अब रिश्ते बदलने लगे हैं,
थोड़े-थोड़े से बिखरने लगे हैं,
पहले का हंसना-हंसाना, रुठना-मनाना,
झुंझलाहट में बदलने लगे हैं,
पहले के खुलेपन को,
आवरण से ढकने लगे हैं।
जीवन की सच्चाई के आईने में,
ढेर सारे अक्स दिखने लगे हैं,
अब रिश्ते बदलने लगे हैं।
सब के सब संकोच में में सिमटने लगे हैं,
कोशिश की थी, जिन रंगों को,
कैनवस पर बिखेरने की,
वो भी अब स्याह धब्बा बन कर उड़ने लगे हैं,
अब रिश्ते बदलने लगे हैं।
डॉ. ऋतु नागर
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