……………..मन ही तो हमें हार से जीत की ओर ले जाता है,

0
501

वाह रे! मन, आह रे! मन,
तू भी बड़ा अजीब है,
कभी प्रफुल्लित, कभी मायूस,
बेपरवाह सा घूमता है,
आजाद पंछी की तरह,
उड़कर यहां-वहां चला जाता है,
बचपन की शरारत, यौवन की चूक का एहसास कराता है,
मन ही तो है जो गहरे भेद छुपा, चेहरे पर स्मित लाता है,
मन ही तो है जो मीत से मिलाता है,
मन ही तो है जो हमें तम से उजाले की ओर ले जाता है,
मन ही तो हमें हार से जीत की ओर ले जाता है,
ये मन ही तो है जो उस जगह विचरता है,
जहां हम जा नहीं सकते,
स्मृतियों के अवशेषों में, भविष्य के सपनों में, वर्तमान की आशाओं में,
मन की बात को मानव आसानी से झुठला नहीं पाता,
हां! ये मन ही तो है जो हमें परमेश्वर से मिलाता है।

डॉ. ऋतु नागर

Advertisment

सत्य को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती

ओ३म् “आत्मा के जन्म-मरण व जीवन का न आरम्भ है और न अन्त है”

लोकभवन के सामने मां-बेटी के आत्मदाह के प्रयास का निकला राजनैतिक कनेक्शन!

सनातन धर्म, जिसका न कोई आदि है और न ही अंत है, ऐसे मे वैदिक ज्ञान के अतुल्य भंडार को जन-जन पहुंचाने के लिए धन बल व जन बल की आवश्यकता होती है, चूंकि हम किसी प्रकार के कॉरपोरेट व सरकार के दबाव या सहयोग से मुक्त हैं, ऐसे में आवश्यक है कि आप सब के छोटे-छोटे सहयोग के जरिये हम इस साहसी व पुनीत कार्य को मूर्त रूप दे सकें। सनातन जन डॉट कॉम में आर्थिक सहयोग करके सनातन धर्म के प्रसार में सहयोग करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here