इस मंत्र के जप से प्रसन्न होते हैं बुध देव, जानिए बुध देव की महिमा

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भगवान विष्णु के पूजन से बुध देव बहुत सहजता से प्रसन्न हो जाते हैं। बुधवार के व्रत के विधान से भी देव प्रसन्न होते हैं। बुध ग्रह के अधिदेवता और प्रत्यधिदेवता भगवान विष्णु हैं। बुध मिथुन व कन्या राशि के स्वामी हैं। इनकी महादशा सत्रह वर्ष की होती है। बुध देव को पीला रंग बहुत ही प्रिय है। बुध देव पीले रंग की पुष्पमाला और पीले वस्त्र धारण करते हैं। उनके शरीर की कांति कनेर के पुष्प के सरीखी है। वे अपने चारों हाथों में क्रमश: तलवार, ढाल, गदा और वरमुद्रा धारण करते हैं। उनके सिर पर सोने का मुकुट व सुंदर माला शोभा पाती है। इनका वाहन सिंह है।

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मत्स्यपुराण बुध देव का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि बुध ग्रह का वर्ण कनेर के पुष्प की तरह पीला है। उनका रथ श्वेत और प्रकाश से दीप्त है। इसमें वायु के समान वेग वाले घोड़े जुते हैं। उनके नाम श्वेत, पिसंग, सारंग, नील, पीत, विलोहित, कृष्ण, हरित, पृष और पृष्णि हैं।
अथर्व वेद में बुध के पिता का चंद्रमा और माता का नाम तारा बताया गया है। ब्रह्मा जी ने इनका नामकरण किया है और यह बहुत ही गंभीर बुद्धि के स्वामी हैं। मत्स्यपुराण के अनुसार इनको सर्वाधिक योग्य देखकर परमपिता ब्रह्मा जी ने इन्हें भूतल का स्वामी और ग्रह बना दिया। इनकी विद्या-बुद्धि से प्रभावित होकर महाराज मनु ने अपनी पुत्री इला का विवाह इनके साथ कर दिया था। इला और बुध के संयोग ने महाराज पुरूरवा की उत्पत्ति हुई और चंद्रवंश का विस्तार होता चला गया।


बुध ग्रह की शांति के लिए क्या करें
बुध ग्रह की शांति के लिए हर अमावस्या को व्रत रखना चाहिए। कल्याण के लिए पन्ना रत्न धारण करना चाहिए। ब्राह्मणों को हाथी दांत , हरा वस्त्र, मूंगा, पन्ना, सुवर्ण, कपूर, शस्त्र, फल, षट्रस भोजन व घी का दान करना चाहिए। इससे बुध देव प्रसन्न होते हैं। नवग्रह में इनकी पूजा ईशान कोण में की जाती है। इनका प्रतीक वाण है और रंग हरा है।

बुध देव को शांत करने का वैदिक मंत्र
ऊँ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रतिजागृहि त्वमिष्टापूर्ते स सृजेथामयं च ।
अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन्विश्वे देवा यजमानश्च सीदत ।।

बुध देव को शांत करने का पौराणिक मंत्र
प्रियंगुकलिकाश्यामं रुपेणाप्रतिमं बुधम ।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम ।।

बीज मंत्र
ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:

सामान्य मंत्र
ऊँ बुं बुधाय नम:

इनमें से किसी भी मंत्र का प्रतिदिन निश्चित संख्या में जप करना चाहिए। जप की संख्या 9००० और समय पांच घड़ी दिन है। विश्ोष परिस्थितियों ब्राह्मणों का सहयोग प्राप्त करना चाहिए।

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