नई शिक्षा नीति: 34 साल लागू हुई नई शिक्षा नीति, मानव संसाधन मंत्रालय फिर कहलाएगा शिक्षा मंत्रालय,एमफिल बंद

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उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए होगा एक ही नियामक 

– फीस को भी किया जाएगा नियंत्रित 
-स्कूली शिक्षा में 10+2 खत्म, 5+3+3+4 -+की नई व्यवस्था होगी लागू 
नई दिल्ली। भारत विश्व की दूसरी सबसे बड़ी शिक्षा प्रणाली है, जिसमें 1028 विश्वविद्यालय, 45,000 स्टैंडअलोन कॉलेज, 33 करोड़ छात्र, 14,00,000 स्कूल हैं।  देश की शिक्षा व्यवस्था में अब आमूलचूल परिवर्तन के लिए केंद्र सरकार ने बुधवार को बहुप्रतीक्षित नई शिक्षा नीति (एनईपी) को मंजूरी दे दी। एनईपी सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के 2014 के चुनाव घोषणापत्र का हिस्सा रही थी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को मंजूरी दे दी। बैठक के बाद केंद्रीय मानव संसाधन  विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ और केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने नई शिक्षा नीति के संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुए कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) को मंजूरी दे दी गई है। इसमें मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि सभी उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए एक ही नियामक होगा और  एमफिल को बंद कर दिया जाएगा।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम शुरुआत से ही शिक्षा मंत्रालय ही था लेकिन 1985 में इसे बदलकर मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय कर दिया गया था। वहीं 34 साल बाद देश की  शिक्षा नीति को वर्तमान से जोड़ा गया है। मौजूदा शिक्षा नीति को 1986 में तैयार किया गया और 1992 में संशोधित किया गया था। एनपीई 1986 के कार्यान्वयन के पश्चात तीन दशक से अधिक का समय बीत चुका है। नई शिक्षा नीति से स्कूल और उच्च शिक्षा दोनों क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर परिवर्तनकारी सुधार होंगे। यह 21 वीं सदी की पहली शिक्षा नीति है और शिक्षा पर 34 साल पुरानी राष्ट्रीय नीति, 1986 की जगह लेगी।
यह घोषणा करते हुए शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत 5 वर्षीय कोर्स के बाद अब एमफिल जरूरी नहीं होगा। सभी उच्च शिक्षा संस्थानों, कानूनी और मेडिकल कॉलेजों को छोड़कर सभी एकल नियामक द्वारा संचालित होंगे। नई शिक्षा नीति में देश के निजी और सार्वजनिक उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए एक समान मानदंड होंगे। कक्षा 5 तक शिक्षा का माध्यम घरेलू भाषा, मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा होगी। कक्षा 6 के बाद से ही वोकेशनल को जोड़ जाएगा। सरकार की नई शिक्षा नीति के अनुसार विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश के लिए एक ही प्रवेश परीक्षा होगी। बोर्ड एग्जाम दो हिस्सों में होगा।
निशंक ने नई शिक्षा नीति को न्यू इंडिया के निर्माण में मील का पत्थर बताते हुए कहा कि नई शिक्षा नीति के लिए जनवरी 2015 में परामर्श की प्रक्रिया शुरू हुई थी । इसमें लगभग 2.5 लाख ग्राम पंचायतों, 6600 ब्लॉक, 6000 शहरी स्थानीय निकायों, 676 जिलों और 36 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में जनप्रतिनिधियों सहित शिक्षा क्षेत्र से जुड़े तमाम लोगों से सुझाव लिए गए।
केंद्रीय सचिव (उच्च शिक्षा) अमित खरे ने कहा कि भारत का लक्ष्य 2035 तक 50 प्रतिशत सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) प्राप्त करना है। नई नीति एक व्यापक नियामक ढांचे के तहत फीस संरचना को भी नियंत्रित करती है।
इस अवसर पर स्कूल शिक्षा सचिव अनीता करवाल ने कहा कि बच्चों के रिपोर्ट कार्ड में लाइफ स्किल्स को जोड़ा जाएगा। स्कूली शिक्षा के निकलने के बाद हर बच्चे के पास कम से कम एक लाइफ स्किल होगी।
ऐसे बनी नही शिक्षा नीति
नई शिक्षा नीति तैयार करने के लिए समिति – 31 अक्‍टूबर, 2015 को सरकार ने टी.एस.आर. सुब्रहमण्‍यन, भारत सरकार के पूर्व मंत्रिमंडल सचिव, की अध्‍यक्षता में 5-सदस्‍यीय समिति गठित की जिसने अपनी रिपोर्ट 27 मई, 2016 को प्रस्‍तुत की थी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का पारूप तैयार करने के लिए समिति – 24 जून, 2017 को, सरकार ने प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ. के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में 9 सदस्यीय समिति का गठन किया। समिति ने 31 मई, 2019 को अपनी रिपोर्ट मंत्रालय को सौंप दी। इस प्रकार, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को तैयार करने से पहले मंत्रालय द्वारा प्रारूप एनईपी 2019 एवं उस पर प्राप्त सुझावों, विचारों और प्रतिक्रियाओं का गहन और व्यापक परीक्षण किया गया। केन्द्र सरकार का कहना है कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उद्देश्य 21वीं सदी की जरूरतों के अनुकूल स्कूल और कॉलेज की शिक्षा को अधिक समग्र, लचीला बनाते हुए भारत को एक ज्ञान आधारित जीवंत समाज और ज्ञान की वैश्विक महाशक्ति में बदलना है।

