जाने मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की महिमा
भगवान शिव के चरणों में स्थिर भक्ति प्राप्त करने के लिए मल्लिकार्जुन महादेव का दर्शन-पूजन करना चाहिए। इनकी महिमा का बखान धर्म शास्त्रों में विस्तार से किया गया है। यह ज्योतिर्लिंग आंन्ध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्री श्ौल पर्वत पर स्थित है। इस पर्वत का दक्षिण का कैलाश भी माना जाता है। मल्लिकार्जुन शिवालय और तीर्थ क्ष्ोत्र की महिमा का वर्णन पुराणों में किया गया है। यहां दर्शन-पूजन व अर्चन से भक्तों की सभी सात्विक मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। भक्त भगवान शिव की कृपा से दैहिक, दैविक, भौतिक सभी बाधाओं से मुक्त हो जाता है।
भगवान शिव की कृपा से स्थिर भक्ति मिलती है और जीव मोक्ष की परमगति को प्राप्त करता है। शिवपुराण, पद्मपुराण व महाभारत आदि वैदिक ग्रंथों में भगवान मल्लिकार्जुन की महिमा का वर्णन किया गया। इनकी महिमा अतुल्य बतायी गई है। ज्योतिर्लिंग की कथा है, कथा के अनुसार एक समय की बात है कि भगवान शंकर के दोनों पुत्र कार्तिकेय और गण्ोश आपस में झगड़ने लगे। दोनों इस बात अड़े थ्ो कि पहले उनका विवाह हो। उनका झगड़ा देखकर भगवान शंकर और माता पार्वती ने कहा कि उनमें से जो पृथ्वी की परिक्रमा करने पहले लौटेगा, पहले उसी का विवाह किया जाएगा। उनकी बात सुनकर भगवान कार्त्तिकेय पृथ्वी की प्रदक्षिणा के लिए अपने वाहन मोर पर तुरंत ही निकल गए लेकिन गण्ोश जी के लिए यह कार्य बेहद दुष्कर था, उनका वाहन मूषक था। तब भगवान गण्ोश ने तीक्ष्ण बुद्धि का प्रयोग कर निष्कर्ष निकाला और उन्होंने पृथ्वी की परिक्रमा का सुगम मार्ग खोज लिया।
उन्होंने वहां भगवान शंकर और माता पार्वती यानी अपने पिता और माता का पहले तो पूजन किया और फिर उनकी सात प्रदक्षिणएं करके उन्होंने पृथ्वी की प्रदक्षिणा का कार्य पूरा कर लिया। उनका यह कार्य शास्त्रों के अनुसार अनुमोदित भी था।
पित्रोश्च पूजनं कृत्वा प्र्रक्रान्तिं चं करोति य:।
तस्य वै पृथिवी जन्यं फलं भवति निश्चितम्।
इधर भगवान कार्त्तिकेय ने पूरी पृथ्वी की परिक्रमा की और वापस लौटे लेकिन तब तक भगवान गण्ोश का विवाह ऋद्धि व सिद्धि नाम की कन्याओं से हो चुका था और उन्हें क्ष्ोम और लाभ नाम के दो पुत्र भी हो चुके थ्ो। यह सब देखकर भगवान कार्त्तिकेय बेहद क्रुद्ध हो गए और तत्काल क्रौंच पर्वत पर चले गए।
इस पर माता पार्वती उन्हें मनाने के लिए वहां पहुंची तो भगवान शंकर भी वहां पहुंच गए और ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए। चूंकि इनका सबसे पहले पूजन मल्लिका के फूलों से किया गया था, इसलिए इसका नाम मल्लिकार्जुन पड़ा।
वहीं एक अन्य कथा भी प्रचलित है, जिसके अनुसार इस श्ौल पर्वत के निकट एक समय में राजा चंद्रगुप्त का राज था। राजा चंद्र गुप्त की कन्या किसी विपत्ति के चलते महल से निकल कर यहां पर्वत पर यहां के गोपों के साथ रहने लगी। उस कन्या के पास एक श्यामा गौ थी। इस गौ का दूध रात में कोई चोरी करके दुह ले जाता था। एक दिन की बात है कि राजकुमारी ने किसी को गौ का दूध दुहते देख लिया और चोर को पकड़ने के लिए दौड़ी लेकिन गौ पास पहुंचकर देखती है कि वहां पर शिवलिंग के अलावा अन्य कुछ भी नहीं है, तब राजकुमारी ने इस शिवलिंग पर एक विशाल मंदिर का निर्माण कराया।