अर्पित किया जाता है तो इनकी तृप्ति होती है। इससे प्रसन्न हो कर चंद्रदेव जीव को सभी कष्टों से मुक्ति दिलाते हैं। इनकी तृप्ति से आदित्य, विश्वदेव, मरुदगण और वायु देव तृप्त होते हैं।
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चंद्र देव गौरवर्ण हैं। इनके वस्त्र, अश्व और रथ तीनों ही श्वेत हैं। वे सुंदर श्वेत रथ पर कमल के आसन पर विराजमान रहते है। इनके सिर पर स्वर्ण मुकुट और गले में मोतियों की माला शोभा पाती हैं। चंद्र देव के एक हाथ मे गदा और दूसरे हाथ में वरमुद्रा रहती है। मत्स्य पुराण में चंद्र के वाहन का उल्लेख मिलता है, जिसके अनुसार इनके रथ में तीन चक्र होते हैं। दस बलवान घोड़े जुते होते हैं। यह सभी घोड़े मन के समान वेग वाले होते है। ये घोड़े शंख के समान उज्जवल है और इन घोड़ोंं के कान और नेत्र भी श्वेत ही हैं।
चंद्र देव महर्षि अत्रि और अनसूया के पुत्र हैं। वे सोलह कलाओं से युक्त हैं। इन्हें अन्नमय, मनोमय,अमृतमय पुरुषस्वरू भगवान कहा जाता है। इन्हीं के वंश में भगवान विष्णु ने द्बापरयुग में भगवान श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया था। इसलिए भगवान कृष्ण चंद्रमा की भांति सोलह कलाओं से युक्त हैं। चंद्र देव ही सभी देवता, पितर, यक्ष, मनुष्य, भूत, पशु-पक्षी व वृक्ष इत्यादि के प्राणों का कप्यायन करते हैं।
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हरिवंशपुराण में इनके प्रसंगों का वर्णन है, सृष्टि का सृजन करने वाले परमपिता ब्रह्मा जी ने चंद्र देवता को बीज, औषधि, जल और ब्राह्मणों का राजा बना दिया था। इनका विवाह अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहणी आदि दक्ष की सत्ताईस कन्याएं हैं। ये सत्ताईस नक्षत्रों के रूप में जानी जाती हैं। महाभारत के वनपर्व में उल्लेख किया गया है कि चंद्र देव की सभी प‘ियां शील, सौदर्य व सतित्व से युक्त हैं। इस प्रकार नक्षत्रों के साथ चंद्र देवता परिक्रमा करते है और सभी प्राणियों का भरण पोषण करने के साथ ही पर्व, संधियों और विभिन्न मासों का विभाग किया करते हैं। इनके पुत्र का नाम बुध है। जो तारा से उत्पन्न हुए हैं। चंद्रमा के अधिदेवता अप् और प्रत्यधिदेवता उमा देवी हैं। इनकी महादशा दस वर्ष की होती है। ये कर्क राशि के स्वामी हैं। इन्हें नक्षत्रों का स्वामी कहा जाता है और नवग्रहों में इन्हें दूसरा स्थान प्राप्त है।
चंद्र देव की शांति व प्रसन्नता के लिए क्या करें
सोमवार का व्रत करने व शिव की उपासना से चंद्र देवता प्रसन्न होते हैं। शांति के लिए मोती धारण करना चाहिए। चावल, कपूर, सफेद वस्त्र, चांदी, शंख,द वंशपात्र, सफेद चंदन, श्वेत पुष्प, चीनी, बैल, दही और माती ब्राह्मण को दान करने से चंद्र देव प्रसन्न होते हैं।
चंद्र देव की उपासना के वैदिक मंत्र
ॐ इमं देवा असपत्नं ग्वं सुवध्यं।
महते क्षत्राय महते ज्यैश्ठाय महते जानराज्यायेन्दस्येन्द्रियाय इमममुध्य पुत्रममुध्यै
पुत्रमस्यै विश वोsमी राज: सोमोsस्माकं ब्राह्माणाना ग्वं राजा।
चंद्र देव की उपासना का पौराणिक मंत्र
दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव सम्भवम ।
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणं ।।
बीज मंत्र
ऊॅँ श्रां श्रीं श्रौं स: चंद्राय नम:
सामान्य मंत्र
ऊॅँ सों सोमाय नम:
इनमें से किसी भी मंत्र का श्रद्धापूर्वक जप करने से मनोरथ सिद्ध होते हैं और इन्हें निश्चित संख्या में जप करना चाहिए। जप की कुल संख्या 11००० और समय संध्याकाल है।
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