लौंग का आयुर्वेद की दृष्टि से विशेष महत्व है। यह स्वास्थ्य वर्धक औषधि के रूप में जानी जाती है। धार्मिक दृष्टि से भी सनातन परम्परा में इसका विशेष महत्व है, लेकिन यहां हम लौंग के धार्मिक महत्व पर प्रकाश न डाल कर इसके आयुर्वेदिक महत्व पर प्रकाश डालेंगे। वह भी उन बिंदुओं पर प्रकाश डालेंगे, जिससे आप इसका प्रयोग अपने दैनिक जीवन में कर सके। आम तौर पर लौंग की खेती दक्षिण भारत में केरल व तमिलनाडु में की जाती है। लौंग के वृक्ष पर नौ साल में फूल लगते हैं। इसके पुष्प व कलियों को ही सुखाकर रख लिया जाता है, जिसे हम लौंग के नाम से जानते हैं। यह आँखों के लिए लाभदायक होती है। यह शीतल दीपन पाचन , कफ पित्त, रक्तरोग, हिचकी, प्यास और क्षय रोग का समापन करती है।
पेट के कीड़े निकल जाते हैं-
लौंग के 1० ग्राम पत्तों को पानी में थोड़ा जोश देकर पीने से पेट के कीड़े निकल जाते है। मासिक धर्म भी साफ होता है।
लौंग मुख की दुर्गंध दूर करती है-
मुख से दुर्गधपूर्ण बास आती है तो दो दाने लोग मुख में रख कर चूसें । कुछ ही दिनों में दुर्गध से मुक्ति मिल जायेगी ।
जलन – 2-4 नग लौंग को शीतल जल में पीसकर, मिश्री मिलाकर पीने से हृदय की जलन मिटती है।
पेट का दर्द – पेट दर्द कर रहा है तो 8-1० लौग पीसकर 25० मिली पानी में उबाले फिर पानी को आँच से नीचे उतार लें । जब हल्का गर्म रह जाये तो रोगी को पिलायें । पेट दर्द में फायदा होगा ।
खाँसी – लौंग काली मिर्च और बहेड़ा तीनों को बराबर मात्रा में लेकर उतना ही सफ़ेद कत्था मिलाये । अच्छी तरह पीसकर बबूल की छाल के काढ़े में घोंटिये और छोटी – छोटी मटर के समान गोलियाँ बना लीजिए। एक-एक गोली मुख में रखकर चूसे । खाँसी बन्द हो जायेगी। यह बहुत ही प्रभावी उपाय माना जाता है।
दांत दर्द में प्रभावी – दाँत अत्यधिक दर्द करता हो तो लौंग का 1-2 बूंद तेल लगायें । अगर कीड़े है तो वे भी नष्ट हो जायेंगे ।