चरकसंहिता में निरोगी रहने के सूत्र बताएं गए हैं, जिन्हे जानना कल्याणकारी है ।
नरो हिताहारविहारसेवी समीक्ष्यकारी विषयेष्वसक्तः ।
दाता समः सत्यपर : क्षमावानाप्तोपसेवी च भवत्यरोगः ॥
मतिर्वचः कर्म सुखानुबन्धं सत्त्वं विधेयं विशदा च बुद्धिः ।
ज्ञानं तपस्तत्परता च योगे यस्यास्ति तं नानुपतन्ति रोगाः ।।
हितकारी आहार और विहार का सेवन करनेवाला , विचारपूर्वक काम करनेवाला, काम – क्रोधादि विषयोंमें आसक्त न रहनेवाला , सभी प्राणियोंपर समदृष्टि रखने वाला , सत्य बोलनेमें तत्पर रहनेवाला , सहनशील और आप्तपुरुषों की सेवा करने वाला मनुष्य अरोग ( रोगरहित ) रहता है । सुख देने वाली मति , सुखकारक वचन और सुखकारक कर्म , अपने अधीन मन तथा शुद्ध पापरहित बुद्धि जिसके पास है और जो ज्ञान प्राप्त करने , तपस्या करने और योग सिद्ध करने में तत्पर रहता है , उसे शारीरिक और मानसिक कोई भी रोग नहीं होते है । वह सदा स्वस्थ और दीर्घायु बना रहता है ।