आचार्य चाणक्य की तीन बातें आपके जीवन में बहुत उपयोगी हो सकती हैं। यदि उन तीन बातों को अंत:करण में समाहित किया जाए और स्मरण रखा जाए तो मनुष्य के लिए मोक्ष की प्राप्ति सम्भव है।
आचार्य ने जो पहली बात कही है, वह इस प्रकार है। जिस समय हम श्मशान जाते है और चिता को जलते हुए देखकर हर मनुष्य के मन में एक ही बात आती है कि यह संसार मिथ्या है, इसमें कुछ रखा नहीं है। सभी को एक दिन इस धरती से विदा होना है और जलकर नष्ट हो जाना है, साथ कुछ नहीं जाएगा। सभी को प्राय: इस अवसर पर क्षणिक वैराग्य हो जाता है। जैसे ही हम श्मशान से बाहर जाते हैं तो फिर वहीं दुनियादारी याद आती है। वही मोह, माया, घर, परिवार, कारोबार और संसार की बातें हमे घ्ोर लेती हैं।
दूसरी महत्वपूर्ण बात जो चाणक्य ने कही है, वह है कि जब हम किसी बीमार व्यक्ति से मिलते हैं, जो अस्पताल में जीवन और मौत से जूझ रहा हो, अत्यन्त कष्ट में हो। उस समय भी हमारे मन की वही स्थिति होती है, वैराग्य का भाव होता है, जो श्मशान में होता है।
तीसरा स्थान है सत्संग, जहां पर बैठकर हर व्यक्ति को क्षणिक वैराग्य की प्राप्ति हो जाती है। यदि तीनों जगह होने वाली मन: स्थिति को हम चौबीसों घंटे बनाए रख्ो और जीवन के इस सत्य को स्वीकार कर लें तो आप समझ लीजिए कि आप वैराग्य प्राप्ति के पथ पर अग्रसर है लेकिन वास्तविक जीवन में यह आम आदमी के लिए बहुत कठिन होता है। आचार्य की इस बात को याद रखकर मनुष्य को इस अनुभूति को स्मरण रखना चाहिए। अंत में एक बात और बताना चाहता हूं कि मनुष्य के लिए यह तब सम्भव है, जब मनुष्य मौत को हमेशा स्मरण रखे और ईश्वरीय सत्ता के प्रति अटूट भाव रख्ो।
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