नई शिक्षा नीति के पहलु 

एनईपी 2020 स्कूली शिक्षा के सभी स्तरों प्री-स्कूल से माध्यमिक स्तर तक सबके लिए एकसमान पहुंच सुनिश्चित करने पर जोर देती है। स्कूल छोड़ चुके बच्चों को फिर से मुख्य धारा में शामिल करने के लिए स्कूल के बुनियादी ढांचे का विकास और नवीन शिक्षा केंद्रों की स्थापनी की जाएगी। कक्षा 3, 5 और 8 के लिए एनआईओएस और राज्य ओपन स्कूलों के माध्यम से ओपन लर्निंग, कक्षा 10 और 12 के समकक्ष माध्यमिक शिक्षा कार्यक्रम, व्यावसायिक पाठ्यक्रम, वयस्क साक्षरता और जीवन-संवर्धन कार्यक्रम जैसे कुछ प्रस्तावित उपाय हैं।
एनईपी 2020 के तहत स्कूल से दूर रह रहे लगभग 2 करोड़ बच्चों को मुख्य धारा में वापस लाया जाएगा। बचपन की देखभाल और शिक्षा पर जोर देते स्कूल पाठ्यक्रम के 10 + 2 ढांचे की जगह 5 + 3 + 3 + 4 का नया पाठयक्रम संरचना लागू किया जाएगा जो क्रमशः 3-8, 8-11, 11-14, और 14-18 उम्र के बच्चों के लिए है। इसमें अब तक दूर रखे गए 3-6 साल के बच्चों को स्कूली पाठ्यक्रम के तहत लाने का प्रावधान है, जिसे विश्व स्तर पर बच्चे के मानसिक विकास के लिए महत्वपूर्ण चरण के रूप में मान्यता दी गई है।
नई प्रणाली में तीन साल की आंगनवाड़ी व प्री स्कूलिंग के साथ 12 साल की स्कूली शिक्षा होगी। एनसीईआरटी 8 ​​वर्ष की आयु तक के बच्चों के लिए प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा (एनसीपीएफईसीसीई) के लिए एक राष्ट्रीय पाठ्यक्रम और शैक्षणिक ढांचा विकसित करेगा। एक विस्तृत और मजबूत संस्थान प्रणाली के माध्यम से प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा (ईसीसीई) मुहैया कराई जाएगी। इसमें आंगनवाडी और प्री-स्कूल भी शामिल होंगे जिसमें इसीसीई शिक्षाशास्त्र और पाठ्यक्रम में प्रशिक्षित शिक्षक और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता होंगे।
 ‘बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान पर एक राष्ट्रीय मिशन’ की स्थापना किए जाने पर विशेष जोर दिया गया है। स्कूल के पाठ्यक्रम और अध्यापन-कला का लक्ष्‍य यह होगा कि 21वीं सदी के प्रमुख कौशल या व्‍यावहारिक जानकारियों से विद्यार्थियों को लैस करके उनका समग्र विकास किया जाए और आवश्यक ज्ञान प्राप्ति एवं अपरिहार्य चिंतन को बढ़ाने व अनुभवात्मक शिक्षण पर अधिक फोकस करने के लिए पाठ्यक्रम को कम किया जाए। विद्यार्थियों को पसंदीदा विषय चुनने के लिए कई विकल्‍प दिए जाएंगे।
 स्कूलों में छठे ग्रेड से ही व्यावसायिक शिक्षा शुरू हो जाएगी और इसमें इंटर्नशिप शामिल होगी। एक नई एवं व्यापक स्कूली शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा ‘एनसीएफएसई 2020-21’ एनसीईआरटी द्वारा विकसित की जाएगी।
 नीति में कम से कम ग्रेड 5 तक, अच्‍छा हो कि ग्रेड 8 तक और उससे आगे भी मातृभाषा, स्थानीय भाषा अथवा क्षेत्रीय भाषा को ही शिक्षा का माध्यम रखने पर विशेष जोर दिया गया है। त्रि-भाषा फॉर्मूले में भी यह विकल्‍प शामिल होगा। किसी भी विद्यार्थी पर कोई भी भाषा नहीं थोपी जाएगी। 6-8 ग्रेड के दौरान किसी समय ‘भारत की भाषाओं’ पर एक आनंददायक परियोजना व गतिविधि में भाग लेना होगा। कई विदेशी भाषाओं को भी माध्यमिक शिक्षा स्तर पर एक विकल्‍प के रूप में चुना जा सकेगा।
