……. जब भोलेनाथ ने दूर किया देवर्षि नारद का अभिमान

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माया के प्रभाव से सृष्टि में कोई अछूता नहीं है। चाहें वह आम मनुष्य हो या कोई ऋषि-महर्षि। वह कभी न कभी इसके प्रभाव में आता ही है और उस पर काम-क्रोध-मद-लोभ-मोह व मत्सर अपना प्रभाव दिखाते ही है। एक कथा हम आपको बताने जा रहे हैं, जिसका उल्लेख गर्ग संहिता में किया गया है, जिसके अनुसार एक समय देवर्षि नारद जी को अपने संगीत ज्ञान पर अभिमान हो गया। उन्हें संगीत ज्ञान पर अभिमान तो हुआ, लेकिन यह अहसास नहीं हुआ कि वे माया के प्रभाव से अभिमान में आ चुके है। जगत के पालनहाल भगवान विष्णु ने सोचा कि नारद, ये परमभक्त है, इसमें अभिमान उचित नहीं। चूंकि भगवान अति दयालु हैं, इसलिए उन्होंने भक्त का अभिमान दूर किया।

एक बार श्री नारद जी के मन में यह दर्ष हुआ कि मेरे समान इस त्रिलोकीमें कोई संगीतज्ञ नहीं ।

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इसी बीच एक दिन उन्होंने रास्ते में कुछ दिव्य स्त्री पुरुषोंको देखा जो घायल पड़े थे और उनके विविध अंग कटे हुए थे । नारद के द्वारा इस स्थिति का कारण पूछने घर उन दिव्य देव देवियों ने दुखी स्वर में निवेदन किया कि हम सभी राग – रागिनियाँ हैं । पहले हम अंग – प्रत्यंगों से पूर्ण थे पर आजकल नारद नामका एक संगीतानभिज्ञ व्यक्ति दिन – रात राग – रागिनियोंका अलाप करता चलता है , जिससे हमलोगोंका अंग भंग हो गया ।

आप यदि विष्णुलोक जा रहे हों तो कृपया हमारी दुरवस्था का भगवान् विष्णुसे निवेदन करेंगे और उनसे प्रार्थना करेंगे कि हमलोगोंको इस कष्ट से शीघ्र वे मुक्त कर दें नारदजी ने जब अपनी संगीतानभिज्ञता की बात सुनी तब वे बड़े दुखी हो गये । जब वे भगवद्धाम में पहुंचे तो प्रभु ने उनका उदास मुखमण्डल देखकर उनकी खिन्नता और उदासीका कारण पूछा ।

नारदजीने सारी बात बता दी । भगवान् बोले- मैं भी इस कला का मर्मज्ञ कहाँ हूँ । यह तो भगवान शंकर के वशकी बात है । अतएव उनके कष्ट दूर करनेके लिये शंकर जी से प्रार्थना करनी चाहिये । जब नारदजी ने महादेव जी से सारी बातें कहीं तब भगवान भोलेनाथ ने उत्तर दिया कि मैं ठीक ढंग से राग रागिनियोंका अलाप करूं तो निःसन्देह वे सभी अंगोंसे पूर्ण हो जायँगी पर मेरे संगीतका श्रोता कोई उत्तम अधिकारी मिलना चाहिये । अब नारदजीको और भी क्लेश हुआ कि मैं संगीत सुननेका अधिकारी भी नहीं हूँ । जो हो, उन्होंने भगवान शंकर से ही उत्तम संगीत श्रोता चुनने की प्रार्थना की । उन्होंने भगवान् नारायण का नाम निर्देश किया । प्रभु ने भी यह प्रस्ताव मान लिया । संगीत समारोह आरम्भ हुआ । सभी देव गन्धर्व तथा राग – रागिनियाँ वहाँ उपस्थित हुई । महादेव जी के राग अलापते ही उनके अंग पूरे हो गये । नारद जी साधु – हृदय , परम महात्मा तो हैं ही । अहंकार दूर हो ही चुका था , अब राग रागिनियों को पूर्णाग देखकर वे बड़े प्रसन्न हुए । इस तरह से भगवान विष्णु ने अपने भक्त के अहंकार को दूर किया ।

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