मुंबई। दिग्गज फिल्मकार-अभिनेता गुरु दत्त को प्रभात फ़िल्म कम्पनी ने कोरियोग्राफर के रूप में रखा था लेकिन जल्द ही एक अभिनेता के रूप में काम करने का दवाव डाला गया। इतना ही नहीं, एक सहायक निर्देशक के रूप में भी उनसे काम लिया गया। प्रभात में काम करते हुए उन्होंने देव आनन्द और रहमान से अपने सम्बन्ध बना लिये जो दोनों ही आगे चलकर अच्छे सितारों के रूप में मशहूर हुए। उन दोनों की दोस्ती ने गुरु दत्त को फ़िल्मी दुनिया में अपनी जगह बनाने में काफी मदद की।
प्रभात के 1947 में विफल हो जाने के बाद गुरु दत्त बम्बई आ गये। वहाँ उन्होंने अमिय चक्रवर्ती व ज्ञान मुखर्जी नामक अपने समय के दो अग्रणी निर्देशकों के साथ काम किया। अमिय चक्रवर्ती की फ़िल्म गर्ल्स स्कूल में और ज्ञान मुखर्जी के साथ बॉम्बे टॉकीज की फ़िल्म संग्राम में। बम्बई में ही उन्हें देव आनन्द की पहली फ़िल्म के लिये निर्देशक के रूप में काम करने की पेशकश की गयी। देव आनन्द ने उन्हें अपनी नई कम्पनी नवकेतन में एक निर्देशक के रूप में अवसर दिया था, लेकिन दुर्भाग्य से फ़िल्म फ्लॉप हो गयी। इस तरह गुरु दत्त द्वारा निर्देशित पहली फिल्म थी नवकेतन के बैनर तले बनी बाज़ी जो 1951 में प्रदर्शित हुई। इन्ही नामचीन दिग्गज फिल्मकार-अभिनेता पर अब बायोपिक बनाने जा रही हैं। बॉलीवुड निर्देशक भावना तलवार दिग्गज फिल्मकार-अभिनेता गुरु दत्त की बायोपिक बनाने जा रही हैं।
भावना तलवार, गुरूदत्त के जीवन पर फिल्म ‘प्यासा’ बनाने जा रही है। भावना तलवार ने कहा कि गुरूदत्त का व्यक्तित्व लार्जर दैन लाइफ की तरह था और मात्र 10 सालों के भीतर ही उन्होंने एक फिल्म निर्माता के तौर पर सफलता, अभिनेता के तौर पर सफलता, अपने सिनेमा की व्यावसायिक सफलता, एक अभिनेता के रूप में अपने प्रशंसकों की प्रशंसा और गीता दत्त के साथ लगाव और फिर पत्नी के तौर पर उन्हें पाना, सब कुछ पा लिया था, हालांकि इसके साथ ही उन्होंने …………दुख भी देखा। आप इसे छोटे पर्दे में नहीं दिखा सकते हैं, यह एक फीचर फिल्म प्रारूप के योग्य है। भावना ने कहा कि कहानी को 10 घंटे की कहानी के तौर पर पेश करने की आवश्यकता नहीं है। उनकी यात्रा आकर्षक है और बड़े पर्दे पर दिखाने के काबिल है। विस्तृत शोध कार्य के लिए मुझे सात साल लग गए और एक आकर्षक कहानी लिखने के लिए कई विचार-विमर्श हुए, जो न सिर्फ मुझे और मेरी टीम को, बल्कि एक नई पीढ़ी के दर्शकों को भी पसंद आएगी और वे फिल्म देखने के लिए थिएटर जाना चाहेंगे। उल्लेखनीय है कि गुरु दत्त ने पहले कुछ समय कलकत्ता जाकर लीवर ब्रदर्स फैक्ट्री में टेलीफोन ऑपरेटर की नौकरी की लेकिन जल्द ही वे वहाँ से इस्तीफा देकर 1944 में अपने माता पिता के पास बम्बई लौट आये।
दो बार शादी भी की
गुरु दत्त ने दो बार शादी भी की; पहली बार विजया नाम की एक लड़की से, जिसे वे पूना से लाये थे वह चली गयी तो दूसरी बार अपने माता पिता के कहने पर अपने ही रिश्ते की एक भानजी सुवर्णा से, जो हैदराबाद की रहने वाली थी।