मुक्ति चाहते हो , तो…….

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मुक्तिमिच्छसि चेत्तात विषयान् विषवत्त्यज । क्षमार्जवदयातोषसत्यं पीयूषवद्भज ॥——-अष्टावक्र गीता से 

 

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भावार्थ—– अष्टावक्रजी राजा जनकसे कहते हैं-  हे तात ! यदि तुम मुक्ति चाहते हो , तो विषयोंको विषके समान छोड़ और क्षमा , सरलता , दया सन्तोष एवं सत्यका अमृतके समान सेवन करो ।। 

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ओ३म्: ‘क्या इस जन्म से पहले हमारा अस्तित्व था और मृत्यु के बाद भी रहेगा?’

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