 ‘एनईपी 2020’ में योगात्मक आकलन के बजाय नियमित एवं रचनात्‍मक आकलन को अपनाने की परिकल्पना की गई है। सभी विद्यार्थी ग्रेड 3, 5 और 8 में स्कूली परीक्षाएं देंगे। ग्रेड 10 एवं 12 के लिए बोर्ड परीक्षाएं जारी रखी जाएंगी, लेकिन समग्र विकास करने के लक्ष्‍य को ध्‍यान में रखते हुए इन्‍हें नया स्वरूप दिया जाएगा। एक नया राष्ट्रीय आकलन केंद्र ‘परख (समग्र विकास के लिए कार्य-प्रदर्शन आकलन, समीक्षा और ज्ञान का विश्लेषण) एक मानक-निर्धारक निकाय के रूप में स्थापित किया जाएगा।
 एनईपी 2020 का लक्ष्य व्यवसायिक शिक्षा सहित उच्चतर शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात को 26.3 प्रतिशत (2018) से बढ़ाकर 2035 तक 50 प्रतिशत करना है। उच्चतर शिक्षा संस्थानों में 3.5 करोड़ नई सीटें जोड़ी जाएंगी। स्नातक शिक्षा इस अवधि के भीतर विविध एक्जिट विकल्पों तथा उपयुक्त प्रमाणन के साथ 3 या 4 वर्ष की हो सकती है। उदाहरण के लिए, 1 वर्ष के बाद सर्टिफिकेट, 2 वर्षों के बाद एडवांस डिप्लोमा, 3 वर्षों के बाद स्नातक की डिग्री तथा 4 वर्षों के बाद शोध के साथ स्नातक।
 देश में वैश्विक मानकों के सर्वश्रेष्ठ बहुविषयक शिक्षा के माडलों के रूप में आईआईटी, आईआईएम के समकक्ष बहुविषयक शिक्षा एवं अनुसंधान विश्वविद्यालय (एमईआरयू)स्थापित किए जाएंगे पूरी उच्च शिक्षा में एक मजबूत अनुसंधान संस्कृति तथा अनुसंधान क्षमता को बढ़ावा देने के लिए एक शीर्ष निकाय के रूप में राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन का सृजन किया जाएगा। चिकित्सा एवं कानूनी शिक्षा को छोड़कर समस्त उच्च शिक्षा के लिए एक एकल अति महत्वपूर्ण व्यापक निकाय के रूप में भारत उच्च शिक्षा आयोग (एचईसीआई) का गठन किया जाएगा।
 महाविद्यालयों की संबद्धता 15 वर्षों में चरणबद्ध तरीके से समाप्त हो जाएगी तथा महाविद्यालयों को क्रमिक स्वायत्ता प्रदान करने के लिए एक राज्य वार तंत्र की स्थापना की जाएगी। ऐसी परिकल्पना की जाती है कि कुछ समय के बाद प्रत्येक महाविद्यालय या तो एक स्वायत्तशासी डिग्री प्रदान करने वाले महाविद्यालय में विकसित हो जाएंगे या किसी विश्वविद्यालय के संघटक महाविद्यालय बन जाएंगे।
एनसीईआरटी के परामर्श से, एनसीटीई के द्वारा अध्यापक शिक्षण के लिए एक नया और व्यापक राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढांचा, एनसीएफटीई 2021 तैयार किया जाएगा। वर्ष 2030 तक, शिक्षण कार्य करने के लिए कम से कम योग्यता 4 वर्षीय इंटीग्रेटेड बीएड डिग्री हो जाएगी। गुणवत्ताविहीन स्वचालित अध्यापक शिक्षण संस्थान (टीईओ) के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। सभी भारतीय भाषाओं के लिए संरक्षण, विकास और जीवंतता सुनिश्चित करने के लिए, एनईपी द्वारा पाली, फारसी और प्राकृत भाषाओं के लिए एक इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रांसलेशन एंड इंटरप्रिटेशन (आईआईटीआई), राष्ट्रीय संस्थान (या संस्थान) की स्थापना करने, उच्च शिक्षण संस्थानों में संस्कृत और सभी भाषा विभागों को मजबूत करने और ज्यादा से ज्यादा उच्च शिक्षण संस्थानों के कार्यक्रमों में, शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा, स्थानीय भाषा का उपयोग करने की सिफारिश की गई है।

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