वास्तव में तो जीवन तो क्षणभंगुर है, लेकिन माया के प्रभाव में जब तक जीव रहता है, तब तक वह मृत्यु को भूलकर इस जीवन को ही सत्य समझता है। यह माया का प्रभाव ही है, इस माया के प्रभाव से वहीं जीव मुक्त होता है, जिसे ईश्वरीय कृपा प्राप्त होती है और वह ब्रह्म व जीव के महत्व को समझता है। करोड़ों जन्मों के जप-तप और ईश्वरीय कृपा प्राप्त होती है। वैसे तो अमरत्व की चाह हर प्राणी को होती है, लेकिन हर व्यक्ति को चिरंजीवी नहीं होता है। गिने-चुने जीव है, जिन्हें चिरंजीवी होने का वर प्राप्त हुआ है और वे ईश्वरीयरीय कृपा से अमरत्व को प्राप्त कर सके हैं। ऐसे आठ महात्माओं का वर्णन हमारे धर्म शास्त्रों में मिलता है। यह है- अश्वथामा, दैत्यराज बलि, वेद व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम व मारकंडेय ऋषि। इन आठों दिव्यात्माओं के के सुबह स्मरण मात्र से मनुष्य निरोगी रहता है और उसकी बीमारियां समाप्त हो जाती है। इन महात्माओं के ध्यान से मनुष्य को 1०० वर्ष की आयु प्राप्त होती है।
ये ऐसे आठ व्यक्ति हैं, जिन्हें चिरंजीवी होने का वर प्राप्त है। वे सभी किसी न किसी वचन, नियम या शाप से बंधे हुए हैं। इन्हें दिव्य शक्तियां भी प्राप्त है। योग में जिन दिव्य शक्तियों का वर्णन है। ये सभी दिव्य शक्तियां इन्हें प्राप्त है। योग में जिन अष्ट सिद्धियों की बात कही गई है, वे सभी शक्तियां इनमें विद्यमान हैं। यह परामनोविज्ञान जैसा है, जो परामनोविज्ञान और टेलीपैथी विद्या जैसी आज के आधुनिक साइंस की विद्या को जानते हैं, वही इस पर विश्वास कर सकते हैं। जानते हैं इन महामानवों के बारे में विस्तार से-
अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविन:।।
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोऽपि सर्वव्याधिविवर्जित।।
1. दशरथ नंदन श्री राम के परमभक्त हनुमान- रामकथा में हनुमान जी की लीलाओं का विस्तार से वर्णन किया गया है। उनके बल को अतुलनीय बताया गया है। समुद्र लांघ कर माता सीता का पता लगाने की सामथ्र्य हनुमान जी में थी। उन पर भगवान विष्णु के अवतार श्री राम पर विश्ोष कृपा है। इस घनघोर कलियुग में हनुमानजी सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता माने गए हैं। हनुमानजी भी इन अष्ट चिरंजीवियों में से एक माने गए हैं। माता सीता ने हनुमान को लंका की अशोक वाटिका में राम का संदेश सुनने के बाद आशीर्वाद दिया था कि वे अजर-अमर रहेंगे। अजर-अमर का आशय हैं कि उन्हें कभी मौत न आएगी और न ही कभी बुढ़ापा आएगा। इस कारण भगवान हनुमान को हमेशा शक्ति का स्रोत माना गया है क्योंकि वे चिरयुवा हैं। उनकी शक्तियों की तुलना अन्यत्र नहीं की जा की जा सकती है।
2- अश्वत्थामा- हिन्दू ग्रंथों में अश्वत्थामा नाम के महामानव का वर्णन मिलता है, विश्ोषकर महाभारत में इनका वर्णन है। जो चिरंजीवी है। ग्रंथों में भगवान शिव- शंकर के अनेकनेक अवतारों का उल्लेख है। इनमें से एक अवतार ऐसा भी है, जो धरती पर आज भी पर अपनी मुक्ति के लिए भटक रहा है। ये अवतार हैं, गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा का। द्बापरयुग में जब महाभारत युद्ध हुआ था, तब अश्वत्थामा ने कौरवों का साथ दिया था। अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के सम्मिलित अंशावतार हैं। ये अत्यंत शूरवीर, प्रचंड क्रोधी स्वभाव के योद्धा थे। हिन्दू ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार और सोलह कलाओं के स्वामी भगवान श्रीकृष्ण ने ही अश्वत्थामा को चिरकाल तक धरती पर भटकते रहने का शाप दिया था।
