ईश्वर वैसे से जीव के भाव को देखता है, लेकिन उनके पूजन में कुछ नियमों का पालन जरूर करना चाहिए। इससे वह शीघ्र प्रसन्न होते हैं। बहुत से ऐसे कार्य हम अन्जाने में कर जाते हैं, जो हमे ईश्वर की कृपा से वंचित कर देते हैं, इसलिए जरूरी है कि हम उन छोटे-छोटे नियमों का पालन करें। नियमों का पालन न सिर्फ हमारी पूजन पद्धति के लिए आवश्यक होता है, बल्कि दैनिक जीवन में भी नियमों का पालन बेहद जरूरी होता है, अक्सर देखा जाता है कि लोग सोए हुए लोगों के चरण स्पर्श कर देते हैं, जो कि गलत है, ऐसा कतई भी नहीं करना चाहिए। नियम के अनुसार सोए हुए व्यक्ति का चरण स्पर्श नहीं करना चाहिए। बड़ों को प्रणाम करते वक्त उनके दाहिने पैर पर दाहिने हाथ से और उनके बांये पैर को बांये हाथ से छूकर प्रणाम करना चाहिए लेकिन आज के दौर में लोग जैसे मन होता है, वेसा अपनी सहूलियत के अनुसार कर देते है, इससे अपको बड़ों से पूर्ण उर्जा की प्राप्ति नहीं हो पाती है। जप करते समय जीभ या होंठ को नहीं हिलाना चाहिए। इसे उपांशु जप कहते हैं। इसका फल सौगुणा फलदायक होता हैं। एक और बात महत्वपूर्ण है कि जप करते वक्त दाहिने हाथ को कपड़े या गौमुखी से ढककर रखना चाहिए। जप के बाद आसन के नीचे की भूमि को स्पर्श कर नेत्रों से लगाना चाहिए।
संक्रांति, द्बादशी, अमावस्या, पूर्णिमा और रविवार को न तोड़े तुलसी
संक्रान्ति, द्बादशी, अमावस्या, पूर्णिमा, रविवार और सन्ध्या के समय तुलसी तोड़ना निषिद्ध हैं। इस समय तुलसी को नहीं तोड़ना चाहिए। यह धर्म के विपरीत आचरण होगा। दीपक से दीपक को नहीं जलाना चाहिए। यह भी आपको पूजन के पुण्य फल से वंचित करता है। यज्ञ, श्राद्ध आदि में काले तिल का प्रयोग करना चाहिए, सफेद तिल का नहीं। इस बात का विश्ोष ध्यान रखने की जरूरत है। यह चूक आपको पुण्य प्राप्ति में बाधक होती है। शनिवार को पीपल पर जल चढ़ाना चाहिए। पीपल की सात परिक्रमा करनी चाहिए। परिक्रमा करना श्रेष्ठ है। कूमड़ा-मतीरा-नारियल आदि को स्त्रियां नहीं तोड़े या चाकू आदि से नहीं काटें। यह उत्तम नहीं माना गया हैं। इससे भी पुण्य प्राप्ति नहीं होती है। भोजन प्रसाद को लाघंना नहीं चाहिए। देव प्रतिमा देखकर अवश्य प्रणाम करें। किसी को भी कोई वस्तु या दान-दक्षिणा दाहिने हाथ से देनी चाहिए।
इन दिनों में नहीं बनाएं दाढ़ी
एकादशी, अमावस्या, कृृष्ण चतुर्दशी, पूर्णिमा व्रत तथा श्राद्ध के दिन क्षौर-कर्म (दाढ़ी) नहीं बनाना चाहिए ।बिना यज्ञोपवित या शिखा बंधन के जो भी कार्य, कर्म किया जाता है, वह निष्फल हो जाता हैं। भगवान शंकर जी को बिल्वपत्र, विष्णु जी को तुलसी, गणेश जी को दूर्वा, लक्ष्मी जी को कमल प्रिय हैं। भगवान शंकर को शिवरात्रि के सिवाये कुमकुम नहीं चढ़ते हैं। शिवजी को कुंद, विष्णु जी को धतूरा, देवी को आक व मदार और सूर्य भगवानको तगर के फूल नहीं चढ़ाने चाहिए।
अक्षत देवताओं को तीन बार और पितरों को एक बार धोकर चढ़ाएं
अक्षत देवताओं को तीन बार तथा पितरों को एक बार धोकर चढ़ायेंे। नये बिल्व पत्र नहीं मिले तो चढ़ाये हुए बिल्व पत्र धोकर फिर चढ़ाए जा सकते हैं। विष्णु भगवान को चावल, गणेश जी को तुलसी, दुर्गा जी और सूर्य नारायण को बिल्व पत्र नहीं चढ़ायें। पत्र-पुष्प-फल का मुख नीचे करके नहीं चढ़ायें। जैसे उत्पन्न होते हों वैसे ही चढ़ायें, लेकिन बिल्वपत्र उलटा करके डंडी तोड़कर शंकर पर चढ़ायें। पान की डंडी का अग्रभाग तोड़कर चढ़ायें। भगवान को सड़ा हुआ पान या पुष्प नहीं चढ़ाने चाहिए। गणेश को तुलसी भाद्र शुक्ल चतुर्थी को चढ़ती हैं। पांच रात्रि तक कमल का फूल बासी नहीं होता है। दस रात्रि तक तुलसी पत्र बासी नहीं होते हैं।
पत्नी को दाहिने ओर बैठा कर करे धार्मिक क्रियाएं
सभी धार्मिक कार्यो में पत्नी को दाहिने भाग में बिठाकर धार्मिक क्रियाएं सम्पन्न करनी चाहिए। पूजन करने वाला ललाट पर तिलक लगाकर ही पूजा करें। पूर्वाभिमुख बैठकर अपने बांयी ओर घंटा, धूप तथा दाहिनी ओर शंख, जलपात्र एवं पूजन सामग्री रखें। घी का दीपक अपने बांयी ओर तथा देवता को दाहिने ओर रखें और चावल पर दीपक रखकर प्रज्वलित करें। भगवान शंकर को तुलसी पत्र नहीं अर्पित करने चाहिए।