श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के पूजन से मिलता है समस्त पापों से छुटकारा

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धर्म शास्त्रों में नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा का विस्तृत रूप से वर्णन मिलता है। शास्त्रों के अनुसार जो भी मनुष्य श्रद्धा व विश्वास के साथ इस पावन ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति की कथा और माहात्म की कथा का सुनता है, उसके सभी पाप धुल जाते है और भूलोक पर सभी सुखों का भोग करता हुए अंतत: पावन शिवलोक को प्राप्त करता है। भगवान भोलेनाथ के आदेश से ही इस ज्योतिर्लिंग का नाम नागेश्वर रखा गया है।

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भगवान भूतभावन का स्वरूप यह ज्योतिर्लिंग गुजरात के द्बारकापुरी से करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित है। पुराणों में इस ज्योतिर्लिंग को लेकर पावन कथा का वर्णन है। कथा के अनुसार एक समय एक सदाचारी व धर्म का पालन करने वाला वैश्य सुप्रिय था। वह शिव का परम भक्त था। अपने सभी कार्य वह भगवान शिव को अर्पित कर देता था। वह वैश्य मन, कर्म, वचन से भगवान शिव में लीन रहता था। उनकी अर्चना-पूजा नियमित करता था। उन्हीं में तल्लीन रहता था। उसकी शिव भक्ति से दारुक नाम का एक राक्षस बहुत नाराज रहता था। उसे शिव भक्ति बिल्कुल भी नहीं भाती थी। उसका प्रयास होता था कि वह सुप्रिय की पूजा में विघ्न डाले। एक बार सुप्रिय नौका में सवार होकर कहीं जा रहे थ्ो। मौका पाकर असुर दारुक ने उन पर आक्रमण कर दिया। उसने नौका पर सवार पर सभी सवारियों का अपहरण कर अपने राज्य में बंदी बना लिया।

सुप्रिय भी कैद में नित्य नियम के अनुसार शिव पूजन करते रहे। इतना ही वह अन्य बंदियों को शिव पूजा के लिए प्रेरित करने लगे। असुर दारुक ने जब यह सुना तो वह क्रुद्ध हो गया और बंदीगृह में पहुंचा। सुप्रिय उस समय भगवान शिव की अराधना में ध्यान मग्न थ्ो। उस राक्षस ने सुप्रिय की यह मुद्रा देखते हुए डांटते हुए कहा कि दुष्ट वैश्य, तू आंख्ो बंद करके इस समय कौन से उपद्रव और षड्यंत्र की बात सोच रहा है। इस पर भी वैश्य की समाधि भंग नहीं हुई। इस पर असुर आग बबूला हो उठा और अनुचरों को तुरंत ही वैश्य समेत सभी बंदियों को मार डालने का आदेश दिया।

वैश्य सुप्रिय असुर के आदेश से थोड़ा भी विचलित नहीं हुआ। वह एकनिष्ठ और एकाग्र होकर स्वयं व अन्य बंदियों की रक्षा के लिए भगवान शिव से पुकार करने लगा। उसे विश्वास था कि भगवान भोलेनाथ भूतभावन उनकी रक्षा जरूर करेंगे। उसकी प्रार्थना सुनकर भगवान शंकर उसी क्षण उस कारागार में एक ऊंचे स्थान में एक चमकते हुए सिंहासन पर स्थित होकर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए। उन्होंने प्रकार दर्शन देकर अपना पाशुपत अस्त्र भी वैश्य को प्रदान किया। उस अस्त्र से असुर दारुक व उसके सहयोगियों का वध करके सुप्रिय वैश्य शिवधाम को चला गया। तत्पश्चात भूतभावन भगवान शंकर के आदेश से इस ज्योतिर्लिंग का नाम नागेश्वर रखा गया

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