घृष्ण्ोश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन से लोक और परलोक दोनों के लिए अमोघ फल प्राप्त होते हैं। इनकी महिमा का वर्णन पुराणों में विस्तार से किया गया है। द्बादश ज्योतिर्लिंगों में ये अंतिम ज्योतिर्लिंग हैं। पुराणों में इस पावन ज्योतिर्लिंग के अवस्थित होने को लेकर कथा बतायी गई है। जिसके अनुसार दक्षिण देश में देवगिरि पर्वत के निकट सुधर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वह तपोनिष्ठ और तेजस्वी था। उसकी पत्नी का नाम सुदेहा था। दोनों में परस्पर पे्रम का भाव था। उन्हें जीवन में कोई कष्ट भी नहीं था, अपितु संतान का अभाव उन्हें हमेशा खटकता था।
ज्योतिष गणना से उन्हें पता चला कि सुदेहा के गर्भ से संतान उत्पन्न नहीं हो सकती है। इससे सुदेहा बहुत दुखी हुई, क्योंकि वह संतान पाने को इच्छुक थी, इसलिए सुदेहा ने अपनी बहन का विवाह सुधर्मा से करवा दिया। पहले तो सुधर्मा को यह बात नहीं ठीक लगी लेकिन अंत में उसे पत्नी की जिद के आगे झुकना पड़ा। वे उसका आग्रह नहीं टाल सके। वे अपनी पत्नी की छोटी बहन घुश्मा से विवाह कर उसे घर ले आए। घुष्मा बेहद विनीत व सदाचारिणी स्त्री थी। वह भगवान शिव की अनन्य भक्त थी। हर दिन वह एक सौ एक पार्थिव शिवलिंग बनाकर हृदय की सच्ची निष्ठा से पूजन करती थी। भगवान शिव की कृपा से थोड़े दिन बाद वह गर्भवती हुई और पुत्र को जन्म दिया।
बालक के जन्म से सुदेहा व घुश्मा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। दोनों के दिन बहुत अच्छी तरह से बीत रहे थ्ो लेकिन एक सुदेहा के मन में एक कुविचार ने जन्म ले लिया। वह सोचने लगी कि मेरा तो इस घर में कुछ भी नहीं है, जो है वह घुश्मा का है। उसके पति पर घुश्मा ेअधिकार जमा लिया है। बस यहीं कुविचार उसके मन में बढ़ने लगा और ईश्याã का रूप ले लिया। इधर घुश्मा का वह बालक भी बड़ा हो रहा था। धीरे-धीरे वह जवान भी हो गया। उसका विवाह भी हो गया।
इधर सदेहा के मन का कुविचार का अंकुर वृक्ष बन चुका था। इसी कुविचार के चलते उसने घुश्मा के युवा पुत्र को एक दिन सोते समय मार डाला। उसने शव को लेकर उसी स्थान पर फेंक दिया, जहां घुश्मा पार्थिव शिवलिंगों को प्रतिदिन डाला करती थी। सुबह होते ही सबको इस बात का पता चला तो पूरे घर में कोहराम मच गया। सुधर्मा व उसकी पुत्रवधु दोनों विलाप करने लगे, लेकिन घुश्मा रोज की तरह शिव की अराधना में लीन रही। पूजा समाप्त होने के बाद वह पार्थिव शिवलिंगों को तालाब में छोड़ने के लिए चली गई। जब वह तालाब में पार्थिव शिवलिंगों को डालकर वापस लौटने लगी तो उसी समय उसका पुत्र तालाब से निकल कर बाहर आता दिखाई दिया और हमेशा की तरह घुश्मा के चरणों में गिर गया। मानों कही आसपास से घुमकर वापस मां के पास आया हो। इसी समय भगवान शिव भी वहां प्रकट हुए और घुश्मा से वर मांगने को कहा। वह सुदेहा के कुकृत्य से क्रुद्ध थ्ो। वह अपने त्रिशूल से सुदेहा का गला काटने को उद्यत दिखाई दे रहे थ्ो। तब घुश्मा से हाथ जोड़कर भगवान शिव से कहा कि हे भगवन, यदि आप मुझ पर प्रसन्न है, तो मेरी इस बहन को क्षमा प्रदान करें। निश्चित ही उसने जघन्य पाप किया है लेकिन आपकी दया मात्र से मुझे मेरा पुत्र मिल गया है। अत: आप मेरी बहन को क्षमा करे और लोककल्याण के लिए इस स्थान पर सदा-सर्वदा के लिए निवास करें।
भगवान शिव शंकर ने उसकी दोनों बातें मान ली और वहां ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गए और निवास करने लगे। सती शिवभक्त घुश्मा के आराध्य होने के कारण इस ज्योतिर्लिंग को घुश्मेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। इस ज्योतिर्लिंग को घुश्मेश्वर, घुसृण्ोश्वर या घृष्ण्ोश्वर के नाम से भी जाना जाता है। यह पावन ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के दौलताबाद से करीब बीस किलोमीटर दूर वेरुलगांव के पास अवस्थित है।