3- महर्षि व्यास- इन्होंने चारों वेदों यानी ऋग्वेद, अथर्ववेद, सामवेद और यजुर्वेद का संपादन किया था। साथ ही, इन्होंने ही सभी 18 पुराणों की रचना भी की थी।
महाभारत और श्रीमद्भागवतगीता की रचना भी इन्होंने ने ही की थी। इन्हें वेदव्यास के नाम से भी जाना जाता है। वेद व्यास ऋषि पाराशर और सत्यवती के पुत्र हैं। इनका जन्म यमुना नदी के एक द्बीप पर हुआ था और इनका रंग सांवला था। इसी कारण ये कृष्णत्द्बैपायन कहलाए गए हैं। महर्षि व्यास ने कलयुग में जीवों के कल्याण के लिए गंथों का संपादन व रचना की थी, क्योंकि कलयुग में मनुष्य की स्मरण शक्ति का ह्वास होता जाता है। ऐसे में इन ग्रंथों की स्मृतियों में लोप होना आशंकित था।
4- विभीषण- राक्षसराज रावण के छोटे भाई विभीषण को तमाम दिव्य शक्तियां प्राप्त हैं। ईश्वरीय कृपा से उन्हें श्री राम की परमभक्ति प्राप्त हुई थी। श्री राम की कृपा से ही उन्हें लंका का राज प्राप्त हुआ है। जब रावण ने माता सीता का हरण किया था, तब विभीषण ने रावण को श्रीराम से शत्रुता न करने के लिए बहुत समझाया था, लेकिन रावण नहीं माना था और उस पर क्रोधित हो गया था। इस बात पर रावण ने विभीषण को लंका से निकाल दिया था। विभीषण श्रीराम की सेवा में चले गए और रावण के अधर्म को मिटाने में धर्म का साथ दिया। विभीषण आज भी धरती पर है और श्रीराम के चरणों में प्रीति में लगे रहते हैं।
5- परशुराम- कलयुग में जब भगवान कल्कि का अवतार होगा तो यहीं भगवान परशुराम भगवान कल्कि को ज्ञान प्राप्त कराएंगे। यह गुरु के रूप में तमाम विद्याओं का ज्ञान भगवान कल्कि को कराएंगे। ये भगवान विष्णु के छठवें अवतार हैं। परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका थीं। इनका जन्म हिन्दी पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ था, इसलिए वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली तृतीया को अक्षय तृतीया कहा जाता है।
परशुराम का जन्म समय सतयुग और त्रेता के संधिकाल में माना गया है। परशुराम ने 21 बार धरती से सभी क्षत्रिय राजाओं का अंत किया था। परशुराम का प्रारंभिक नाम राम था। उन्होंने शिव शंकर को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था। भगवान शिव तपस्या से प्रसन्न हुए थ्ो और उन्होंने राम को अपना फरसा दिया था। इसी वजह से राम परशुराम कहलाने लगे। परशुराम की ख्याति विश्व में श्रेष्ठ ब्राह्मण के रूप में है।
6- कृपाचार्य-द्बापर युग में तमाम ग्रंथों में कृपाचार्य का उल्लेख मिलता है। वे कौरवों और पांडवों के गुरु थे। वे गौतम ऋषि के पुत्र हैं। इनकी बहन कृपी का विवाह द्रोणाचार्य से हुआ था। इस तरह कृपाचार्य, अश्वत्थामा के मामा हैं। महाभारत के अनुसार, कृपाचार्य अमर हैं। युद्घ के दौरान यह भी कौरवों के पक्ष में रहे थे। यह परम ज्ञानी माने गए है।
7- ऋषि मार्कण्डेय-मार्कण्डेय अल्पायु थ्ो, ऋषियों के कहने पर उन्होंने भगवान शिव की अराधना की और उनके परम भक्त हो गए। इन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था। इन्होंने महामृत्युंजय मंत्र सिद्धि की थी। जिसके प्रभाव से यमराज उनके प्राण नहीं ले जा सके थ्ो और वे चिरंजीवी हो गए थ्ो।
8- राजाबलि- यहीं वही राजा बलि है, जो दानवीर थे और भगवान विष्णु के अवतार भगवान वामन उनसे तीन पग भूगि मांगी थी। राजा बलि भक्त प्रहलाद के वंशज हैं। बलि ने भगवान विष्णु के वामन अवतार को अपना सब कुछ दान कर दिया था। इसी कारण इन्हें महादानी के रूप में जाना जाता है। राजा बलि से श्रीहरि अतिप्रसन्न थे। इसी वजह से भगवान विष्णु राजा बलि के द्बारपाल भी बन गए थे, हालांकि कालांतर वे वैकुंठ लोक लौट गए थ्ो।
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